अजय सेतिया / भारत का सुप्रीमकोर्ट किसी की याचिका की सुनवाई अपने दायरे में न समझ कर स्वीकार न करे , यह हो सकता है | इस में न तो कोई हैरानी वाली बात होगी , न गुस्से वाली | अपन को पहले से अनुमान था कि भारत की सुप्रीमकोर्ट ऐसा कोई सेक्यूलरिज्म का कदम नहीं उठा सकती ,जिस से दुनिया भर में उस की वाहवाही हो | सेक्यूलरिज्म संविधान में दिखावटी चीज बना रहना ही शोभा देता है या सिर्फ राजनीतिक दलों को चुनावी मुद्दे के तौर पर उछालना अच्छा लगता है | अपना यह पक्का विशवास है कि हिन्दू सेक्यूलर है पर 1975 में भारत के संविधान में लिख दिए जाने के बावजूद संविधान सेक्यूलर नहीं है | संविधान सेक्यूलर होता तो 1975 में संविधान में लिखते समय ही धर्म के आधार पर पारित सभी क़ानून खारिज किए जाते और भारत में समान आचार संहिता लागू की जाती |
शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी किसी और ही दुनिया में रहते थे , जो सुप्रीमकोर्ट में कुरआन की 26 आयतें खारिज करवाने चले गए | किसी धार्मिक किताब में दखल देना भारतीय अदालतों का काम नहीं | जिन 26 आयतों में मुसलमानों को दुनिया के गैर मुसलमानों से श्रेष्ठ…
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