अजय सेतिया / तृणमूल कांग्रेस बेचैन है , पर इतनी परेशान नहीं , जितने उत्तर भारत के कुछ पत्रकार हैं | जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान , हिमाचल और उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए दांव खेलते हैं , यूपी में कभी अखिलेश या कभी मायावती के लिए , बिहार में कभी लालू तो कभी नितीश कुमार के लिए | वे सभी 2011 तक पश्चिम बंगाल में सीपीएम के लिए दांव खेलते थे , लेकिन अब अपनी प्रिय सीपीएम को छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस को दुबारा सत्ता में लाने के लिए बेचैन हैं | उन सब ने बंगाल में डेरा डाल लिया है , ताकि वे अपने हिन्दी भाषी यूट्यूब वीडियो से ममता की कुछ मदद कर सकें , हालांकि उन से होना जाना कुछ नहीं | लेकिन ममता बेनर्जी उन हिंदी भाषियों को बाहरी नहीं कहती | दिल्ली और कोलकाता के वामपंथी नेताओं की परेशानी दूसरी है , वे अपनी विचारधारा के पत्रकारों की तरह नहीं सोचते , उन्हें अपनी वापसी की चिंता है , इसलिए वे उन पत्रकारों की तरह विरोध के लिए भाजपा का विरोध नहीं कर रहे | वे मन से चाहते हैं कि पहले ममता नाम का काँटा रास्ते से हटे |
अपन ने दस साल डेस्क पर उपसंपादक से मुख्य उपसंपादक का सफर तय करने के बाद 1992 से रिपोर्टिंग करना शुरू किया | तब से देख रहे हैं कि हर पोलिंग के बाद शाम को पांच-छह बजे ही सभी राजनीतिक दल प्रेस कांफ्रेंस कर के अपनी जीत का दावा करते रहे हैं , जीतने वाली सीटों की संख्या भी बताते रहे हैं | पश्चिम बंगाल और असम में 27 मार्च की पहले दौर की वोटिंग के अगले दिन अमित शाह ने दावा किया था कि बंगाल में पहले दौर में जिन 30 सीटों पर चुनाव हुआ था , भाजपा उन में से 26 जीत रही है | ममता बेनर्जी को उसे गलत बता कर प्रतिदावा ठोकने का अधिकार है , यही राजनीतिक परम्परा रही है | राजनीतिक दल दावे प्रति दावे करते रहते हैं | पर ममता बेनर्जी ने अमित शाह की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि वह 30 में से 30 ही कह देते | यह एक अच्छा राजनीतिक कटाक्ष था , इस से बढिया प्रतिक्रिया नहीं हो सकती | ममता और डेरेक ओ ब्रियन दोनों ने कहा कि अमित शाह अपने कार्यकर्ताओं का होंसला बढाने के लिए बढा चढा कर दावे कर रहे हैं , जीतेगी तृणमूल ही |
लेकिन अपने यहाँ उत्तर भारत में मुद्दई से ज्यादा गवाह के चुस्त होने की एक कहावत है, वह उत्तर भारत के उन पत्रकारों पर फिट बैठ रही है , जो ममता बेनर्जी और डेरेक ओ ब्रियन से ज्यादा अमित शाह पर भडक रहे हैं | वे चुनाव आयोग से पूछ रहे हैं कि अगर आप ने 29 अप्रेल तक एग्जिट पोल पर रोक लगाई है , तो राजनीतिक दलों के नेताओं पर क्यों रोक नहीं लगाई कि वे भी अपनी जीत के दावे नहीं कर सकते | उन की आशंका यह है कि एग्जिट पोल कम्पनी ने अमित शाह को एग्जिट पोल के आंकड़े लीक किए होंगे, इस लिए अप्रत्यक्ष तौर पर यह चुनाव आयोग के आदेशों का उलंघन है | दूसरी तरफ वे अमित शाह के दावों का यह कह कर खंडन भी करते हैं कि 84 प्रतिशत वोटिंग के आधार पर वे अपनी जीत का दावा नहीं कर सकते , क्योंकि 2016 के चुनाव में भी 82.66 प्रतिशत वोटिंग हुई थी , इसलिए इसे सरकार विरोधी बंपर वोटिंग नहीं कहा जा सकता | बिलकुल अपन पत्रकारों को भी वोटिंग पर वैसे ही विश्लेष्ण करने का पूरा अधिकार है , जैसे अमित शाह को है | लेकिन फिर आप इतने बेचैन क्यों हैं कि चुनाव आयोग पर भडक रहे हैं |
ममता बेनर्जी से ले कर प्रशांत किशोर तक शिकायत कर रहे हैं कि चुनाव आयोग ने भाजपा प्रभाव वाली 30 सीटों पर पहले चुनाव करवाया है ताकि वह अपने पक्ष में हवा बना सके और तृणमूल कांग्रेस के प्रभाव वाले इलाकों में सातवें और आठवें दौर में चुनाव की तारीखें तय की हैं | पहले दौर की वोटिंग पर अमित शाह के दावे के बाद तृणमूल कांग्रेस के मित्र पत्रकार ज्यादा चिल्ला चिल्ला कर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं | तो एक तरह से यह मानना है कि जिन पुरुलिया , बाँकुड़ा , झारग्राम , पूर्वी और पश्चिमी मेदिनापुर की 30 सीटों पर 27 मार्च को वोटिंग हुई , वह भाजपा के प्रभाव वाली थीं | लेकिन भाजपा का प्रभाव कहाँ से आ गया , पांच साल पहले भी मोदी राज था और अमित शाह भाजपा अध्यक्ष थे , तब तो पूरे बंगाल में भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिलीं थी | अलबत्ता 2016 के चुनाव में तो तृणमूल कांग्रेस इन 30 में से 27 सीटें जीतीं थीं | चुनाव आयोग पर कीचड़ उछालने से पहले यह तो सोच लेते , इतना कन्फ्यूज्ड क्यों हो भाई |
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