कामराज योजना तो मोदी का ही मादा

Publsihed: 10.Mar.2009, 06:11

अपन को आशंका तो थी। पर भरोसा नहीं था। आशंका सही निकली। भरोसा टूट गया। नवीन पटनायक बीजेपी का साथ छोड़ गए। पर नवीन बाबू की हालत भी ममता जैसी। ममता ने एनडीए कभी नहीं छोड़ा। पर कांग्रेस से गठजोड़ का ऐलान कर दिया। नवीन बाबू ने शनिवार को बीजेपी से गठबंधन तोड़ा। सोमवार को बोले- 'हमने एनडीए नहीं छोड़ा।' सो यह मानकर चलिए। तीसरे मोर्चे की सरकार न बनी। तो बीजेडी एनडीए में लौटेगा। और यह भी तय मानिए। तीसरे मोर्चे की सरकार बनती दिखी। तो ममता एनडीए में लौटेगी। वैसे ममता की बात चली। तो बताते जाएं- कांग्रेस को ममता की समझ नहीं आ रही। ममता भी मुलायम के रास्ते पर चल पड़ी। सीटें तय नहीं हुई। पर उम्मीदवारों का एकतरफा एलान शुरू कर दिया। प्रणव दा की सीटी-पीटी गुल। ममता वही सीटें छोड़ रही। जिन पर कांग्रेस दो-दो लाख से हावी थी।'

पर बात हो रही थी नचीन पटनायक की। जिन्हें आठ महीने बाद सेक्युलरिम याद आया। आठ महीने पहले हुई थी स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या। जिस के बाद कंधमाल में दंगे हुए। बीजेपी वाले ठीकरा प्यारीमोहन महापात्रा के सिर फोड़ रहे। प्यारीमोहन आईएएस अफसर थे। नवीन के पिता बीजू पटनायक जब सीएम थे। तो प्यारीमोहन प्रिंसिपल सेक्रेट्री थे। नवीन बाबू को उडिया अभी भी नहीं आती। सो प्यारीमोहन ही उनके आंख-कान। बकौल बीजेपी- उनने ही नवीन के कान भरे और आंखों में धूल झोंकी। पर बात हो रही थी कंधमाल की। तो गठबंधन टूटते ही विश्व हिंदू परिषद सक्रिय। अशोक सिंहल भुवनेश्वर जा पहुंचे। नवीन बाबू को हिंदू विरोधी बता कर बोले- 'नवीन पटनायक जानते हैं- स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या किसने की। पर अभी तक गिरफ्तार नहीं किया।' अपन को लगता है उड़ीसा में जमकर सांप्रदायिक उफान होगा। बीजेपी नरेंद्र मोदी को उड़ीसा की कमान सौंपे। तो अपन को कतई हैरानी नहीं होगी। वैसे मोदी की बात चली। तो बता दें- वह अपने गुजरात में कामराज योजना की तैयारी में। क्या है वह कामराज योजना। अपन आगे बताएंगे। फिलहाल बात उड़ीसा की। बीजेपी हिंदुत्व के ऐजेंडे पर अपना गढ़ मजबूत करेगी। बीजेडी सेक्युलरिम की झंडाबरदार होगी। दस साल से सत्ता से बेदखल बेचारी कांग्रेस बीजेपी-बीजेडी चक्की में पीसेगी। जरूरत पड़ी तो चुनाव बाद बीजेपी-बीजेडी फिर जुडेंग़ी। नवीन पटनायक ने एनडीए की खिड़की इसलिए ही खुली छोड़ी। नवीन बाबू को आडवाणी से भी कोई गिला नहीं। खैर अपन उड़ीसा के बाहर भी जरा झांके। तो अपन को महाराष्ट्र-तमिलनाडु में अजुबा दिखने लगा। शरद पवार चौबीस सीटों पर अटक गए। जैसे उस दिन नितिन गडकरी ने शिवसेना को धमकी दी। अब वैसे ही विलासराव ने एनसीपी को दे दी। गडकरी ने कहा- 'आडवाणी के पीएम बनाने पर स्थिति साफ करो। तब  गठबंधन।' विलासराव बोले- 'पीएम कांग्रेस का होगा। एनसीपी पहले यह साफ करे।' असल में बीजेपी-कांग्रेस को पवार-उध्दव में खिचड़ी पकने का शक। कहीं एनडीए-यूपीए को झटका एक साथ न लगे। अपन याद दिला दें- '2004 में प्रमोद महाजन का फार्मूला एनसीपी-शिवसेना बीजेपी गठबंधन का था।' जो सिरे नहीं चढ़ा। पर बात-बात में तमिलनाडु की बात रह ही जाती। जयललिता तो कांग्रेस को गठबंधन का दाना फेंक कर मुकर भी चुकी। पर करुणानिधि के कान खड़े हुए। तो खड़े ही रह गए। बात दो सीटों पर बिगड़ने का खतरा। याद है- कान्फीडेंस वोट के समय एमडीएमके के दो एमपी टूटे थे। अब करुणानिधि कहते हैं- कांग्रेस उन्हें अपने कोटे से टिकट दे। वैसे करुणानिधि की बात छोड़िए। कांग्रेस को तमिलनाडु से एक झटका और लगेगा। पीएमके यूपीए छोड़ने की फिराक में। अपन हेल्थ मिनिस्टर रामदोस की बात कर रहे हैं। कहीं मोदी की बात रह ही न जाए। तो बता दें- मोदी की योजना आडवाणी को छोड़ बाकी पर कामराज योजना लादने की। सूर्य बल्व की तरह सारे घर के बदल डालेंगे। यानी नए खून से कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने की तैयारी।

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