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Exclusive Articles written by Ajay Setia

संन्यास राजनीति से, पद से नहीं

Publsihed: 28.Feb.2009, 05:09

चलो वाजपेयी के चुनाव लड़ने की खबरों का फुल स्टाप हुआ। राजनाथ सिंह ने लखनऊ से लालजी टंडन को भिड़ा दिया। वह तो भिड़ने को तैयार ही थे। अब सोमवार को चुनावों का एलान होने के आसार। तो पता चलेगा- सामने संजय दत्त उतर पाएंगे या नहीं। वैसे कानूनन चुनाव नहीं लड़ सकते। पर बात वाजपेयी की। पता नहीं, वाजपेयी के लड़ने की चंडूखाने की खबरें कौन पेल रहा था। अपन ने तो 30 दिसंबर 2005 को खुद वाजपेयी के मुंह से सुना था। जब उनने चुनावी राजनीति से संन्यास का एलान किया। मुंबई में बीजेपी काउंसिल का आखिरी दिन था। अब बात राजनीति के दूसरे संन्यास की। सोमनाथ चटर्जी ने दसवीं बार फिर संन्यास का एलान किया। अपन नौ बार पहले भी स

अपराधीकरण के बोलबाले वाली रही 14वीं लोकसभा

Publsihed: 27.Feb.2009, 05:37

संसद का सत्रावसान हो गया। राज्यसभा तो अजर-अमर। पर लोकसभा का टर्म खत्म होने को। वैसे लोकसभा भंग नहीं हुई। सरकार चाहे तो तीन महीनों में जब चाहे सेशन बुला ले। भले लोकसभा चुनावों का ऐलान भी हो जाए। पर स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने ऐसे 'द एंड' कहा। जैसे लोकसभा का आखिरी दिन हो। दादा ने संसदीय जीवन से संन्यास का ऐलान भी कर दिया। दादा की टर्म विवादों से घिरी रही। दादा ने अपना हिसाब-किताब बताया। तो उन कड़वी-मीठी यादों को ताजा भी किया। एक गम था, जो सीने में छुपा रखा था। कह ही दिया- 'महिला आरक्षण बिल पास नहीं हुआ।' सरकार पर फब्ती कसी- 'बिल लोकसभा के बजाए राज्यसभा में पेश किया। ताकि लोकसभा का टर्म खत्म होने के बाद भी बिल जिंदा रहे।' लोकसभा में पेश होता। तो पास कराने की मांग उठती। कांग्रेस की रणनीति रही- 'न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी।' पर बात दादा की। उनने सदन से विदाई कुछ ऐसे ली। जैसे इस्तीफा दे रहे हों।

तो मोदी से भयभीत हो गए बाल ठाकरे

Publsihed: 25.Feb.2009, 21:06

अपने सुखराम भी सजायाफ्ता हो गए। नरसिंह राव के एक और मंत्री पर भ्रष्टाचार साबित। शीला कौल, पीके थुंगन, सतीश शर्मा पहले ही दोषी साबित हो चुके। नरसिंह राव खुद भ्रष्टाचार के बूते पीएम बने रहे। सो भ्रष्टाचार को पनाह देते रहे। सुखराम भोले पहाड़ी थे। जिनने नकदी अपने घर में ही छुपा रखी थी। सो पकड़ी गई। राव ने सरकार बचाने के लिए जो चार सांसद खरीदे। वे भी आदिवासी भोले भंडारी थे। नकदी बैंक में जमा करा दी। पर वह तो संसद के अंदर की बात पर अदालत के हाथ बंध गए। वरना रिश्वत देने, लेने वाले अंदर होते। बेचारे सुखराम। पर एन चुनाव के वक्त आए फैसले से कांग्रेस की हवा खराब। सो बुधवार को ब्रीफिंग ही गोल कर गई। सोनिया का संसदीय दल मीटिंग में भाषण हुआ। फिर भी ब्रीफिंग नहीं। बात सोनिया के भाषण की। लिखा हुआ भाषण बंट गया। सोनिया को गुटबाजी से हार का अंदेशा। कहते हैं ना दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है। मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस हारी। तो सोनिया ने कहा था- 'आपसी फूट के कारण हारे।' यों सोनिया को यूपीए सरकार के पांच साल पूरे होने पर संतोष।

तारीखों पर गोपालस्वामी चावला की कशमकश

Publsihed: 25.Feb.2009, 06:05

संसद के सेंट्रल हाल की गहमा-गहमी बढ़ गई। गहमा-गहमी का यह आखिरी हफ्ता। कल के बाद चौदहवीं लोकसभा नहीं बैठेगी। अब जून में पंद्रहवीं लोकसभा ही बैठेगी। उसमें मौजूदा सांसद कितने होंगे। कितनों को टिकट मिलेगा, कितनों का कटेगा। जिनको मिलेगा, उनमें कितने जीतेंगे। सो सेंट्रल हाल में चमकते चेहरे कम। उतरे हुए चेहरे ज्यादा दिखने लगे। मंगलवार की बात ही लो। अपने नमो नारायण मीणा पूरे शबाब पर थे। बिना लाग लपेट बोले- 'वापस आने वालों की तादाद चालीस फीसदी ही होगी।' यह फार्मूला सिर्फ कांग्रेस का नहीं। बीजेपी का भी यही फार्मूला। राजस्थान के भाजपाईयों के चेहरे ज्यादा लुढ़के दिखे। सेंट्रल हाल के किसी बैंच पर बैठ जाइए। एक ही बात सुनने को मिलेगी- 'कहीं और हो न हो, राजस्थान में कांग्रेस को फायदा होगा।' यह सुन-सुनकर राजस्थान के भाजपाई सांसदों की हवा खराब। कांग्रेसी दावा तो मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ पर भी कम नहीं ठोकते। पर मध्यप्रदेश के भाजपाई उतने परेशान नहीं। हां, छत्तीसगढ़ के भाजपाई परेशान।

जब 'ॐ' गूंजा आस्कर के मंच पर

Publsihed: 24.Feb.2009, 07:08

अपन को याद है पंद्रह अगस्त 1998 की वह रात। जब राष्ट्रपति भवन के सामने विजय चौक पर लेजर शो हुआ। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी खुद मौजूद थे। एआर रहमान ने गाया था- 'वंदे मातरम्'। तेईस फरवरी को रहमान 'स्वर्णिम' आस्कर हासिल कर रहे थे। तो अपन को आजादी की स्वर्ण जयंती का वह सीन याद आ गया। 'स्लमडॉग मिलियनेयर' अपन ने 22 फरवरी रात को ही देखी। झुग्गी-झोपड़ी जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है फिल्म की कहानी। यह कहानी 'क्यू एंड ए' नावेल से ली गई। नावेल के लेखक हैं- अपने आईएफएस अफसर विकास स्वरूप। और खुदा जब देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है। दशकों बाद आस्कर मिले। तो एक साथ एक ही फिल्म में आठ। फिर डाक्यूमेंट्री 'स्माइल पिंकी' को भी 'आस्कर' मिला। पर बात रहमान की। एआर रहमान-यानी अल्ला रक्खा रहमान। रहमान जब पैदा हुए तो नाम था- 'दिलीप कुमार'। बात 1988 की, वह बाईस साल के थे।

दादा को हुआ अपने श्राप पर अफसोस

Publsihed: 21.Feb.2009, 06:36

आखिर दादा को अपनी गलती का अहसास हुआ। उनने गुरुवार को कही बात शुक्रवार को वापस ले ली। गुरुवार को उनने सांसदों पर भड़कते हुए कहा था- 'मैं उम्मीद करता हूं कि आप सभी चुनाव हार जाएं। आप सभी को चुनाव में हारना चाहिए। जनता अपना फैसला ठीक ढंग से करेगी।' लोकसभा का स्पीकर हैड मास्टर नहीं होता। वह सांसदों में से ही चुना जाने वाला सिर्फ सदन का मानीटर। मानीटर की हैसियत हैड मास्टर तो छोड़िए। मास्टर की भी नहीं होती। सो दादा के गुस्से को उनकी तानाशाही शैली माना गया। वैसे जैसा अपन ने लिखा ही था- 'अपन को चौदहवीं लोकसभा का कोई सत्र याद नहीं। जब दादा ने संसद का बंटाधार होने की बात न कही हो।' बाईस अक्टूबर को उनने एक कांग्रेस के सांसद को फटकारते हुए कहा था- 'मैं आप पर कार्रवाई करूंगा। हम जब गाली खा ही रहे हैं। तो सबकी खाएंगे।' सोमनाथ चटर्जी ने सदन को चलाने का ऐसा रिकार्ड बनाया। जो फिर कभी नहीं बनेगा।

मैच फिक्सर को पाकर सोनिया हुई बाग-ओ-बाग

Publsihed: 20.Feb.2009, 07:28

लोकसभा अब चली-चला की वेला में। गुरुवार को सभी दलों के सांसद अपना-अपना एजेंडा लेकर वैल में कूदे। तो हमेशा की तरह स्पीकर सोमनाथ चटर्जी बिफर गए। वैसे तो अपन को चौदहवीं लोकसभा का कोई सत्र याद नहीं। जब दादा ने संसद का बंटाधार होने की बात न कही हो। पर गुरुवार को उनने वो कहा। जो सबको चुभ गया। उनने भी अपनी मर्यादा तोड़ दी। बोले- 'मैं उम्मीद करता हूं कि आप सभी चुनाव में हार जाएं। आप सभी को चुनाव में हारना चाहिए। जनता अपना फैसला ठीक ढंग से करेगी।' पर बात चुनाव से पहले झूला झूलने की। जैसा अपन ने कल लिखा था। झूला बदलने की चुनावी सर्कस शुरू हो गई। उध्दव ठाकरे ने शरद पवार से मुलाकात की। बीजेपी-शिवसेना का चौबीस साल पुराना रिश्ता चौराहे पर।

झूला बदलने की चुनावी सर्कस शुरू

Publsihed: 19.Feb.2009, 06:41

भले ही प्रणव दा को पीएम की कुर्सी नहीं मिली। एक्टिंग पीएम भी नहीं बन पाए। पर बुधवार को जब वह बार-बार आडवाणी को पूर्व उपप्रधानमंत्री बता रहे थे। तो अपन को लगा जैसे बगल में बैठी सोनिया से कह रहे हों- 'कम से कम आखिरी दिनों में उपप्रधानमंत्री ही बना दो।' प्रणव दा अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब दे रहे थे। तो आडवाणी को लेकर ज्यादा ही सावधान थे। आडवाणी ने प्रणव दा की तारीफ जो कर दी थी। सो बदले में आडवाणी की तारीफ करने लगते। तो सोनिया के दरबार में बने-बनाए नंबर कट जाते। सो उनने एनडीए राज को याद कराकर आडवाणी को सुई चुभोई। बोले- 'संसद पर हमले के बाद आपने बार्डर पर सेना लगा दी थी। बारूदी सुरंगें बिछा दी थी। हमने मुंबई पर आतंकी हमले के बाद यह सब नहीं किया। पर वह हासिल कर लिया। जो आप नहीं कर पाए।' पाक ने अमेरिका के दबाव में कसाब को क्या कबूला। प्रणव दा अपनी पीठ ठोकने लगे।

करीबियों को घेर आडवाणी को डराने में जुटी कांग्रेस

Publsihed: 18.Feb.2009, 05:33

अपने प्रणव दा के लिए खुश होने वाली बात ही थी। विपक्ष का नेता लालकृष्ण आडवाणी भरी संसद में तारीफ करें। तो प्रणव दा खुश क्यों न होते। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस शुरू हुई। तो आडवाणी ने प्रणव दा की तारीफ के पुल बांधे। प्रणव दा तो खुश दिखे। पर सोनिया थोड़ी असहज दिखी। वैसे आडवाणी की तारीफ प्रणव दा के लिए घाटे का सौदा। लेफ्ट से तारीफ क्या कम थी। जो अब बीजेपी भी। लेफ्ट की पैरवी के कारण ही तो प्रणव दा पीएम नहीं बन पाए। खैर बात आडवाणी की। उनने कहा- 'मैं तो लंबे समय से प्रणव दा की क्षमताओं का कायल। संकट के समय प्रणव दा की रफ्तार बढ़ जाती है। मैं कई बार सोचता हूं। यूपीए के पास प्रणव दा जैसा संकट मोचक न होता। तो यूपीए सरकार का क्या होता।' आडवाणी की बात में दम। प्रणव दा 42 केबिनेट कमेटियों के मुखिया। इतनी जिम्मेदारी तो मनमोहन की भी नहीं। सोनिया भी प्रणव दा की क्षमताओं से वाकिफ। पर पीएम नहीं बनाएंगी। मनमोहन बीमार पड़े। तो एक्टिंग पीएम भी नहीं बनने दिया। नंबर दो का आफिशियल दर्जा भी नहीं लेने दिया।

सत्यम् की बैंलेंसशीट जैसा प्रणव का बजट

Publsihed: 16.Feb.2009, 20:45

पच्चीस साल बाद प्रणव दा को मौका भी मिला। तो तब जब बीस दिन बाकी पड़े थे। प्रणव दा इसे बजट कहें, या अंतरिम बजट। दोनों ही गैर कानूनी। बीस दिन की सरकार को 365 दिन का बजट बनाने का क्या हक। आने वाली सरकार पर अपनी योजनाएं लादने का हक नहीं। आप पूछेंगे- अपन ने बीस दिन बाकी कैसे बताए। तो बता दें- अपना अंदाज दस मार्च को चुनाव के ऐलान का। सो अनुदान मांगों की जगह बजट पेश करना गैरकानूनी भी। अनैतिक भी। अंतरिम बजट चुनावी फायदे के लिए कहा गया। पर अपन याद दिला दें- 1991, 2004 में चुनाव से पहले ऐसा मौका आया। तो अंतरिम बजट नहीं, अलबत्ता अनुदान मांगें ही पेश हुई। यह भी याद दिला दें- दोनों ही बार सरकार चुनाव में चारों खाने चित हुई। पर बात प्रणव दा की। जिनने यूपीए के प्रोग्रामों पर धन तो खूब लुटाया। पर मिडिल क्लास को टैक्स में कटौती की बारी आई। तो नैतिकता की दुहाई देते बोले- 'अंतरिम बजट में टैक्सों पर बात नहीं कर सकते।' रोजगार गारंटी, भारत निर्माण, नेहरू मिशन को 110000 करोड़ लुटाते समय नैतिकता नहीं दिखी। ये तीनों ही प्रोग्राम कांग्रेसी वर्करों की गरीबी दूर करने का साधन।