मनमोहन की अमेरिका यात्रा टली क्यों नही

Publsihed: 23.Nov.2009, 00:22

अपना दौरा टालकर बाराक ओबामा को उनकी कश्मीर नीति पर मुंह तोड़ जवाब दे सकते थे मनमोहन सिंह। यों भी संसद सत्र के समय प्रधानमंत्री को विदेश दौरों से परहेज करना चाहिए।

संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा की मेहमानबाजी का लुत्फ उठा रहे हैं। भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना 26/11 की कड़वी यादों को जब एक साल बाद इस 26/11 संसद में याद किया जाएगा, तो प्रधानमंत्री नदारद होंगे। कोई अंतरराष्ट्रीय समारोह या बैठक न हो तो प्रधानमंत्री संसद सत्र के समय विदेश यात्राओं से परहेज किया करते थे। जिस संसद में बहुमत के बूते कोई प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचता है, उस संसद का उसे सम्मान करना ही चाहिए। खासकर तब जब सत्र साल में सिर्फ तीन बार होता हो और वह भी पूरे साल में कुल मिलाकर सौ दिन से भी कम चलता हो।

भाजपा की गुटबाजी संघ का सिरदर्द

Publsihed: 16.Nov.2009, 10:01

नितिन गडकरी को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाने के पीछे संघ की दलील यह है कि पार्टी के सभी मौजूदा राष्ट्रीय नेता गुटबाजी में शामिल हैं। हालांकि राजनाथ सिंह को जब पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था तब वह गुटबाजी की राजनीति का शिकार नहीं थे। लेकिन उनके चार साल के कार्यकाल में पार्टी भयंकर रूप से गुटबाजी की शिकार हुई है। इस गुटबाजी का पहला कारण यह था कि राजनाथ सिंह ने पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी को साथ लेकर चलने की जहमत नहीं उठाई। संघ ने क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम छेड़ी थी इसलिए राजनाथ सिंह यह मानकर चल रहे होंगे कि संघ लालकृष्ण आडवाणी को पसंद नहीं करता। राजनाथ सिंह ने संघ की इच्छा मानकर आडवाणी की अनदेखी और उनके समर्थकों को प्रमुख पदों से हटाने की मुहिम छेड़ दी थी। राजनाथ सिंह यहीं पर भूल कर गए,

महाराष्ट्र-कर्नाटक राजनीतिक गिरावट का आईना

Publsihed: 09.Nov.2009, 00:23

कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा तीनों राज्यों के उदाहरण हमारे सामने हैं। सियासत किस तरह व्यापारिक हितों की सीढ़ी बन चुकी है। हरियाणा में वक्त तय होने के बाद भी इसलिए शपथ ग्रहण नहीं हो सका क्योंकि सौदेबाजी सिरे नहीं चढ़ सकी। महाराष्ट्र में चुनाव नतीजे आने के चौदहवें दिन तक मलाईदार विभागों का लेन-देन सिरे नहीं चढ़ा। इसलिए नई सरकार का गठन होने में देर लगी। कर्नाटक में भाजपा के ही कुछ मंत्रियों ने अपने आर्थिक हितों में रुकावट बनने वाली सरकार को तलवार की धार पर लाकर खड़ा कर दिया।

अगर महाराष्ट्र में गैर कांग्रेसी सरकार बननी होती तो वहां गवर्नर की सिफारिश से राष्ट्रपति राज लग गया होता। उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी और बिहार में बूटा सिंह ने ऐसा ही किया था। अफसोस यह है कि मलाईदार मंत्रालयों का लेन-देन खुलेआम हो रहा है और संविधान का कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो लूट-खसूट को रोक सके। इस लूट-खसूट को सिर्फ गवर्नर ही रोक सकता है, लेकिन गवर्नर अपने राजनीतिक आकाओं के इशारों पर काम करने के आदी हो गए हैं। अपने पूर्व राजनीतिक आकाओं को खुश करते रंगे हाथों पकड़े गए रामलाल ठाकुर, रोमेश भंडारी, बूटा सिंह सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार सह चुके हैं। इसके बावजूद गवर्नरों की कार्यशैली में कोई सुधार नहीं दिखता।

दलाईलामा के अरुणाचल दौरे का मतलब

Publsihed: 02.Nov.2009, 10:14

क्या मौजूदा 14वें दलाईलामा इतिहास को उसी मोड़ पर लाने की सोच रहे हैं जहां से पांचवें दलाईलामा ने सत्ता संभालने की शुरूआत की थी। क्या वह अपने इसी तवांग दौरे के दौरान ऐसा ऐतिहासिक ऐलान करने की सोच रहे हैं, जैसी चीन की आशंका है।

आठ नवंबर का दिन जैसे-जैसे करीब आ रहा है, अरुणाचल का सुरक्षा घेरा उतना ही बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात के बाद भारत-चीन में तनाव कुछ कम हुआ है, लेकिन इसका असर अरुणाचल में दिखाई नहीं देता। जैसे-जैसे दलाई लामा के अरुणाचल पहुंचने की तारीख नजदीक आ रही है, वहां के लोगों में दहशत फैल रही है। दलाईलामा के दौरे को लेकर अरुणाचल के लोग उत्साह से भरे हैं, उनके स्वागत की तैयारियां हो रही हैं, लेकिन एक डर भी समाया हुआ है कि कहीं उस दिन चीन अक्टूबर 1962 की याद ताजा न कर दे।

बीजेपी आलाकमान के नाम खुली चिट्ठी

Publsihed: 26.Oct.2009, 10:09

हमें आपकी नहीं, देश की फिक्र है, आप सुधरोगे तो लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा। आपने अपने अनुभव से कुछ नहीं सीखा तो युवा पीढ़ी के नए तौर तरीकों से राजनीति का क ख ग सीखिए। राहुल गांधी से सीखिए।

वैसे तो आपको आलाकमान कहूं या नहीं। इस पर मन में असमंजस है। पर परंपरा निभाने के लिए आलाकमान शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। वैसे तो भाजपा में आलाकमान का होना ही हास्यास्पद सा लगता है। राजनीति में आलाकमान शब्द का इस्तेमाल कांग्रेस में ही शोभा देता है। इंदिरा गांधी के जमाने में आलाकमान शब्द चलन में आया। उससे पहले कांग्रेस में सिंडिकेट हुआ करता था, जिसे आम भाषा में सामूहिक नेतृत्व कह सकते हैं। नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व का चलन शुरू हुआ था। इंदिरा गांधी ने सामूहिक नेतृत्व को तहश-नहश करके कमान अपने हाथ में ली। वह कांग्रेस की आलाकमान बन गई। इस तरह राजनीति में आलाकमान की शुरूआत हुई।

अमेरिकी शर्तें भारत के अनुकूल

Publsihed: 12.Oct.2009, 08:42

पाक में जमहूरियत समर्थक और विरोधी आमने-सामने आ गए हैं क्योंकि अमेरिकी असैन्य आर्थिक मदद की शर्तें सेना और आईएसआई की बेजा हरकतों पर अंकुश लगाने वाली हैं।

सार्क सम्मेलन के मौके पर जनवरी 2004 में पाकिस्तान जाना हुआ तो जियो टीवी के मौजूदा सीईओ आमिर मीर के साथ बातचीत का मौका मिला। होटल के बाहर सड़क पर ही काफी देर टहलते-टहलते बात होती रही। आमिर मीर की भारत से शिकायत थी कि वह पाकिस्तान के चुने हुए शासकों के साथ बातचीत नहीं करता, लेकिन जब-जब सैनिक शासक आ जाता है, बातचीत तेजी से शुरू कर देता है। उनका कहना था कि भारत के इस रवैये ने पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत नहीं होने दिया। आमिर मीर की यही शिकायत अमेरिका के साथ भी थी।

केंद्र का इम्तिहान नहीं होते विधानसभा चुनाव

Publsihed: 05.Oct.2009, 09:53

हरियाणा में विपक्ष कई हिस्सों में बंटा हुआ है, जिसका कांग्रेस को सीधा फायदा होगा। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसी बात नही है। जहां  लोकसभा में सीटें बढ़ने के बावजूद विधानसभा क्षेत्रों में हारी है कांग्रेस। अरुणाचल में चीन की सीमा पर इंफ्रांस्टक्चर की कमी मुख्य चुनावी मुद्दा।

पंद्रहवीं लोकसभा का गठन हुए पांच महीने हो चले हैं। इस बीच हुए विभिन्न विधानसभाओं के उपचुनावों को यूपीए सरकार की लोकप्रियता में गिरावट का पैमाना नहीं माना जा सकता। इन उप चुनावों में मोटे तौर पर उन्हीं राजनीतिक दलों की जीत हुई, जिनकी उन राज्यों में सरकारें थी। यूपीए सरकार की लोकप्रियता या अलोकप्रियता का पैमाना राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजों को भी नहीं माना जाना चाहिए।

एनपीटी-सीटीबीटी पर दस्तखत का दबाव

Publsihed: 28.Sep.2009, 10:22

अमेरिका ने भारत को एनपीटी-सीटीबीटी करारों के दायरे में लाने के लिए चौतरफे दबाव शुरू कर दिए हैं। मनमोहन सरकार समझती थी कि एनएसजी और आईएईए से छूट मिलने के बाद अब भारत को इन दोनों प्रस्तावों पर दस्तखत की जरूरत नहीं पड़ेगी।

यह सवाल तो तब से उठ रहा है जबसे मनमोहन सरकार अमेरिका के करीब हुई है। लेकिन अब यह सवाल ज्यादा गंभीरता से पूछा जा रहा है- क्या भारत सीटीबीटी पर दस्तखत कर देगा? नरसिंह राव ने सीटीबीटी पर भी वही रुख अपनाया था, जो इंदिरा गांधी ने एनपीटी के समय अपनाया था। नरसिंह राव के बाद सभी प्रधानमंत्रियों ने भी अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की ओर से तय की गई विदेश नीति अपनाई। इसलिए कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं झुका।

सीमाओं पर लापरवाही

Publsihed: 20.Sep.2009, 21:27

नेहरू की तरह मनमोहन सिंह भी सीमाओं पर चीन की घुसपैठ को वक्त रहते गंभीरता से नहीं ले रहे। अलबत्ता मीडिया पर घुसपैठ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगा रहे हैं। सीमाओं पर हमारी सतर्कता और तैयारी आपराधिक लापरवाही की सीमा तक चली गई है।

सितम्बर के शुरू में यह खबरें आनी शुरू हुई थी कि लद्दाख में चीनी सेना घुस आई है। पहले-पहल खबर सिर्फ वायु सीमा अतिक्रमण की थी, पर धीरे-धीरे छनकर खबर आई कि कुछ दिन पहले चीनी सेना ने मेकमाहोन रेखा भी पार की थी। यह घटना एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुई थी लेकिन सरकार ने इसे देश की जनता से छुपाए रखा। एक बार चीनी सैनिकों ने हमारे क्षेत्र में घुसकर गडरियों को मारा-पीटा और वहां से चले जाने को कहा। उनका दावा था कि वह क्षेत्र चीन का है, भारत का नहीं। दूसरी बार वे अपने साथ लाल रंग और ब्रुश लाए थे, जिससे उन्होंने पत्थरों पर मेंडरिन भाषा में चीन लिखा।