यूपी में कांग्रेस-एसपी गठजोड़ में दरार आई। तो दोनों दलों के उम्मीदवारों को पसीना आने लगा। अकेले लड़ने की धौंस दिखाना अलग बात। मैदान में कूद कर मैदान मारना एकदम अलग। सो ऊपर से भले ही कितना अकड़ रहे हों। अंदर से मुलायम ही नहीं, दिग्गी राजा भी मुलायम। मुलायम सिंह की भी अकेले लड़ने की हिम्मत नहीं। बुधवार को तो भड़के हुए थे। पर गुरुवार को खुद रीता बहुगुणा को फोन किया। तो दिग्गी राजा बता रहे थे- 'मुलायम फ्रैंडली चुनाव को तैयार हों। तो अभी भी गठजोड़ की गुंजाइश बरकरार।' अपन ने पूछा- 'क्या कुछ उम्मीदवार मैदान से हट भी सकते हैं?' उनने कहा- 'हां इस पर भी हो सकता है विचार।' जब से गठबंधन की राजनीति शुरू हुई। अपन तभी से ऐसी लुक्का-छिपी देख रहे। पहले एकतरफा उम्मीदवारों का एलान। फिर ले देकर गठजोड़ की कोशिश। तो यह खेल सिर्फ कांग्रेस नहीं खेल रही। शरद पवार भी कम नहीं। पर पवार का खेल सिर्फ सीटों के बंटवारे तक नहीं। पवार ने क्रिकेट और राजनीति गढमढ कर दी।
पहले खबर आई थी- 'कांग्रेस 25-23 के बंटवारे पर मान गई।' अपन बताते जाएं- पवार ने पहले 24-24 का फार्मूला रखा था। समझौते की खबर के बाद फच्चर फंसने की खबर आई। फच्चर कैसे फंसा। जरा उस की कहानी सुनो। अपन को कांग्रेस का एक दिग्गज बता रहा था- 'पवार ने आईपीएल को गठबंधन से जोड़ लिया।' अच्छा भला तालमेल निपट रहा था। चिदंबरम ने चुनाव के वक्त मैच टालने का फच्चर फंसा दिया। आईपीएल में जब करोड़ों का दाव लगा हो। तो पवार कैसे चुप्पी साध जाते। सो बुधवार की रात गठबंधन में नया मोड़ आ गया। वैसे पवार के दोनों हाथों में लड्डू। उनने शिवसेना की खिड़की भी खोल रखी है। वैसे बात शिवसेना की चली। बताते जाएं- बीजेपी-शिवसेना में भी 26-22 पर बात पक्की हो चुकी। पर वहां भी शरद पवार का फच्चर। शिवसेना मराठी मानुस के नाम पर पवार को पीएम बनाने की फिराक में। पवार-उध्दव की रणनीति अलग-अलग लड़कर ज्यादा सीटें लाने की। पर अब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दो टूक कह दिया- 'पहले आडवाणी को पीएम पद का उम्मीदवार मानों। फिर होगा गठबंधन।' कहते हैं ना दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। बीजेपी को राष्ट्रपति के चुनाव में लगा झटका नहीं भूला। शेखावत के खिलाफ मराठी मानुस के नाम पर सबसे पहले शिवसेना ही हुई थी। बात शेखावत की चली। तो बताते जाएं- जब भैरों बाबा ने लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था। अपन ने तभी कह दिया था- शेखावत का गुस्सा सिर्फ वसुंधरा के खिलाफ। वह न आडवाणी के खिलाफ जाएंगे। न लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। उनने चुनाव न लड़ने का एलान तो कर ही दिया था। गुरुवार को जब राजस्थान की टिकटों का फैसला होना था। तो शेखावत पहुंचे आडवाणी के घर। शुध्द शाकाहारी लंच पर गुफ्तगू हुई। गिले-शिकवे दूर हुए। तो वसुंधरा राजे से भी गुफ्तगू हो गई। पर टिकटों का बंटवारा हुआ। तो कैलाश मेघवाल का नाम गायब था। उनने बीकानेर से टिकट मांगी थी। पता है ना- बीकानेर रिजर्व हो चुकी। टौंक जनरल। बीकानेर का धर्मेन्द्र से भी पीछा छूटा। पर बात मेघवाल की। टिकट मेघवाल को तो मिला। पर वह था- अर्जुन मेघवाल। राजस्थान की बात चल ही रही है। तो अपन चलते-चलते जयपुर की बात भी करते जाए। शेखावत ने जयपुर का फिलर फेंका था। तो गिरधारी भार्गव का चेहरा देखने वाला था। अब शेखावत-आडवाणी मुलाकात हो गई, टिकट भी मिल गया। तो भार्गव के चेहरे पर रौनक लौट आई। अब जब अपन ने जयपुर की बात कर ही डाली। तो विदिशा की बात भी बताते जाएं- आडवाणी ने परिवारवाद नहीं चलने दिया। शिवराज चौहान की बीवी को नहीं। सुषमा को ही मिला विदिशा से टिकट। भोपाल में कैलाश जोशी का ही डंका बजेगा।
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