Current Analysis

Earlier known as राजनीति this column has been re-christened as हाल फिलहाल.

लोकतंत्र खड़ा चौराहे पर

Publsihed: 04.Jan.2010, 10:00

एक आईपीएस अफसर पूरे तंत्र को अपनी ऊंगलियों पर नचा रहा था। स्कूल, अस्पताल, पुलिस थाना, सीबीआई, मुख्यमंत्री, न्यायपालिका सबको चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है एक आईपीएस अफसर ने।

हमारा प्रशासनिक राजनीतिक ढांचा चरमरा रहा है। प्रशासनिक सुधार आयोगों की रिपोटें असली मर्ज को पहचानने की कोशिश भी नहीं करतीं। राजनीतिक नेता और नौकरशाही का मकड़जाल देश के लोकतंत्र को घुन की तरह खा रहा है। नौकरशाह देश को चूसने वाले गिध्द बन गए हैं और राजनीतिक नेता उन पर नकेल कसने की बजाए छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए उनके हाथों का खिलौना बन गए हैं। कई मुख्यमंत्रियों को निजी बातचीत में यह कहते सुना है कि ब्यूरोक्रेसी से काम लेना आसान नहीं।

अपराधियों का किला भेद रहा मीडिया

Publsihed: 28.Dec.2009, 09:50

साल 2009 बीत रहा है। यह साल मीडिया के लिए भी कई खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरा है। साल की पहली तिमाही में जरनैल सिंह ने कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में गृहमंत्री पी चिदंबरम पर जूता फेंककर मीडिया के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी। तो बाद में जरनैल सिंह एक सिख पत्रकार के तौर पर नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने वाले जुझारू पत्रकार के रूप में मशहूर हुए। एक जमाना था जब मीडियाकर्मियों और मीडिया को नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने वाला मिशनरी माना जाता था। स्वतंत्रा संग्राम के आंदोलन में मीडियाकर्मियों की भूमिका इसलिए ज्यादा अहम थी। बाजारीकरण ने पिछले एक दशक में मीडिया की जुझारू छवि को धूल धूसरित कर दिया था।

तीसरी पीढ़ी के कंधों पर भाजपा की बागडोर

Publsihed: 21.Dec.2009, 09:54

मुखर्जी-उपाध्याय, अटल-आडवाणी के बाद अब सुषमा-गड़करी

मोहन भागवत ने भाजपा के नए नेतृत्व के चयन की जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी को सौंपकर पिछले चार साल से चली गुटबाजी को विराम देने की कोशिश की है। आडवाणी की ओर से चुने गए पार्टी के तीनों नए नेता सुषमा स्वराज, नितिन गड़करी और अरुण जेटली अब पिछले चार साल की गलतियां सुधारने में जुटेंगे।

मौसम परिवर्तन को लेकर कोपेनहेगन में दुनियाभर के नेता कोई सर्वमान्य हल निकालने की मशक्कत कर रहे थे, लेकिन वहां कोई हल नहीं निकला। जबकि भारत में ठीक उसी समय भारतीय जनता पार्टी में मौसम परिवर्तन हो गया।

लघु ही सुंदर है

Publsihed: 14.Dec.2009, 09:31

पीएमके प्रमुख रामदौस भी राज्यों के विभाजन की दौड़ में शामिल हो गए हैं। तेलंगाना की मांग के हिंसक रूप लेने पर केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के बंटवारे की बात सिध्दांतत: मंजूर कर ली। केंद्र का यह फैसला मक्खियों के छत्ते में हाथ मारने जैसा साबित हो रहा है क्योंकि लगभग हर राज्य में बंटवारे की मांग खड़ी हो गई है। पीएमके प्रमुख रामदौस ने दस साल पहले तमिलनाडु के विभाजन का आंदोलन शुरू किया था, लेकिन चारों तरफ से विरोध का सामना हुआ तो चुप्पी साध ली थी। अब देशभर में राज्यों के विभाजन की मांग उठने पर उन्होंने छोटे राज्यों के पक्ष में अंग्रेजी की एक कहावत का सहारा लेकर कहा है- 'स्माल इज ब्यूटीफुल।'

वैसे संविधान के मुताबिक किसी राज्य का विभाजन करने के लिए वहां की विधानसभा से प्रस्ताव पास होना जरूरी नहीं है। ऐसे प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है, लेकिन छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड बनाते समय सरकार ने विधानसभा के प्रस्तावों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया था।

उल्फा के बहाने बात मूल निवासियों के हक की

Publsihed: 07.Dec.2009, 09:40

पूर्वोत्तर के कई राज्य ब्रिटिश भारत के मानचित्र में भी नहीं थे। अलग भाषा और नस्ल के कारण पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलन तो था ही, विकास के असंतुलन ने आग में घी का काम किया है।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 19 दिसम्बर को भारत आ रही हैं। उनके भारत आने से ठीक पहले बांग्लादेश सीमा से लगते असम राज्य  के अलगाववादी संगठन उल्फा के बड़े नेता गिरफ्तार कर भारत के सुपुर्द किए गए हैं। असम में बाहरी लोगों के खिलाफ लड़ाई के दो पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है। पहला आंदोलन आसू ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ शुरू किया था। आंदोलन मूल आबादी का राज्य पर राजनीतिक अधिकार बनाए रखने का था।

शिवसेना पतन की ओर

Publsihed: 30.Nov.2009, 10:27

भतीजे राज ठाकरे के बाद अब पुत्रवधु स्मिता का भी बाल ठाकरे का साथ छोड़ने का फैसला। महाराष्ट्र में भाजपा गिरते ग्राफ वाली उध्दव की शिवसेना को अपना हमराही बनाए रखे, या उत्तर-दक्षिण भारत विरोधी राजठाकरे को नया हमराही बनाए। भाजपा के आगे कुआं है, तो पीछे खाई।

केशव सीताराम का जन्म महाराष्ट्र के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। फिर भी वह बड़े होनहार थे और उन्होंने 'प्रबोधन' नाम से एक पाक्षिक पत्रिका निकालकर मराठी भाषा और मराठी सभ्यता के लिए काम किया। हालांकि वह खुद मूलरूप से मराठी नहीं थे। पचास के दशक में जब मराठी भाषा और संस्कृति के आधार पर महाराष्ट्र राज्य निर्माण की मांग उठी तो केशव सीताराम और उनकी पाक्षिक पत्रिका ने उसमें अहम भूमिका निभाई थी। वह जातिवाद के कट्टर विरोधी थे और एक ऐसे महाराष्ट्र की कल्पना करते थे जिसका विकास तुच्छ राजनीतिक मुद्दों में न फंसे। वह संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का हिस्सा ही नहीं, अलबत्ता अग्रणी नेता थे। मोरारजी देसाई मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल करने के खिलाफ थे लेकिन केशव सीताराम ठाकरे ऐसे मराठी भाषी राज्य की कल्पना करते थे जिसमें बहुभाषी मुंबई को भी शामिल किया जाए। ठीक उसी समय सीताराम ठाकरे के बेटे बाला साहेब ठाकरे ने मुंबई के अंग्रेजी अखबार फ्री प्रैस जनरल में कार्टूनिस्ट के तौर पर काम शुरू किया।

मनमोहन की अमेरिका यात्रा टली क्यों नही

Publsihed: 23.Nov.2009, 00:22

अपना दौरा टालकर बाराक ओबामा को उनकी कश्मीर नीति पर मुंह तोड़ जवाब दे सकते थे मनमोहन सिंह। यों भी संसद सत्र के समय प्रधानमंत्री को विदेश दौरों से परहेज करना चाहिए।

संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा की मेहमानबाजी का लुत्फ उठा रहे हैं। भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना 26/11 की कड़वी यादों को जब एक साल बाद इस 26/11 संसद में याद किया जाएगा, तो प्रधानमंत्री नदारद होंगे। कोई अंतरराष्ट्रीय समारोह या बैठक न हो तो प्रधानमंत्री संसद सत्र के समय विदेश यात्राओं से परहेज किया करते थे। जिस संसद में बहुमत के बूते कोई प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचता है, उस संसद का उसे सम्मान करना ही चाहिए। खासकर तब जब सत्र साल में सिर्फ तीन बार होता हो और वह भी पूरे साल में कुल मिलाकर सौ दिन से भी कम चलता हो।

भाजपा की गुटबाजी संघ का सिरदर्द

Publsihed: 16.Nov.2009, 10:01

नितिन गडकरी को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाने के पीछे संघ की दलील यह है कि पार्टी के सभी मौजूदा राष्ट्रीय नेता गुटबाजी में शामिल हैं। हालांकि राजनाथ सिंह को जब पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था तब वह गुटबाजी की राजनीति का शिकार नहीं थे। लेकिन उनके चार साल के कार्यकाल में पार्टी भयंकर रूप से गुटबाजी की शिकार हुई है। इस गुटबाजी का पहला कारण यह था कि राजनाथ सिंह ने पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी को साथ लेकर चलने की जहमत नहीं उठाई। संघ ने क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम छेड़ी थी इसलिए राजनाथ सिंह यह मानकर चल रहे होंगे कि संघ लालकृष्ण आडवाणी को पसंद नहीं करता। राजनाथ सिंह ने संघ की इच्छा मानकर आडवाणी की अनदेखी और उनके समर्थकों को प्रमुख पदों से हटाने की मुहिम छेड़ दी थी। राजनाथ सिंह यहीं पर भूल कर गए,

महाराष्ट्र-कर्नाटक राजनीतिक गिरावट का आईना

Publsihed: 09.Nov.2009, 00:23

कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा तीनों राज्यों के उदाहरण हमारे सामने हैं। सियासत किस तरह व्यापारिक हितों की सीढ़ी बन चुकी है। हरियाणा में वक्त तय होने के बाद भी इसलिए शपथ ग्रहण नहीं हो सका क्योंकि सौदेबाजी सिरे नहीं चढ़ सकी। महाराष्ट्र में चुनाव नतीजे आने के चौदहवें दिन तक मलाईदार विभागों का लेन-देन सिरे नहीं चढ़ा। इसलिए नई सरकार का गठन होने में देर लगी। कर्नाटक में भाजपा के ही कुछ मंत्रियों ने अपने आर्थिक हितों में रुकावट बनने वाली सरकार को तलवार की धार पर लाकर खड़ा कर दिया।

अगर महाराष्ट्र में गैर कांग्रेसी सरकार बननी होती तो वहां गवर्नर की सिफारिश से राष्ट्रपति राज लग गया होता। उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी और बिहार में बूटा सिंह ने ऐसा ही किया था। अफसोस यह है कि मलाईदार मंत्रालयों का लेन-देन खुलेआम हो रहा है और संविधान का कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो लूट-खसूट को रोक सके। इस लूट-खसूट को सिर्फ गवर्नर ही रोक सकता है, लेकिन गवर्नर अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर काम करने के आदी हो गए हैं। अपने पूर्व राजनीतिक आकाओं को खुश करते रंगे हाथों पकड़े गए रामलाल ठाकुर, रोमेश भंडारी, बूटा सिंह सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार सह चुके हैं। इसके बावजूद गवर्नरों की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं दिखता।

दलाईलामा के अरुणाचल दौरे का मतलब

Publsihed: 02.Nov.2009, 10:14

क्या मौजूदा 14वें दलाईलामा इतिहास को उसी मोड़ पर लाने की सोच रहे हैं जहां से पांचवें दलाईलामा ने सत्ता संभालने की शुरूआत की थी। क्या वह अपने इसी तवांग दौरे के दौरान ऐसा ऐतिहासिक ऐलान करने की सोच रहे हैं, जैसी चीन की आशंका है।

आठ नवंबर का दिन जैसे-जैसे करीब आ रहा है, अरुणाचल का सुरक्षा घेरा उतना ही बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात के बाद भारत-चीन में तनाव कुछ कम हुआ है, लेकिन इसका असर अरुणाचल में दिखाई नहीं देता। जैसे-जैसे दलाई लामा के अरुणाचल पहुंचने की तारीख नजदीक आ रही है, वहां के लोगों में दहशत फैल रही है। दलाईलामा के दौरे को लेकर अरुणाचल के लोग उत्साह से भरे हैं, उनके स्वागत की तैयारियां हो रही हैं, लेकिन एक डर भी समाया हुआ है कि कहीं उस दिन चीन अक्टूबर 1962 की याद ताजा न कर दे।