ब्लूचिस्तान का जिक्र मनमोहन की विफलता

Publsihed: 19.Jul.2009, 20:41

ऐसा नहीं है कि मनमोहन सिंह ने  बिना कुछ हासिल किए ही बातचीत दुबारा शुरु कर दी है। पाकिस्तान ने मुंबई हमले की पांच साजिश कर्ताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। लेकिन ब्लूचिस्तान का साझा बयान में  जिक्र कूटनीतिक विफलता का  सबूत है।

कई बार ऐसा होता है, जो होता है वह दिखता नहीं, जो दिखता है वह होता नहीं। सरसरी नजर में 16 जुलाई 2009 को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की ओर से मिस्र में जारी किया गया सचिव स्तरीय बातचीत शुरु करने का साझा बयान भारत की करारी हार दिखाई देता है। पाकिस्तान ने ऐसे कोई ठोस सबूत नहीं दिए थे, जिनसे यह लगता हो कि वह मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रहा है। मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से हो रही समग्र वार्ता को बंद कर दिया था।

पाकिस्तान से समग्र वार्ता का विचार 1997 में इन्द्र कुमार गुजराल की सरकार के समय शुरु हुआ था। हालांकि गुजराल अपने कार्यकाल में इसकी रुप रेखा नहीं बना पाए। अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में सितम्बर 1998 की संयुक्त राष्ट्र बैठक के समय दोनों देशों में समग्र बातचीत के मुद्दों को अंतिम रुप दिया गया। जिनमें जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद सहित आपसी संबंध  बढ़ाने के आठ मुद्दे शामिल थे। समग्र बातचीत पाकिस्तान की ओर से तीन आतंकवादी वार्ता समय गतिरोध का शिकार होती रही। पहले कारगिल के समय, फिर संसद पर हमले की समय और अब मुंबई पर आतंकवादी हमले के समय। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एलान किया था कि पाकिस्तान जब तक मुंबई पर हमला करने की साजिश रचने वालों को कानून की चौखट पर खड़ा नहीं करता तब तक समग्र वार्ता शुरू नहीं की जाएगी। हम जानते हैं कि भारत सरकार हर बड़ी आतंकवादी  वारदात के बाद इस तरह का स्टैंड लेती रही? और बाद में पीछे भी हटती रही है। इसलिए जब जब सरकारे अपने स्टैंड से पीछे हटती है देश की जनता में गुस्सा पनपता है। मिस्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की मुलाकात को भी भारत में अच्छी नजर से नहीं देखा गया। क्योंकि 16 जुलाई को होने वाली मुलाकात के दो दिन पहले पाकिस्तान  सरकार हाफिज सईद के मुद्दे पर अदालत में स्पष्ट स्टैंड नहीं ले पाई थी।

भारत में उम्मीद लगाई जा रही थी कि मनमोहन सिंह ठीक वैसे ही कड़ा रुख अपनाएंगे जैसा उन्होंने पिछले महीने जून में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ बातचीत के समय रुस में अपनाया था। हाफिज सईद के खिलाफ भारत ने ठोस सबूत दिए हैं। इसलिए मिस्र में होने वाली बातचीत से पहले पाकिस्तान सरकार की ओर से अपनाए गए रुख की तुलना आगरा में परवेज मुशर्रफ की ओर से कश्मीरी आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी बताए जाने से की जाने लगी थी। प्रधानमंत्री के साथ गए पत्रकार ही नहीं अलबत्ता दिल्ली में बैठे कुटनीतिज्ञ भी यह मानकर चल रहे थे कि मनमोहन सिंह भले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से मुलाकात कर लें, लेकिन न तो साझा प्रेस कान्फ्रेंस होगी और ना ही साझा बयान जारी होगा। सच्चाई यह है कि बातचीत टूट की कगार पर थी। तभी दोनों देशों के विदेश सचिव उठकर दूसरे कमरे में चले गए। दोनों प्रधानमंत्रियों की अकेले में बातचीत हुई। दोनों कमरों में हो रही अलग-अलग बातचीत का नतीजा यह निकला कि साझा प्रेस कान्फ्रेंस भले नहीं हुई, साझा बयान जारी हो गया। इसी साझा बयान ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी। जहां एक तरफ भारत की तरफ से दावा किया गया कि इस साझा बयान में समग्र बातचीत दुबारा शुरु करने की बात नहीं कही गई है, अलबत्ता सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर भी सचिव स्तरीय बातचीत शुरु करने पर सहमति दी गई है। वहां पाकिस्तान की तरफ से साझा बयान मे कही गई बातों को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की जीत बताया गया। इसकी दो वजह भी थी। पहली वजह यह है कि यूसुफ रजा गिलानी पाकिस्तान के पहले नेता बन गए, जिन्होंने ब्लूचिस्तान को साझा बयान में लाने में सफलता हासिल की है। दूसरी वजह यह है कि दो दिन पहले हाफिज सईद के मामले में पाक के ढुलमुल रवैये के बावजूद वह भारत को बातचीत के मंच पर लाने में कामयाब हो गए।

यूसुफ रजा गिलानी ने तो साझा बयान से कुछ हासिल किया, जो सीधे तौर पर दिखाई दे रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने क्या हासिल किया। इस साझा बयान को भारत में मनमोहन सिंह की कूटनीतिक विफलता के तौर पर देखा गया। दिखने में यह लगातार तीसरी कूटनीतिक विफलता है। पहली विफलता ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर भारत पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को लेकर है, दूसरी विफलता मनमोहन सिंह के मौजूदगी में जी-8 की ओर से उन देशों पर परमाणु तकनीक के व्यापार पर रोक लगाए जाने का प्रस्ताव पास होना है, जिन्होंने एनपीटी पर दस्तख्त नहीं किए। तीसरी विफलता यह साझा बयान माना गया, जिसमें मनमोहन सिंह ने मुंबई के हमलावरों के खिलाफ बिना कार्रवाई का सबूत मिले ही बातचीत दुबारा शुरु कर दी और साझा बयान में ब्लूचिस्तान का जिक्र भी कर दिया। ऐसा मानने वालों की कोई कमी नहीं है जो ये मानते हैं कि अमेरिकी दबाव में भारत को पाकिस्तान से बातचीत शुरु करनी पड़ी है। साझा बयान के कुछ घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री को संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ा, जो  इस हफ्ते फिर करना पड़ेगा। लेकिन कई बार ऐसा होता है, जो दिखता है वह होता नहीं, जो होता है वह दिखता नहीं।  इस मामले में भी कुछ रहस्य ऐसे हैं, जो अभी खुलने बाकी हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 11 जुलाई को पाकिस्तान की ओर से सौंपे गए उस दस्तावेज का अभी खुलासा नहीं किया है, जिसमें पाकिस्तान ने मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले में पाकिस्तानियों के शामिल होने और उन पर कार्रवाई शुरु करने की बात कही है। हालांकि साझा बयान में मनमोहन सिंह ने इस दस्तावेज की अभी समीक्षा नहीं होना बताया है, लेकिन संभवत: इस दस्तावेज की बातें सामने रख दिए जाने के बाद ही मनमोहन सिंह साझा बयान जारी करने पर राजी हुए। हालांकि जिस समय साझा बयान जारी किया गया था उस समय तक पाकिस्तान ने हमलावरों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की थी, लेकिन यूसुफ रजा गिलानी के इस्लामावाद पहुंचते ही 18 जुलाई को 5 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई। यह ठीक है कि उसमें हाफिज सईद का नाम नहीं है। ऐसा लगता है कि हाफिज सईद के मामले में पाकिस्तान गंभीर स्थानीय दबाव में है, इसलिए हाफिज सईद को मुंबई पर हमले से अलग करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन पाकिस्तान की फैडरल जांच एजेंसी ने जकी-उर-रहमान लखवी, जरार शाह, अब्बू अल कामा, हमद अमीन शादिक और शाहिद जमील रियाज के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है।

पांच आतंकवादियों के पाकिस्तान में चार्जशीट होने से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर अब यह आरोप नहीं लग सकता कि उन्होंने मुंबई पर हमला करने की साजिश रचने वालों पर कार्रवाई के बिना बातचीत शुरु कर दी। लेकिन मनमोहन सिंह को इस बात का जबाव तो देना होगा कि उन्होंने उस साझा बयान पर दस्तख्त कैसे किए, जिसमें ब्लूचिस्तान का जिक्र किया गया था। यह कोई पहली बार नहीं हुआ जब पाकिस्तान ने भारत पर ब्लूचिस्तान में आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया हो। यह भी पहली बार नहीं हुआ कि उसने साझा बयान में ब्लूचिस्तान का जिक्र करने का दबाव डाला हो। पाकिस्तान लगातार आरोप लगाता रहा है और साझा बयान में इसका जिक्र करने का दबाव बनाता रहा है। लेकिन मनमोहन सिंह से पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने ना तो इस आरोप पर तव्वजो दी और ना ही साझा बयान में शामिल होने दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास संभवत: इस बात का कोई जबाव नहीं है। लेकिन यूसुफ रजा गिलानी ने इस्लामाबाद पहुंचते ही सबसे पहला बयान यह दिया है कि अब पाकिस्तान भारत को ब्लूचिस्तान में आतंकवादी वारदातें करने का सबूत देगा। कश्मीर को हमेशा बातचीत का केन्द्र बिन्दू बनाने की कोशिश करता रहा पाकिस्तान अब ब्लूचिस्तान को भी हर बातचीत में एजेंडे पर लाकर भारत को बदनाम करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ेगा। अब पाकिस्तान कश्मीर की तरह ब्लूचिस्तान को भी संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाकर भारत को कटघरे में खड़ा करने में कोई परहेज नहीं करेगा। इस लिहाज से मनमोहन सिंह का साझा बयान भारत के लिए नई मुसीबत बन गया है, जिसका मनमोहन सिंह को कोई एहसास नहीं।

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