पाकिस्तान की मशहूर लेखिका सादिका ने हाल ही में अपने एक लेख में लिखा था कि पाकिस्तान में शोले दहक रहे हैं और कभी भी आग भड़क उठेगी। इसका अंदाज पिछले हफ्ते 21 दिसम्बर को भी लगा था जब आफताब अहमद खान शेरपाओ पर उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत में उस समय गोली मारी गई थी, जब वह मस्जिद में बकरीद की नमाज पढ़ रहे थे। आफताब अहमद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता थे, लेकिन बेनजीर भुट्टो के पाकिस्तान छोड़कर इंग्लैंड में जा बसने के बाद परवेज मुशर्रफ से जा मिले थे और हाल ही तक पाकिस्तान के गृहमंत्री थे। अभी एक हफ्ता भी नहीं बीता कि पीपीपी की अध्यक्ष बेनजीर भुट्टो को गोली मार दी गई। दोनों ही बड़े नेताओं की हत्याओं के पीछे स्वात घाटी में सक्रिय अल कायदा से जुड़े तालिबान कमांडर बेतुल्लाह मसूद का हाथ होने का शक है। असल में बेतुल्लाह मसूद अमेरिका समर्थक पाकिस्तानी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। पाकिस्तान के एक बड़े वर्ग का मानना है कि राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और बेनजीर भुट्टो अमेरिका के हितों की रक्षा कर रहे हैं, जिससे इस्लाम का नुकसान हो रहा है। इसलिए बार-बार मुशर्रफ और बेनजीर पर आतंकवादी हमले हो रहे थे।
असल में पाकिस्तान की राजनीति समझने वाले जानते हैं कि वहां पर तालिबान और आईएसआई का अमेरिका के खिलाफ गठजोड़ हो चुका है। बेनजीर भुट्टो दो साल बाद 18 अक्टूबर को पाकिस्तान लौटीं तो करांची में ही उन पर जानलेवा हमला हुआ लेकिन तब वह बाल-बाल बच गई थीं। तब से ही आशंका जताई जा रही थी कि आने वाले समय में बेनजीर पर फिर हमला होगा।
बेनजीर भुट्टो के परिवार की तुलना काफी हद तक इंदिरा गांधी के परिवार से की जा सकती है। बेनजीर भुट्टो के दादा सर शाहनवाज भुट्टो की भी गोली मारकर हत्या की गई थी। बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को जिया उल हक ने फांसी पर चढ़ा दिया था। बेनजीर के दोनों भाई फ्रांस में मारे गए थे और इस बात का राज अब तक नहीं खुला है कि उन दोनों की हत्या किसने करवाई। पाकिस्तान की राजनीति के जानकार मानते हैं कि बेनजीर भुट्टो के दोनों भाईयों की हत्या वहीं की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने करवाई थी। पाकिस्तानी फौज और आईएसआई हमेशा से ही भुट्टो परिवार के खिलाफ रहीं हैं और बेनजीर की हत्या में भी आईएसआई और तालिबान के गठजोड़ को नकारा नहीं जा सकता। आजादी के बाद से पाकिस्तान में राजनीतिक हत्याएं होती रहीं हैं, यह सिलसिला थमने की बजाए और तेज हो गया है। खासकर अफगानिस्तान से लगते उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में साठ साल से राजनीतिक हिंसा जारी है। पिछले साल उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के पूर्व मुख्यमंत्री बगूती को पाकिस्तानी फौज ने मुठभेड़ में मार गिराया था। माना जाता है कि बगूती की हत्या राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने करवाई थी। बत्तीस साल पहले फरवरी 1975 में हयात मोहम्मद खान शेरपाओ भी उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में आतंकवाद का शिकार हुए। बत्तीस साल बाद पिछले हफ्ते 21 दिसम्बर 2007 को मोहम्मद खान शेरपाओ के बेटे आफताब अहमद खान शेरपाओ पर जामियां मस्जिद में गोली मारी गई। आफताब तो बाल-बाल बच गए लेकिन पचास से ज्यादा नमाजी मारे गए। इस घटना से ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अनुमान लगाया जा रहा था कि अब आतंकवाद का निशाना पाकिस्तान बनेगा। अमेरिकी रक्षा मंत्री राबर्ट गेट्स ने पिछले हफ्ते ही पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि आने वाले समय में अल कायदा के हमले तेज होंगे। अल कायदा के निशाने पर बेनजीर भुट्टो और परवेज मुशर्रफ के अलावा इन दोनों के समर्थक भी होंगे।
सच यह है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में जब तक परवेज मुशर्रफ घरेलू कट्टरपंथियों को निशाना बनाए बिना अमेरिका का साथ दे रहे थे, तब तक पाक के कट्टरपंथी आतंकवादियों को कोई ज्यादा लेना-देना नहीं था। लेकिन अमेरिका के दबाव में मुशर्रफ ने जब अफगानिस्तान से लगते उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में आतंकवादियों पर शिकंजा कसा, तो मुशर्रफ ही नहीं बल्कि उनके सभी समर्थक अलकायदा के निशाने पर आ गए हैं। बेनजीर भुट्टो भी इसीलिए आतंकवादियों के निशाने पर आई क्योंकि उन्होंने अमेरिका और परवेज मुशर्रफ से समझौता करके पाकिस्तान में प्रवेश किया। दूसरी तरफ नवाज शरीफ के साथ ऐसी हालत नहीं है, उन पर आतंकवादी हमले होने की आशंका नहीं, क्योंकि वह लगातार अमेरिका के खिलाफ बोल रहे हैं। भारत और अमेरिका में ऐसा मानने वालों की अच्छी-खासी तादाद है कि परवेज मुशर्रफ आतंकवाद के खिलाफ ईमानदारी से लडने की बजाए सिर्फ अपनी कुर्सी की रक्षा कर रहे थे। हाल ही में इस खुलासे ने इस आशंका को बल दिया है कि अमेरिका की तरफ से भेजी गई आर्थिक मदद का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया गया। यह खुलासा अमेरिकी एजेंसी ने ही किया है। परवेज मुशर्रफ की आतंकवाद के खिलाफ चल रही अंतरराष्ट्रीय लड़ाई में प्रतिबध्दता के बावजूद अफगानिस्तान से जुड़े पाकिस्तानी इलाकों में अलकायदा की जड़ें मजबूत हुई हैं। अमेरिका दुनियाभर में लोकतंत्र की दुहाई देता है, लेकिन पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ ने जब सुप्रीम कोर्ट का गला घोंटा तो अमेरिकी राष्ट्रपति बुश की तरफ से कोई धमकी नहीं आई जबकि दुनिया के बाकी देशों में इस तरह की स्थिति पैदा होने पर अमेरिका का दबाव बढ़ जाता है। अब पाकिस्तान के वकील भी अमेरिका से मांग कर रहे हैं कि वह परवेज मुशर्रफ की आतंकवाद के खिलाफ जंग की असलियत को समझें। अमेरिका की कई खुफिया एजेंसियां भी ओसामा बिन लादेन और उनके समर्थकों के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में छिपे होने की रिपोर्टे देते रहते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि अगर पाकिस्तान की सरकार ईमानदार हो, तो ओसामा बिन लादेन और उनके समर्थकों का पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं। परवेज मुशर्रफ भी यह कह चुके हैं कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में हो सकते हैं। अगर अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियों की इस रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए कि परवेज मुशर्रफ एक तरफ अमेरिका के साथ हैं तो दूसरी तरफ ओसामा बिन लादेन के हितों की भी रक्षा कर रहे हैं तो यह आशंका भी पैदा होगी कि कहीं बेनजीर भुट्टो की हत्या में भी परवेज मुशर्रफ का हाथ तो नहीं। क्योंकि दुनियाभर में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अमेरिका अब पाकिस्तान में अपना मोहरा बदलने की फिराक में था और इसी रणनीति के तहत बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तानी वापसी का समझौता करवाया गया था। परवेज मुशर्रफ उन सबको रास्ते से हटाते रहे हैं, जो उनके रास्ते में आने की हिमाकत करते रहे हैं।
आपकी प्रतिक्रिया