Diplomacy

Analysis of National and International Political Scenario

खाद्यान्न समस्या का दूसरा पहलू

Publsihed: 03.May.2008, 20:39


अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत के नव धनाढय मध्यम आय वर्ग को पेटू बताकर कुछ नया नहीं कहा। यही बात भारत के मंत्री प्रफुल्ल पटेल पहले ही कह चुके हैं।

बड़े पेट के भरन को है रहीम देख बाढ़ि
यातें हाथी हहरि कै दप दा दांत दे काढ़ि

कविवर रहीम कहे हैं कि जो आदमी बड़ा है वह अपना दु:ख अधिक दिन तक छुपा नहीं सकता। क्योंकि उसकी संपन्नता लोगों ने देखी होती है, जब उसके रहन-सहन में गिरावट आने लगती है तो उसके दु:ख का फौरन पता चल जाता है। हाथी के दो दांत इसलिए बाहर निकले होते हैं, क्योंकि वह अपनी भूख बर्दास्त नहीं कर सकता। एक ब्लाग पर पढ़ा रहीम का यह दोहा अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर हू-ब-हू लागू होता है।

कौन मानता है तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग

Publsihed: 05.Apr.2008, 20:43

तिब्बत और जम्मू कश्मीर पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की दो महान गलतियां हमारी कूटनीतिक अपरिपक्वता का पीछा नहीं छोड़ रही। राजा हरि सिंह शुरू में जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र रखने के पक्ष में थे। लेकिन पाकिस्तान ने कबायलियों को आगे करके कश्मीर पर कब्जे की कोशिश शुरू की तो राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और विभिन्न नेताओं के दखल से कश्मीर का भारत में विलय कर दिया। गृहमंत्री सरदार पटेल ने पाकिस्तान की ओर से हड़पा हुआ क्षेत्र वापस लेने के लिए फौज भिजवा दी थी, लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने माउंटबेटेन की सलाह पर यह मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया। जिसमें ब्रिटेन और अमेरिका ने भारत का साथ नहीं दिया, अलबत्ता जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह का फैसला करवा दिया। तब से हड़पा हुआ जम्मू कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है।

ओलंपिक के बहाने तिब्बत का दर्द

Publsihed: 15.Mar.2008, 20:40

दुनिया के ज्यादातर हिस्सों पर राज करने की ख्वाहिश ने 19वीं सदी तक लाखों-करोड़ों बेगुनाहों का खून बहाया है। पंद्रहवीं सदी में मुगल भी हिंदोस्तान पर राज करने की ख्वाहिश लेकर भारत आए थे और उन्होंने हिंदू राजाओं के साथ युध्द करके विस्तारवादी मुहिम जारी रखी। मुगल हिंदोस्तान के ज्यादातर हिस्से पर काबिज हो गए थे, तभी ब्रिटिश विस्तारवादी शासकों की निगाह भारत पर पड़ी। ठीक इसी तरह तिब्बत पर कभी सिंघाई और कभी मंगोलिया काबिज होते रहे। मंगोलिया के तिब्बत छोड़कर जाने के बाद वहां के कुछ हिस्से पर सिंघाई का राज था। लेकिन तिब्बतियों का आजादी के लिए संघर्ष कभी भी रुका नहीं।

असली लोकतंत्र तो है अमेरिका में

Publsihed: 07.Feb.2008, 20:45

भारत में अमेरिकी चुनाव पर इतनी दिलचस्पी पहले नहीं देखी गई, जितनी इस बार देखी जा रही है। लोग हैरान हैं कि दो साल पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पिछले कुछ महीनों से डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां अपने उम्मीदवारों का फैसला करने की प्रक्रिया अपना रही हैं। उम्मीदवार चयन की यह प्रक्रिया सितंबर के पहले हफ्ते में खत्म होगी। डेमोक्रेटिक पार्टी का अधिवेशन डेनेवर, कोलोरेडो में 25 से 28 अगस्त तक होगा, जबकि रिपब्लिकन अधिवेशन मिन्नियापालिस, सेंटपाल, मिनेसोटा में पहली से चार सितंबर तक रखा गया है। इसके बाद राष्ट्रपति का चुनाव 4 नवंबर को होगा और चुना गया राष्ट्रपति 20 जनवरी 2009 को शपथ लेगा। उम्मीदवारों के चयन की इस प्रक्रिया को देखकर स्पष्ट है कि भारतीय राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र के मामले में अभी कितनी पिछड़ी हुई हैं।

भारत की ताकत का लोहा चीन ने माना

Publsihed: 14.Jan.2008, 21:24

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन यात्रा को काफी हद तक सफल कहना उचित रहेगा। ऐसे बहुत कम मौके आते हैं, जब किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के दूसरे देश की यात्रा के दौरान कोई विवाद खड़ा होता हो। हाल ही के वर्षों की ऐसी दो घटनाएं तो गिनाई जा सकती हैं। पहली घटना डेनमार्क की है, जब डेनमार्क के प्रधानमंत्री एंडर्स फोग ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस के समय भारत से सीमा पर तनाव घटाकर पाकिस्तान से बातचीत करने की गुहार लगाई। विवाद इतना जोर पकड़ गया था कि भारत ने कड़ा एतराज जताया और अगले दिन की साझा प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री फोग ने पाकिस्तान पर घुसपैठ रोकने का दबाव बनाने की बात कही।

दोस्त, दुश्मन की पहचान जरूरी

Publsihed: 01.Jan.2008, 20:40

हम भारतीय इतने सुसंस्कारित हैं कि मरे हुए व्यक्ति की बुराईयां नहीं देखते। ऐसा नहीं कि ऐसी सुसंस्कृति अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की नहीं। आखिर भारत और पाकिस्तान एक ही देश के विभाजन से ही तो बने हैं। धर्म और पूजा पध्दति को छोड़ दें, तो दोनों देशों की संस्कृति, भाषा-बोली, रहन-सहन एक जैसा ही है। इसीलिए बेनजीर भुट्टो की हत्या पर हम भारतीयों को गहरा सदमा लगा। भले ही बेनजीर ने कभी भी भारत के साथ दोस्ती की वैसी पैरवी नहीं की, जैसी नवाज शरीफ ने की। या कारगिल की साजिश रचने के बाद परवेज मुशर्रफ भी करते रहे हैं। हालांकि मेरे जैसे करोड़ाें भारतीय परवेज मुशर्रफ पर भरोसा नहीं करते, वह बाकी पाकिस्तानी शासकों से कहीं ज्यादा मक्कार और जुबान के कच्चे हैं।

शोले बन गये आग, बेनजीर की हत्या (संशोधित)

Publsihed: 29.Dec.2007, 17:18

पाकिस्तान की मशहूर लेखिका सादिका ने हाल ही में अपने एक लेख में लिखा था कि पाकिस्तान में शोले दहक रहे हैं और कभी भी आग भड़क उठेगी। इसका अंदाज पिछले हफ्ते 21 दिसम्बर को भी लगा था जब आफताब अहमद खान शेरपाओ पर उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत में उस समय गोली मारी गई थी, जब वह मस्जिद में बकरीद की नमाज पढ़ रहे थे। बाल-बाल बच गए आफताब अहमद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता थे, लेकिन बेनजीर भुट्टो के पाकिस्तान छोड़कर इंग्लैंड में जा बसने के बाद परवेज मुशर्रफ से जा मिले थे और हाल ही तक पाकिस्तान के गृहमंत्री थे। अभी एक हफ्ता भी नहीं बीता कि पीपीपी की अध्यक्ष बेनजीर भुट्टो को गोली मार दी गई। दोनों ही आतंकी वारदातों के पीछे स्वात घाटी में सक्रिय अल कायदा से जुड़े तालिबान कमांडर बेतुल्लाह मसूद का हाथ होने का शक है। असल में बेतुल्लाह मसूद अमेरिका समर्थक पाकिस्तानी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। पाकिस्तान के एक बड़े वर्ग का मानना है कि राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और बेनजीर भुट्टो अमेरिका के हितों की रक्षा कर रहे हैं, जिससे इस्लाम का नुकसान हो रहा है। इसलिए बार-बार मुशर्रफ और बेनजीर पर आतंकवादी हमले हो रहे थे।

शोले बन गये आग, बेनजीर की हत्या

Publsihed: 27.Dec.2007, 20:41

पाकिस्तान की मशहूर लेखिका सादिका ने हाल ही में अपने एक लेख में लिखा था कि पाकिस्तान में शोले दहक रहे हैं और कभी Benazir Bhuttoभी आग भड़क उठेगी। इसका अंदाज पिछले हफ्ते 21 दिसम्बर को भी लगा था जब आफताब अहमद खान शेरपाओ पर उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत में उस समय गोली मारी गई थी, जब वह मस्जिद में बकरीद की नमाज पढ़ रहे थे। आफताब अहमद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता थे, लेकिन बेनजीर भुट्टो के पाकिस्तान छोड़कर इंग्लैंड में जा बसने के बाद परवेज मुशर्रफ से जा मिले थे और हाल ही तक पाकिस्तान के गृहमंत्री थे। अभी एक Benazir Bhuttoहफ्ता भी नहीं बीता कि पीपीपी की अध्यक्ष बेनजीर भुट्टो को गोली मार दी गई। दोनों ही बड़े नेताओं की हत्याओं के पीछे स्वात घाटी में सक्रिय अल कायदा से जुड़े तालिबान कमांडर बेतुल्लाह मसूद का हाथ होने का शक है। असल में बेतुल्लाह मसूद अमेरिका समर्थक पाकिस्तानी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। पाकिस्तान के एक बड़े वर्ग का मानना है कि राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और बेनजीर भुट्टो अमेरिका के हितों की रक्षा कर रहे हैं, जिससे इस्लाम का नुकसान हो रहा है। इसलिए बार-बार मुशर्रफ और बेनजीर पर आतंकवादी हमले हो रहे थे।

शोलों पर पाकिस्तान

Publsihed: 21.Dec.2007, 20:40

बत्तीस साल पहले फरवरी 1975 में हयात मोहम्मद खान शेरपाओ पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में आतंकवाद का शिकार हुए। उनकी याद में शेरपाओ की जामियां मस्जिद के पास ही एक गुम्बंद बनाया गया। बत्तीस साल बाद 21 दिसम्बर 2007 को मोहम्मद खान शेरपाओ के बेटे आफताब अहमद खान शेरपाओ पर जामियां मस्जिद में उस समय आत्मघाती हमला हुआ, जब वह बकरीद की नमाज अदा कर रहे थे। आफताब अहमद हाल ही तक पाकिस्तान के गृह मंत्री थे और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बेहद करीबियों में माने जाते हैं। बेनजीर भुट्टो के पाकिस्तान से बाहर चले जाने के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी में फूट पड़ी और एक खेमा परवेज मुशर्रफ के साथ जा मिला था।

क्या होगा परवेज मुशर्रफ का

Publsihed: 02.Dec.2007, 07:06

आठ जनवरी को होने वाले पाकिस्तान के चुनावों के लिए चीन से बनवाई गई मतदान पेटियां पहुंच चुकी हैं। चुनावों से पहले अमेरिका ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के सामने वर्दी उतारने और आपातकाल हटाने की शर्तें रखी थीं। इनमें वर्दी उतारने की पहली शर्त पूरी हो चुकी है। और आपातकाल हटाने की दूसरी शर्त सोलह दिसंबर को पूरी करने का वादा है। वर्दी उतारते समय परवेज मुशर्रफ बहुत असहज महसूस कर रहे थे, जिससे स्पष्ट था कि उन्हें कितनी मजबूरी में यह करना पड़ रहा है।