असली लोकतंत्र तो है अमेरिका में

Publsihed: 07.Feb.2008, 20:45

भारत में अमेरिकी चुनाव पर इतनी दिलचस्पी पहले नहीं देखी गई, जितनी इस बार देखी जा रही है। लोग हैरान हैं कि दो साल पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। पिछले कुछ महीनों से डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां अपने उम्मीदवारों का फैसला करने की प्रक्रिया अपना रही हैं। उम्मीदवार चयन की यह प्रक्रिया सितंबर के पहले हफ्ते में खत्म होगी। डेमोक्रेटिक पार्टी का अधिवेशन डेनेवर, कोलोरेडो में 25 से 28 अगस्त तक होगा, जबकि रिपब्लिकन अधिवेशन मिन्नियापालिस, सेंटपाल, मिनेसोटा में पहली से चार सितंबर तक रखा गया है। इसके बाद राष्ट्रपति का चुनाव 4 नवंबर को होगा और चुना गया राष्ट्रपति 20 जनवरी 2009 को शपथ लेगा। उम्मीदवारों के चयन की इस प्रक्रिया को देखकर स्पष्ट है कि भारतीय राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र के मामले में अभी कितनी पिछड़ी हुई हैं।

अपने यहां संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री का चयन या तो परिवारवाद पर आधारित होता है, या राजनीतिक दांव-पेंच के जरिए होता है। जबकि राष्ट्रपति के उम्मीदवार का फैसला तो चंद नेता ही बंद कमरे में बैठकर राजनीतिक दांव-पेंच के जरिए कर लेते हैं।

अमेरिका में राजनीतिक दलों में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने के लिए प्राइमरीज (जो चुनाव प्रक्रिया फिलहाल चल रही है) की शुरूआत बीसवीं सदी में प्रगतिशील आंदोलन से हुई। उन दिनों भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे सुधारवादियों ने अपने ही पार्टी के राजनीतिक दिग्गजों और बड़े व्यापारिक संस्थानों के आपसी संबंधों का विरोध किया। जनता की सरकार चुनने के लिए प्राइमरी चुनाव उनके सुधारवादी कार्यक्रमों का हिस्सा बन गया। फ्लोरिडा ने सबसे पहले 1901 में बाकायदा प्राइमरी चुनाव का कानून बनाया जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए प्रतिनिधि चुनने का विकल्प दिया गया। लेकिन तब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों का नाम तय करने का प्रावधान नहीं था। राष्ट्रपति पद के लिए सबसे पहले 1910 में ओरेगन में कानून बना। दो सालों के भीतर दर्जनभर राज्यों ने ऐसे कानून बना लिए। इस साल होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में 41 राज्यों में यह प्रक्रिया अपनाई जाएगी जबकि बाकी के नौ राज्यों में काकस बैठकें होंगी जिनमें उम्मीदवारों का चयन होगा।हालांकि पांच फरवरी को करीब 22 राज्यों में हुए प्राइमरी चुनावों से यह स्पष्ट हो गया है कि रिपब्लिकन पार्टी की ओर से जोहन मैककेन का पलड़ा भारी है और वही उम्मीदवार होंगे। लेकिन दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी है। दूसरी तरफ डेमोक्रेट के उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया काफी रोचक हो गई है क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन और अफ्रीकी मूल के बाराक ओबामा में अभी भी कड़ी टक्कर चल रही है। दोनों प्रमुख पार्टियों में उम्मीदवार का चयन करने की प्रक्रिया अलग-अलग है। जहां डेमोक्रेट हर राज्य के मिले हुए वोट को ही उम्मीदवार के पक्ष में गिनते हैं, वहां रिपब्लिकन में जिस उम्मीदवार का पलड़ा भारी होता है, उस राज्य के सारे वोट उसके पक्ष में गिने जाते हैं। जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी तो दोनों पार्टियों की ओर से छह-छह उम्मीदवार मैदान में थे। पांच फरवरी को 22 राज्यों के प्राइमरी चुनाव की प्रक्रिया खत्म होने के बाद साफ हो गया है कि डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन और बाराक ओबामा उम्मीदवार चुनेंगे। डेमोक्रेटस का वही उम्मीदवार होगा जिसे 2025 वोट मिलेंगे। पांच फरवरी को 1678 प्रतिनिधियों ने वोट डाले हैं। जिसमें से हिलेरी क्लिंटन को 845 वोट हासिल हो चुके हैं और ओबामा को 765 वोट। लेकिन इस चुनाव प्रक्रिया का दूसरा पहलू यह है कि ओबामा को 14 राज्यों में जीत हासिल हुई है, जबकि हिलेरी क्लिंटन को सिर्फ आठ राज्यों में। हिलेरी क्योंकि कैलीफोर्निया और न्यूयार्क जैसे बड़े राज्यों में जीत गई है इसलिए उसके वोट ज्यादा हैं। दोनों में लड़ाई इसीलिए टक्कर की मानी जा रही है। मजेदार बात यह है कि हिलेरी क्लिंटन भले ही अपने गृहराज्य न्यूयार्क में जीत गई हैं, लेकिन ओबामा ने भी न्यूयार्क में अच्छे-खासे वोटों में सेंध लगाई है जबकि ओबामा के राज्य लियोनोइस में हिलेरी की दाल नहीं गली। कुल मिलाकर देखा जाए तो हिलेरी क्लिंटन को महिलाओं और युवाओं का समर्थन मिल रहा है। जबकि ओबामा को अश्वेत बहुल्य राज्यों का समर्थन मिल रहा है। रिपब्लिकन की ओर से भले ही अभी तीन उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मोटे तौर पर जोहन मैककेन का पलड़ा भारी हो चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में बुश की पार्टी के उम्मीदवार मैककेन चुने गए तो वह अपनी पहली पारी में देश के पहले सबसे ज्यादा उम्र के राष्ट्रपति बन जाएंगे। उनका जन्म 29 अगस्त 1936 में हुआ था। मैककेन का जीवन संघर्ष भरा रहा है। उनके दादा और पिता अमेरिकी सेना में थे। उन्होंने खुद भी सैनिक के तौर पर अपना जीवन शुरू किया और वियतनाम युध्द में अमेरिकी नौसेना के पायलट थे, 1967 में जब उनका विमान गिरा दिया गया तो उनका दायां घुटना और दोनों हाथ टूट गए। वह पांच साल तक युध्द बंदी रहे, उन पर अमानवीय अत्याचार किए गए, तो वह टूट गए थे और उन्होंने फांसी लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। अभी भी उन्हें अपने हाथ ऊपर तक उठाने में तकलीफ होती है। पिछले साल जब अमेरिकी राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई तो वह काफी पीछे थे, एक स्थिति तो यह आ गई थी कि अपने अभियान के लिए उन्हें पैसे की कमी आ गई और उन्होंने तीन मिलियन डालर का कर्ज लिया है। अगर कर्ज उतारने से पहले उनकी मौत हो गई तो कर्ज की अदायगी जीवनबीमा कंपनी करेगी क्योंकि उन्होंने बैंक की शर्तें पूरी करने के लिए कर्ज के बराबर पॉलिसी ली है।

अमेरिका में मोटे तौर पर दो दलीय चुनाव प्रणाली है, क्षेत्रीय दल नहीं हैं, इसलिए भारत की तरह गठबंधन सरकार की कोई गुंजाइश नहीं बचती। एक हिसाब से राष्ट्र को एक बनाए रखने के लिए यह प्रणाली काफी हद तक सही है। अमेरिकी रिपब्लिकन की तुलना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से की जा सकती है, जबकि डेमोक्रेट्स की तुलना भारतीय जनता पार्टी से की जा सकती है। रिपब्लिकन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के साथ भारत के मौजूदा कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पटरी इसीलिए बैठ रही है और अमेरिका के पूर्व डेमोक्रेट राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पटरी इसीलिए अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बैठती थी। अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का मुख्य मुद्दा अभी स्पष्ट नहीं हुआ है, हो सकता है कि इराक युध्द ही चुनाव का मुख्य मुद्दा बने। डेमोक्रेट उम्मीदवार का पलड़ा भारी होने की वजह भी यही दिखाई दे रही है, क्योंकि पिछला राष्ट्रपति चुनाव जीत जाने के बावजूद बुश की इराक नीति को अमेरिका में पसंद नहीं किया गया। अब तो बुश की इराक नीति को ही अमेरिका की मौजूदा आर्थिक मंदी की वजह माना जा रहा है और इसी का गुस्सा रिपब्लिकन पार्टी को झेलना पड़ सकता है। पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग भी चुनावी मुद्दा बन सकते हैं, लेकिन यह सब तय होगा सितंबर और नवंबर के बीच। फिलहाल डेमोक्रेट का पलड़ा इसलिए भारी दिखाई दे रहा है क्योंकि अमेरिकी अपनी मौजूदा आर्थिक समस्याओं के लिए रिपब्लिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश की अफगानिस्तान और इराक नीति को जिम्मेदार मान रहे हैं। डेमोक्रेट्स की तरफ से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि उनके सत्ता में आने पर इराक नीति में बदलाव होगा। लेकिन रिपब्लिकन उम्मीदवार जोहन मैककेन ने अपनी नीति स्पष्ट नहीं की है। रिपब्लिकन जोहन मैककेन जीते तो वह सबसे ज्यादा उम्र के और संघर्षशील जीवन से निकलने वाले राष्ट्रपति बनेंगे जबकि डेमोक्रेट्स की हिलेरी क्लिंटन जीती तो वह पहली महिला राष्ट्रपति होंगी। डेमोक्रेट्स के ही ओबामा जीते तो वह पहले अश्वेत राष्ट्रपति होंगे। इसलिए यह चुनाव अपने आप में इतिहास रचने वाला चुनाव होगा।

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