आखिर दादा को अपनी गलती का अहसास हुआ। उनने गुरुवार को कही बात शुक्रवार को वापस ले ली। गुरुवार को उनने सांसदों पर भड़कते हुए कहा था- 'मैं उम्मीद करता हूं कि आप सभी चुनाव हार जाएं। आप सभी को चुनाव में हारना चाहिए। जनता अपना फैसला ठीक ढंग से करेगी।' लोकसभा का स्पीकर हैड मास्टर नहीं होता। वह सांसदों में से ही चुना जाने वाला सिर्फ सदन का मानीटर। मानीटर की हैसियत हैड मास्टर तो छोड़िए। मास्टर की भी नहीं होती। सो दादा के गुस्से को उनकी तानाशाही शैली माना गया। वैसे जैसा अपन ने लिखा ही था- 'अपन को चौदहवीं लोकसभा का कोई सत्र याद नहीं। जब दादा ने संसद का बंटाधार होने की बात न कही हो।' बाईस अक्टूबर को उनने एक कांग्रेस के सांसद को फटकारते हुए कहा था- 'मैं आप पर कार्रवाई करूंगा। हम जब गाली खा ही रहे हैं। तो सबकी खाएंगे।' सोमनाथ चटर्जी ने सदन को चलाने का ऐसा रिकार्ड बनाया। जो फिर कभी नहीं बनेगा।
चौदहवीं लोकसभा का स्पीकर सबसे ज्यादा विवादास्पद रहा। स्पीकर के खिलाफ विपक्ष का वाकआउट भी हुआ। स्पीकर के खिलाफ इम्पीचमेंट तक बात भी पहुंची। सोमनाथ चटर्जी ऐसे पहले स्पीकर बन गए। जिनको उनकी पार्टी ने स्पीकर रहते हुए पार्टी से निकाल दिया। यों तो रिटायर होकर दादा खुद अपने तुजुर्बो की किताब लिखेंगे। पर उनकी टिप्पणियों पर किताब छप जाए। तो ऐसा लगेगा- जैसे भारत की लोकसभा जितनी बेकार संस्था और कोई नहीं। छोटी-छोटी बात पर दादा का गुस्सा सातवें आसमान पर दिखता रहा। शिवसेना के एक सांसद को उनने कह दिया था- 'आपका नाम क्या है?' वाकआउट करते हुए उस सांसद ने अपना नाम बताया। स्पीकर ने कार्रवाई करने के लहजे से पूछा था। सांसद ने स्पीकर को कार्रवाई करने की चुनौती दे डाली। झारखंड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जब गवर्नर को फटकार लगाई। तो स्पीकर का कुछ लेना-देना नहीं था। पर उनने आल पार्टी मीटिंग बुला ली। वह तो सरकार ने साथ नहीं दिया। वरना संसद और सुप्रीम कोर्ट का टकराव हो जाता। सुभाष कश्यप ने ऐसा क्या कह दिया था। जो दादा बिफर गए। उनने सुभाष कश्यप को तलब करके ही छोड़ा। पिछले सेशन की बात ही लो। सीपीएम के कहने पर दादा ने स्पीकर पद से इस्तीफा नहीं दिया। तो लेफ्ट ने दादा को पार्टी से निकाल दिया था। पिछले सेशन में अपन ने दादा-लेफ्ट में बात-बात पर टकराव देखा। एक दिन दादा लेफ्ट के अब्दुल्ला कुट्टी पर भड़क गए। सदन से बाहर निकाल दिया। स्पीकर के खिलाफ लेफ्ट ने वाकआउट कर दिया। तब दादा ने कहा था- 'मुझे अब किसी चीज की इच्छा नहीं। यह मेरे जीवन का सबसे खराब वक्त है।' उनकी पर्सनल फ्रस्टेशन जुबां पर आ गई। चौदहवीं लोकसभा में स्पीकर ने सांसदों के बारे में ऐसी-ऐसी टिप्पणियां की। जो सांसदों की मर्यादा का हनन करने वाली। शुक्रवार की बात ही लो। उनने तेलुगूदेशम के नेता येरननायडू से कहा- 'मैं नहीं जानता कि आपके वोटरों ने आपको पांच साल कैसे झेला।' अब दादा अगले हफ्ते अपनी यह टिप्पणी वापस ले लें। तो अपन को हैरानी नहीं होगी। अब आखिरी दिनों में स्पीकर अपनी टिप्पणियां वापस लेने के मूड में भी। जैसे गुरुवार की टिप्पणीं शुक्रवार को वापस ले ली। सदन में बोले- 'कल मैंने थोड़ी झुंझुलाहट-बौखलाहट में कुछ टिप्पणियां कर दी थी। पर मैं चाहता हूं कि अगर जनता आपको समर्थन दे। तो कल वैल में आने वाले सभी दुबारा जीतकर आएं।' इस पर बीजेपी के एक सांसद ने कहा- 'हम चाहते हैं आप भी जीतकर आएं।' सोमनाथ चटर्जी ने कहा- 'मुझे इसकी चिंता नहीं। मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।' यह दादा सदन में आधा दर्जन बार तो कह ही चुके। आखिर दादा लड़ेंगे भी किस पार्टी से।
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