पलायन की स्थिति फिर बनने लगी

Publsihed: 07.Apr.2021, 19:05

अजय सेतिया / अपन बार बार लिख रहे हैं कि मोदी सरकार राजनीतिक निर्णय ले , ब्यूरोक्रेसी पर निर्णय नहीं छोड़े , वरना बाद में पछताना पड़ेगा | ब्यूरोक्रेसी के तुगलकी फरमानों से कोरोना के हालात बिगड़ रहे हैं और देश के उत्पादक राज्य लाक डाउन की ओर बढ़ रहे हैं , जिस से पलायन की स्थिति फिर से पैदा हो रही है | मोदी , राजनाथ सिंह , अमित शाह , पीयूष गोयल , डा. हर्ष वर्धन और संतोष गंगवार मिल कर बैठें | ब्यूरोक्रेसी से बिलकुल सलाह न करें , अलबत्ता पार्टी लाईन छोड़ कर मुख्यमंत्रियों से फीड बैक लें और उन के फीडबैक में अपना राजनीतिक विजन डाल कर कार्य योजना तैयार करें | पीयूष गोयल और संतोष गंगवार को अपन ने इस लिए जोड़ा है , क्योंकि उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय पीयूष गोयल के पास है और लेबर मंत्रालय संतोष गंगवार के पास | लाक डाउन में सब से ज्यादा प्रभाव श्रमिको के पलायन और इंडस्ट्री के उत्पादन पर होना है |

पीयूष गोयल भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई से ताल्लुक रखते हैं | वह अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के हालात बेहतर जानते हैं , जो पिछले साल की अप्रेल जैसे ही हो गए हैं | पिछले साल लाकडाउन के समय मुम्बई और दिल्ली से मजदूरों का सब से ज्यादा पलायन हुआ था | महाराष्ट्र के मुम्बई ,पुणे ही नहीं राज्य के कई जिलों में हालात बेहद खराब हैं | बीड में एक साथ आठ लोगों का अंतिम संस्कार किया गया | याद करिए पिछले साल भी इसी तरह की खबरें आईं थी , खौफ और घबराहट इतनी थी कि परिवार अपने परिजनों की लाशें लेने को तैयार नहीं थे | अस्पतालों का खोखलापन उजागर हुआ था , वेंटिलेटर-आईसीयू-आक्सीजन बेड की कमी सामने आई थी | वही मंजर फिर दिखने लगा है | महाराष्ट्र में पुणे के पिंपरी इलाके के यशवंतराव चव्हाण मेमोरियल अस्पताल के वेटिंग एरिया में ही 7 ऑक्‍सीजन बेड लगाए गए हैं, ताकि मरीज़ों को बचाया जा सके |  

पिछली बार की तरह मोदी खुद लाकडाउन का एलान करने से बच रहे हैं , फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है | मुख्यमंत्रियों के हाथ पाँव फूले हुए हैं , वे तो पहले ही अपनी ब्यूरोक्रेसी के दास होते हैं | उन्हीं की अधकचरी सोच पर निर्भर हैं , जो शनि–इतवार और रात के कर्फ्यू की बेतुकी सलाहें दे कर मुख्मंत्रियों को बेवकूफ बना रहे हैं | जरूरत बाजारों-सार्वजनिक स्थलों , होटलों-रेस्त्रों , ब्याह-शादियों , दफ्तरों-फेक्टरियों में भीड़-भडका कम करने की है | लोगों जो जरूरत पड़ने पर ही घर से निकलने के लिए दिशा निर्देश देने की है , लेकिन वे रात का कर्फ्यू लगवा रहे हैं और वीकेंड पर लाक डाउन करवा रहे हैं | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत सभी राज्यों से एक जैसी खबरें आ रही हैं , ये एक ही स्कूल के पढ़े हुए अधपढ़े हैं |

अपन महाराष्ट्र का ही उदाहरण देते हैं | उद्धव सरकार ने वीकेंड में लॉकडाउन का ऐलान किया है, लेकिन इस ऐलान के साथ ही मजदूरों को पिछले साल का मंजर याद आ गया है | वे पिछले साल की परेशानी को दोबारा नहीं दोहराना चाहते , जब सरकार ने हाथ खड़े कर लिए थे और उन्हें सैकड़ों मील चल कर अपने गाँवों में जाना पड़ा था | भिवंडी जहां यूपी-बिहार-बंगाल के हजारों मजदूर पावरलूम फेक्टरियों में काम करते हैं, अभी से खाली होने लगा है | एक न्यूज एजेंसी ने इन मजदूरों से बात की तो एक पावरलूम मजदूर ने कहा-“ यहां भूखा नहीं मरूंगा, जब तक चलेगा तो चलाऊंगा, नहीं चलेगा तो गांव चला जाऊंगा, हम पहले से जाने की प्लान बना रहे हैं | पिछली बार मालिकों ने मदद की थी , लेकिन अभी कोई मदद करने के लिए नहीं बोल रहा है |” एक मिल मालिक इश्तियाक अंसारी ने कहा - फिलहाल 50 फीसदी कर्मचारी चले गए हैं, और अब 10 तारीख को जब हम लोगों को वेतन देंगे, उसके बाद कर्मचारी रुकने के लिए तैयार नहीं है |”

उधर मोदी सरकार उन छोटे छोटे देशों से सबक नहीं ले रही , जो वेक्सीन का आयात कर के उम्र की सीमाएं तय किए बिना सब को वेक्सीन लगा रहे हैं | अपन बार बार लिख रहे हैं कि सरकार जिद्द छोड़ कर सभी को वेक्सीन लगाना शुरू करे | कम से कम उन मजदूरों को तुरंत बिना उम्र की सीमा तय किए वेक्सीन लगाने के आदेश दें , जिन के पलायन से उद्योग धंधे तबाह हो जाएंगे | एक खबर यह आई है कि महाराष्ट्र में वेक्सीन का स्टाक खत्म होने को है , तो दूसरी तरफ यह खबर है कि कि विभिन्न राज्यों में हर रोज करीब दस फीसदी वेक्सीन बर्बाद हो रही है , उम्र की सीमा के कारण डाक्टरों और अस्पतालों के हाथ बंधे हैं , वे बची हुई वेक्सीन भी 45 साल से कम उम्र वालों को नहीं लगा पा रहे | केंद्र सरकार को ब्यूरोक्रेसी की इस मिस-मेनेजमेंट पर नियन्त्रण करना चाहिए और उन्हें जवाबदेह बनाना चाहिए | सरकार राजनीतिक निर्णय ले, सब को नहीं तो पलायन और काम-काजियों को ध्यान में रख कर वेक्सीनेशन की प्रेक्टिकल योजना बनाए |

 

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