जब थे दिन बहार के तो अगड़े, आई कंगाली तो दलित

Publsihed: 19.Dec.2023, 23:36

इंडिया गेट से अजय सेतिया / इंडी एलायंस के नेताओं ने मीटिंग जरुर कर ली है, लेकिन सब के चेहरे बुझे हुए थे| पिछले एक डेढ़ साल से प्रधानमंत्री पद के दर्जन भर चेहरे घूम रहे थे| कांग्रेस राहुल के बिना किसी को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी| नीतीश कुमार अपने सर पर टोपी पहन रहे थे, ममता अपने सर पर टोपी पहन रही थी| केजरीवाल खुद को तीस मारखां समझ रहे थे| अखिलेश यादव भी वक्त आने पर दावा ठोकने का इन्तजार कर रहे थे| लेकिन अब जब चुनावों में सिर्फ चार महीने बचे हैं, तो सब एक दूसरे को टोपी पहना रहे हैं| ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड्गे को टोपी पहना दी, केजरीवाल ने भी अपनी टोपी खड्गे के सर पर रख दी| स्टालिन भी टोपी पहनाने खड़े हुए, पर खड्गे को पता है कि जब चुनाव हारना हो, तो दलित के सर पर पगड़ी पहनाने की परंपरा रही है| जब राष्ट्रपति का चुनाव जीतने की संभावना थी, तो पहले राजपूत प्रतिभा पाटिल को उम्मीदवार बनाया और बाद में ब्राह्मण प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार बनाया, मैं राष्ट्रपति पद के चुनाव की बात कर रहा हूँ, लेकिन जब हारना पक्का था, तो दलित समुदाय की मीरा कुमार को खड़ा किया था| जब हार पक्की थी, तो दलित समुदाय के सुशील कुमार शिंदे को उम्मीदवार बनाया, लेकिन जीतना तय था, तो हामिद अंसारी को उम्मीदवार बनाया, मैं उपराष्ट्रपति के चुनाव की बात कर रहा हूँ| मल्लिकार्जुन राजनीति के इतने भी अनाडी नहीं हैं, वह सब समझते हैं| उन्हें पता है कि जब अगड़े पिछड़े दलित आदिवासी सब भाजपा के साथ चले गए हैं, तो उन्हें दलित याद आ रहे है| इसलिए उन्होंने तुरंत पगड़ी उतार कर फेंक दी, और मीटिंग में कहा कि ख्याली पुलाव बनाने से क्या होगा| अब वाईको कहते हैं कि उनके नाम का प्रस्ताव पास हो गया है, लेकिन जब प्रेस कांफ्रेंस से खड्गे से पूछा गया कि प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, तो उन्होंने इंडी एलायंस पर ही तंज कसते हुए कह दिया कि पहले चुनाव तो जीत लें| जब सांसद ही नहीं होंगे, पीएम की बात करने का क्या फायदा|

उनका लहजा ऐसा था कि प्रेस कांफ्रेंस न होती तो वह पुरानी कहावत ही सुना देते की पल्ले नहीं दाने, और अम्मा चली भुनाने| ढके शब्दों में उन्होंने यही कहा है कि चुनाव जीतने की उम्मीद दूर दूर तक नहीं है, और सपने प्रधानमंत्री के दिखा रहे हैं| मीटिंग हो जरुर गई, लेकिन निकला कुछ नहीं| निराशा के माहौल में निकलना भी क्या था| कांग्रेस को चुनावों का कुछ अता पता नहीं , वह हवा के घोड़े पर सवार रहती है, वह इतनी गलतफहमी में थी की चुनाव नतीजों के तीसरे दिन 6 दिसंबर को मीटिंग रख दी थी, चुनावों में ऐसा झटका लगा कि अब तक उभर नहीं पा रही| 4 दिसंबर से शुरू हुए शीत सत्र के पहले हफ्ते में संसद में जुबान नहीं खुल पा रही थी| वह तो 13 दिसंबर को शहरी नक्सलियों के 2 चेले दर्शक दीर्घा से लोकसभा में कूद गए, तो उसी को मुद्दा बनाकर हंगामा शुरू कर दिया| तीन राज्यों के चुनाव जीत कर भाजपा भी फुल फ़ार्म में है, हंगामा करने वालों को सदन से सस्पेंड करने की ऐसी रणनीति बनाई, जो संसदीय इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था| तीन दिनों के अंदर विपक्ष के दो तिहाई सांसदों को निलंबित करके बाहर निकाल दिया| उपर से मोदी ने कह दिया कि खाली हुई सीटों को चुनाव में भाजपा के सांसद भरेंगे| इसका मतलब यह है कि मोदी अठारहवीं लोकसभा को विपक्ष विहीन करने की रणनीति लेकर चल रहे हैं| उधर इंडी एलायंस में मातम छाया हुआ था, दिल बहलाने को मल्लिकार्जुन ने यह जरुर कहा कि मोदी के सर पर घमंड सवार हो गया है| वह समझते हैं कि पूरी दुनिया को वही चला रहे हैं| वह समझ रहे हैं कि उनके सिवा कोई हकूमत नहीं कर सकता| भी हुकूमत आप कर सकते हैं, लेकिन देश की जनता भी तो आपको इस लायक समझे| अहम सवाल यह है कि तीन राज्यों में हार के बाद क्या कांग्रेस का खुद का घमंड दूर हो गया है, क्या वह मूत की झाग की तरह बैठ गई है, तो हाँ ऐसा ही लगता है, उसको खुद पता नहीं की वह जो कर रही है, वह ठीक है या नहीं| विपक्ष को पता है कि सुरक्षा घेरे में छेड़ राजनीति का मुद्दा नहीं है, लेकिन उसने मुद्दा बना लिया, और इतने भद्दे ढंग से बना लिया कि सांसद उपराष्ट्रपति की मिमिक्री जैसी सडक छाप हरकतों पर उतर आए हैं| यह मैं नहीं कह रहा, कांग्रेस के नेता आचार्य प्रमोद ने ही इन हरकतों को सडक छाप कहा है| शायद उन्होंने अपने ही नेता राहुल गांधी पर यह टिप्पणी की है, जो मिमिक्री की वीडियो बनाते देखे गए| उन्होंने तो अपने नेता को और भी बहुत कुछ कहा है, उन्होंने कहा है कि मोदी बहुत बड़ा चेहरा बन चुके हैं, और राहुल बुझे हुए चेहरे हैं| विपक्ष को अच्छी तरह पता है कि संसद के सुरक्षा घेरे पर उसकी हरकतें उसे महंगी पड़ेंगी, इसलिए मल्लिकार्जुन खड्गे ने कहा कि हमने गलत मुद्दा नहीं उठाया| उनका यह वाक्य उनके अपराध बोध को दिखाता है| लेकिन अब फंस गए हैं, तो क्या करें, इंडी एलायंस को वैसे भी मुद्दा चाहिए था, सो देश भर में प्रदर्शन का एक मुद्दा मिल गया है, लेकिन सवाल यह है कि लांग टर्म प्लानिंग क्या है| सीटों के बंटवारे का तो अभी भी कोई फार्मूला नहीं निकला| अरविन्द केजरीवाल तो पंजाब में एलान कर आए हैं कि आम आदमी पार्टी सभी 13 सीटें लड़ेगी| लेकिन अभी देखना है कि चुनावों तक वह जेल से चुनाव लड़ेंगे या बाहर रह कर|

 

 

 

 

 

 

 

 

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