नेहरू की तरह मनमोहन सिंह भी सीमाओं पर चीन की घुसपैठ को वक्त रहते गंभीरता से नहीं ले रहे। अलबत्ता मीडिया पर घुसपैठ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगा रहे हैं। सीमाओं पर हमारी सतर्कता और तैयारी आपराधिक लापरवाही की सीमा तक चली गई है।
सितम्बर के शुरू में यह खबरें आनी शुरू हुई थी कि लद्दाख में चीनी सेना घुस आई है। पहले-पहल खबर सिर्फ वायु सीमा अतिक्रमण की थी, पर धीरे-धीरे छनकर खबर आई कि कुछ दिन पहले चीनी सेना ने मेकमाहोन रेखा भी पार की थी। यह घटना एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुई थी लेकिन सरकार ने इसे देश की जनता से छुपाए रखा। एक बार चीनी सैनिकों ने हमारे क्षेत्र में घुसकर गडरियों को मारा-पीटा और वहां से चले जाने को कहा। उनका दावा था कि वह क्षेत्र चीन का है, भारत का नहीं। दूसरी बार वे अपने साथ लाल रंग और ब्रुश लाए थे, जिससे उन्होंने पत्थरों पर मेंडरिन भाषा में चीन लिखा।
इस तरह की घटनाए सिर्फ लद्दाख में होती तो समझा जा सकता था कि बर्फीली पहाड़ियों पर सीमाओं का सही-सही अंदाज नहीं होने से गलती हुई होगी। मीडिया में खबरें आने के बाद विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने चीन की हरकतों को हल्का करके दिखाने के लिए तर्क दिया कि चीन ने मेकमाहोन रेखा को कभी सीमा के तौर पर कबूल नहीं किया है इसलिए इस तरह की घटनाएं कभी-कभी होती रहती हैं। चीन की तरफ से सिर्फ लद्दाख में प्रवेश की घटना होती तो इसे गफलत समझ कर छोड़ा भी जा सकता था। लेकिन ठीक इसी तरह की घटनाएं करीब करीब इन्हीं दिनों में अरुणाचल और उत्तराखंड में भी हुई। आमतौर पर ऐसी घटनाओं का कड़ा नोटिस लिया जाता है और सबसे पहले संबंधित देश के राजदूत को बुलाकर आपत्ति दर्ज करवाई जाती है जबकि इस मामले में सरकार की कोशिश मामले को दबाने की रही। विदेश राज्यमंत्री का बयान भारतीय सीमाओं की रक्षा करने वाला नहीं, अलबत्ता सीमाओं के उल्लंघन करने वाले चीन का बचाव करने वाला था। करीब तीन हफ्ते तक सरकार ने लद्दाख, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश से आई खबरों पर कोई तवज्जो नहीं दी। अगर मीडिया घुसपैठ की खबरों को बढ़ा-चढाकर कह रहा था तो रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की ओर से इस पर स्पष्टीकरण जारी किया जाना चाहिए था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1962 में भारत-चीन युध्द का आधार क्या था। नेहरू सरकार चीनी फौज की घुसपैठ को लंबे समय तक नजरअंदाज करती रही थी। धीरे-धीरे प्रवेश करते हुए चीन ने पहले लद्दाख के अक्साइचिन पर कब्जा कर लिया और बाद में अपने नक्शे बदलकर उसमें अक्साइचिन को चीन का हिस्सा बता दिया। नेहरू सरकार इन खबरों को भी नजरअंदाज करती रही थी कि अक्साइचिन को चीन ने अपने नक्शे में शामिल कर लिया है। जिस तरह अब मनमोहन सिंह घुसपैठ की खबरों को बेवजह का तूल बता रहे हैं, उसी तरह की प्रवृत्ति जवाहर लाल नेहरू की भी थी। जवाहर लाल नेहरू भारतीय सीमाओं को लेकर उतने गंभीर भी नहीं थे, जितना उन्हें होना चाहिए था। उन्होंने तो लोकसभा में यहां तक कह दिया था कि उन बर्फीली पहाड़ियों को लेकर इतना चिंतित होने की जरूरत ही क्या है, जहां घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होता। मनमोहन सिंह ने नेहरू जैसा बयान तो नहीं दिया लेकिन सीमाओं को लेकर उनकी लापरवाही नेहरू से कम नहीं है।
शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद सात रेसकोर्स में शुरू हुई इफ्तार पार्टी में चीन के राजदूत यान भी मौजूद थे। पिछले बीस दिनों में मनमोहन सिंह ने चीनी घुसपैठ पर अपना मुंह नहीं खोला था, लेकिन जैसे ही मौका मिला पत्रकारों ने उनसे सीमाओं का हाल जानने की कोशिश की। उनकी टिप्पणीं हैरान करने वाली थी। उन्होंने कहा- 'सरकार की सूचना प्रणाली में कमी हो सकती है, जिस कारण मीडिया में घुसपैठ की खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।' उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार को घुसपैठ की कोई जानकारी नहीं है। सवाल खड़ा होता है कि टीवी चैनलों पर मेंडरिन भाषा में लाल रंग से लिखे दिखाए गए पत्थर क्या नकली हैं? गडरिए का चैनल पर आकर चीनी सैनिकों की ओर से धमकाने और मारने-पीटने की पुष्टि करना भी क्या नकली है? अगर ये दोनों बातें नकली हैं तो सेनाध्यक्ष की ओर से चीनी हेलीकाप्टरों के भारतीय सीमा के उल्लंघन का खुलासा भी क्या नकली था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीनी घुसपैठ को नजरअंदाज करने का रवैया अपनाकर जवाहर लाल नेहरू की गलती दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। मनमोहन सिंह का अनुभव सिर्फ आर्थिक (और अब पांच साल से राजनीतिक) रहा है, इसलिए उन्हें पड़ोसी देशों के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन कर लेना चाहिए। मौका देखकर पड़ोसी देशों की जमीन हथियाना चीन की आदत में शुमार रहा है। सिर्फ तिब्बत और हमारा अक्साइचिन ही दो उदाहरण नहीं हैं। तिब्बत देश और भारतीय अक्साइचिन क्षेत्र हड़पने के बाद साठ के ही दशक में चीन ने म्यांमार में भी यही किया था। फिलीपींस में भी 1995 में इसी तरह की घुसपैठ कर उसने फिलीपींस की जमीन हड़प ली थी। उसने बड़ी खामोशी से मिसचिफ रीफ के समुद्री द्वीप पर कब्जा कर लिया, जबकि वह फिलीपींस का हिस्सा था।
मैंने 1986 में चीन की ओर से लाहौल-स्पीति में घुसपैठ का नायाब तरीका अपनाने का खुलासा किया था। खुद उस क्षेत्र का दौरा कर मैंने देखा था कि चीन की निगाह भारत के साथ सिर्फ चार महीने सड़क मार्ग से जुड़े रहने वाले रोहतांग पार इलाके पर टिकी है। चीन ने वहां चीनी लड़कियां भेजकर वंश बदलने की रणनीति शुरू कर दी थी। मैं खुद वहां ऐसी कई चीनी लड़कियों से मिला था जो शादी करके वहां रह रही थीं। लौटकर मैंने इस पर विस्तृत रिपोर्ट लिखी, जिसे उस समय भाजपा के सांसद प्यारे लाल खंडेलवाल ने राज्यसभा में उठाया था। गृहराज्यमंत्री कुमुद बेन जोशी ने अपने लिखित जवाब में खुफिया एजेंसियों के हवाले से इस रहस्योद्धाटन की पुष्टि की थी। पचास के दशक में लाहौल स्पीति को सड़क मार्ग से पूरा साल जोड़ने के लिए सुरंग बनाने की एक योजना तैयार की गई थी। लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने इसे खर्चे का सौदा बताकर खारिज कर दिया था। प्यारे लाल खंडेलवाल के सवाल पर संसद में सुरंग बनाने का मुद्दा जोर-शोर से उठा, लेकिन बात फिर आई-गई हो गई। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन से रिश्ते भी सुधारे, सीमाओं की सुरक्षा पर ध्यान भी दिया। उन्होंने 1700 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली सुरंग परियोजना को मंजूरी देकर 2003 में नींव पत्थर भी रख दिया था, लेकिन 2004 से निर्माण फिर खटाई में है। यह सीमाओं के प्रति गंभीरता का एक उदाहरण है, जबकि चीन ने भारत के साथ लगती सभी सीमाओं पर अपना इंफ्रास्टक्चर इतना मजबूत कर लिया है कि कई जगह पर तो आठ-दस किलोमीटर दूर तक सड़क बना ली है। तिब्बत में लहासा तक ट्रेन पहुंच चुकी है, लेकिन हमने 1962 के बाद भी अब तक चीनी सीमाओं पर इंफ्रास्टक्चर पर कोई ध्यान नहीं दिया। हमने लद्दाख में तीन और अरुणाचल प्रदेश में आठ एडवांस लैडिंग ग्राउंड ही शुरू किए हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर सेना और साजो सामान हवाई मार्ग से पहुंचाया जा सके। चीनी सीमा पर सरकार की लापरवाही राष्ट्रीय अपराध है। जो आगे चलकर देश के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है। दोस्ती में हर्ज नहीं, लेकिन मुल्कों में दोस्ती भी सतर्कता से की जाती है। पड़ोसी मुल्कों में चीन की कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक घुसपैठ के मुकाबले हमारी कूटनीतिक विफलताओं के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। हम भारत के हितों की रक्षा करने की बजाए मुद्दई से ज्यादा चुस्त होकर उसके गवाह बन रहे हैं। चीन अपने पंख फैला रहा है, वह ईरान-पाक-भारत पाईप लाइन की जगह ईरान-पाक-चीन गैस पाईप लाईन की कोशिशों में जुट गया है। चीन ने लंका में हबानटोटा बंदरगाह के विकास का ठेका हासिल किया है। वह पाकिस्तान और म्यांमार में भी विकास कार्यों में शामिल है। चीन सिर्फ अपनी सीमाओं से नहीं, बल्कि अपने बाकी पड़ोसी देशों की सीमाओं से भी हमारी घेरेबंदी में जुटा हुआ है। वह हमारे पड़ोसी देशों में अपना रणनीतिक मार्ग बना रहा है। अफसोस कि हमारे प्रधानमंत्री मीडिया की सतर्कता को गंभीरता से नहीं ले रहे। जवाहर लाल नेहरू ने जब कहा था कि अक्साइचिन में घास के तिनका भी नहीं उगता तो संसद में उन्हें कांग्रेस के ही सांसद महावीर त्यागी ने टोका था, लेकिन अफसोस है कि आज कांग्रेस का कोई सांसद भी उन्हें टोकने वाला नहीं है।
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