शोलों पर पाकिस्तान

Publsihed: 21.Dec.2007, 20:40

बत्तीस साल पहले फरवरी 1975 में हयात मोहम्मद खान शेरपाओ पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में आतंकवाद का शिकार हुए। उनकी याद में शेरपाओ की जामियां मस्जिद के पास ही एक गुम्बंद बनाया गया। बत्तीस साल बाद 21 दिसम्बर 2007 को मोहम्मद खान शेरपाओ के बेटे आफताब अहमद खान शेरपाओ पर जामियां मस्जिद में उस समय आत्मघाती हमला हुआ, जब वह बकरीद की नमाज अदा कर रहे थे। आफताब अहमद हाल ही तक पाकिस्तान के गृह मंत्री थे और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बेहद करीबियों में माने जाते हैं। बेनजीर भुट्टो के पाकिस्तान से बाहर चले जाने के बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी में फूट पड़ी और एक खेमा परवेज मुशर्रफ के साथ जा मिला था।

आफताब अहमद पीपीपी के उस खेमे के अध्यक्ष हैं। आफताब तो बाल-बाल बच गए लेकिन पचास से ज्यादा नमाजी मारे गए। परवेज मुशर्रफ के समर्थकों पर आतंकवादी हमले अब तेज हो चुके हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में जब तक वह घरेलू कट्टरपंथियों को निशाना बनाए बिना अमेरिका का साथ दे रहे थे, तब तक पाक के कट्टरपंथी आतंकवादियों को कोई ज्यादा लेना-देना नहीं था लेकिन अमेरिका के दबाव में परवेज मुशर्रफ ने जब अफगानिस्तान से लगते उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में आतंकवादियों पर शिकंजा कसा, तो परवेज मुशर्रफ ही नहीं बल्कि उनके सभी समर्थक अलकायदा के निशाने पर आ गए हैं। बेनजीर भुट्टो भी संभवत: इसीलिए आतंकवादियों के निशाने पर आई क्योंकि उन्होंने अमेरिका और परवेज मुशर्रफ से समझौता करके पाकिस्तान में प्रवेश किया।

भारत और अमेरिका में ऐसा मानने वालों की अच्छी-खासी तादाद है कि परवेज मुशर्रफ आतंकवाद के खिलाफ ईमानदारी से लडने की बजाए सिर्फ अपनी कुर्सी की रक्षा कर रहे थे। परवेज मुशर्रफ की आतंकवाद के खिलाफ चल रही अंतरराष्ट्रीय लड़ाई में प्रतिबध्दता के बावजूद अफगानिस्तान से जुड़े पाकिस्तानी इलाकों में अलकायदा की जड़ें मजबूत हुई हैं। अमेरिका दुनियाभर में लोकतंत्र की दुहाई देता है, लेकिन पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ ने जब सुप्रीम कोर्ट का गला घोंटा तो अमेरिकी राष्ट्रपति बुश की तरफ से कोई धमकी नहीं आई जबकि दुनिया के बाकी देशों में इस तरह की स्थिति पैदा होने पर अमेरिका का दबाव बढ़ जाता है। अब पाकिस्तान के वकील भी अमेरिका से मांग कर रहे हैं कि वह परवेज मुशर्रफ की आतंकवाद के खिलाफ जंग की असलियत को समझें। अमेरिका की कई खुफिया एजेंसियां भी ओसामा बिन लादेन और उनके समर्थकों के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में छिपे होने की रिपोटे देते रहते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि अगर पाकिस्तान की सरकार ईमानदार हो, तो ओसामा बिन लादेन और उनके समर्थकों का पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं। परवेज मुशर्रफ भी यह कह चुके हैं कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में हो सकते हैं।

पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली के चुनावों का बिगुल बज चुका है, हालांकि जिस तरह चुनाव करवाए जा रहे हैं, उसकी निष्पक्षता पर पाकिस्तान ही नहीं, अलबत्ता पूरी दुनिया में सवाल उठाया जा रहा है। यूरोपियन यूनियन ने तो निष्पक्षता पर सवाल उठाया ही है, अमेरिका की मानवाधिकार संस्थाएं भी सवाल उठा रही हैं। जिस तरह पांच साल पहले चुनावों की नौटंकी हुई थी, निष्पक्ष प्रवेक्षकों का मानना है कि इस बार भी चुनावों की नौटंकी ही होगी, जिसमें सरकारी अमला परवेज मुशर्रफ के समर्थकों की जीत सुनिश्चित करेगा। परवेज मुशर्रफ ने वर्दी उतारने के बाद नागरिक राष्ट्रपति की शपथ लेने के बावजूद अपने समर्थकों को जिताने के लिए खुलेआम बयान देकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। इसीलिए परवेज मुशर्रफ के वर्दी उतारने, नागरिक राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने और आपात स्थिति हटाए जाने के बावजूद राष्ट्रमंडल मंत्रिमंडलीय समूह पाकिस्तान का निलंबन रद्द करने के लिए आम सहमति पर नहीं पहुंचा है। परवेज मुशर्रफ ने जब 1999 में नवाज शरीफ का तख्ता पलटकर सत्ता पर कब्जा किया था तो राष्ट्रमंडल ने पाकिस्तान की सदस्यता निलंबित कर दी थी। पांच साल बाद जब परवेज मुशर्रफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुए, तब जाकर पाकिस्तान की सदस्यता बहाल की गई। अब सुप्रीम कोर्ट के दबाव में परवेज मुशर्रफ ने भले ही अपनी वर्दी उतार दी है, लेकिन न्यायपालिका का गला घोंट दिया है। उन्होंने कानून के राज को खत्म कर दिया है, संविधान में मनमाफिक रद्दोबदल कर दिया है, सेना को असीमित अधिकार दे दिए हैं, मीडिया पर पाबंदियां लगा दी हैं और चुनाव जीतने के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। परवेज मुशर्रफ ने जब आपात स्थिति लगाकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को नजरबंद कर लिया था तो 22 नवम्बर को राष्ट्रमंडल से पाकिस्तान को फिर निलंबित कर दिया गया था। हालांकि परवेज मुशर्रफ ने अब आपात स्थिति को हटा दिया है, लेकिन इस बीच उन्होंने लोकतंत्र को जितना नुकसान पहुंचाया है, उससे राष्ट्रमंडल देश पाकिस्तान का निलंबन रद्द करने के पक्ष में दिखाई नहीं देते। अब राष्ट्रमंडल के ज्यादातर देशों की भी राय बन रही है कि परवेज मुशर्रफ की नीतियां लोकतंत्र विरोधी हैं और पाकिस्तान में आतंकवादियों को बढ़ावा दे रही हैं। राष्ट्रमंडल के हरारे सम्मेलन में मानवाधिकारों, कानून के राज और मूलभूत राजनीतिक मर्यादाओं पर बल दिया गया था। चार साल पहले अबूजा में हुए राष्ट्रमंडल देशों के सम्मेलन में तय किया गया था कि निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतांत्रिक प्रशासन का मूल आधार होंगी। इसलिए मौजूदा हालात में पाकिस्तान की राष्ट्रमंडल में वापसी संभव दिखाई नहीं देती। राष्ट्रमंडल की सदस्यता बहाली या निलंबन से पाकिस्तान की सेहत पर कोई ज्यादा असर तो नहीं पड़ता लेकिन परवेज मुशर्रफ के गैर लोकतांत्रिक तौर-तरीकों पर अमेरिकी राष्ट्रपति बुश की सहमति जरूर सवालों के घरे में आती है। पाकिस्तान में आठ जनवरी को चुनाव होने वाले हैं, लेकिन इन चुनावों से पहले ही यह हवा बनने लगी है कि चुनाव 2002 जैसे ही होंगे और परवेज मुशर्रफ बिना बाधा बने रहेंगे। इस आम धारणा के चलते कट्टरपंथियों ने अपने हमले तेज कर दिए हैं और आने वाले समय में आतंकी गतिविधियां और बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान की मशहूर लेखिका सादिका ने अपने एक लेख में लिखा है कि पाकिस्तान में शोले दहक रहे हैं और कभी भी आग भड़क उठेगी।

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