अजय सेतिया / अपन को जब यह बात पता चली थी कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों ने सूचना के आधार पर पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन-वन का प्रमुख माडवी हिडमा को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए बीजापुर में आपरेशन की रूपरेखा बनाई थी , तभी अपनी आँख फडफडाई थी कि यह सूचना केन्द्रीय सुरक्षा बलों को फांसने के लिए भेजी गई थी | सूचना 60-70 नक्सलियों के छिपे होने की थी , जिस की पुष्टि ड्रोन से करवाई गई थी | सवाल खड़ा होता है कि फिर नक्सलियों की संख्या सात सौ से ज्यादा कैसे हो गई | क्या इस से यह नहीं लगता कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों को फांसने का जाल खुद नक्सलियों ने बुना था और प्रशासन ने इस में उन की मदद की | गुरूवार को सैंकड़ों ग्रामीणों की मौजूदगी में छ्तीसगढ़ सरकार की बनाई कमेटी के सामने जब नक्सलियों ने बंदी बनाए गए राकेश्वर सिंह मनहास को छोड़ा तो अपना शक और गहरा हुआ कि ग्रामीणों में नक्सलियों का दबदबा फिर से कायम करने के लिए स्थानीय प्रशासन ने नक्सलियों के साथ मिल कर खून खराबे की साजिश रची थी |
नक्सलियों में माडवी हिडमा के छिपे होने की खबर भी अपने शक को गहरा करती है | अब 22 सुरक्षा बलों की शहादत के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शहीदों के परिवारों और देश को वायदा किया है कि उन की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी , तो उन का फर्ज बनता है कि वह तह तक जा कर जांच करवाएं आखिर यह सूचना कहाँ से मिली थी कि नक्सलियों की संख्या 60-70 थी और उन में माडवी हिडमा भी था , जो सौ से ज्यादा सुरक्षा कर्मियों की हत्या के लिए जिम्मेदार है और उस पर 25 लाख का इनाम है | माडवी हिडमा के बारे में बहुत कुछ छप चुका है , घटना कैसे घटी , उस बारे में भी बहुत कुछ छप चुका है | माडवी हिडमा का नाम शायद इस लिए दिया गया था ताकि सुरक्षा बलों का आपरेशन बड़ा हो , आपरेशन में ज्यादा सुरक्षा कर्मी शामिल हों और उन्हें घेर कर ज्यादा संख्या में मारा जाए | नक्सलियों की रणनीति के मुताबिक़ ही आपरेशन के लिए दस टीमें बनाई गईं थी , जिनमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस की डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड, स्पेशल टास्क फोर्स और कोबरा बटालियन की टुकड़ियां शामिल थीं |
इन सभी टीमों को 3 अप्रैल की सुबह वापस अपने अपने बैस कैम्प पहुंचना था, लेकिन जब इनमें से 3 टीमें टेकलगुड़ा पहुंची तो यहां नक्सलियों ने उन्हें तीन तरफ से घेर लिया | प्रशासन की मिलीभगत का अपना शक इस बात से भी गहरा होता है कि टेकलगुड़ा इलाके में 15 से 20 घरों वाले छोटे छोटे चार गांव हैं, जिनमें एक गांव उस समय पूरी तरह खाली था और यहीं पर केन्द्रीय सुरक्षा बलों को घेरने के लिए लगभग 400 नक्सली “यू” के आकार में पहले से छिपे हुए थे | लगभग 700 जवान इस “यू” आकार के षड्यंत्र में फंस कर नक्सलियों का आसान टार्गेट बन गए | नक्सलियों ने हमले में एके-47 राइफल, एक्स-95 राइफल से अंधाधुंध फायरिंग करते हुए अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर और इंसास राइफल का भी इस्तेमाल किया | रॉकेट लॉन्चर बनाने के लिए उन्होंने मोटर साइकल के साइलेंसर का इस्तेमाल किया | सोचिए, हमारे देश के जवानों के खिलाफ नक्सलियों ने कितनी खतरनाक तैयारी की थी | साफ़ है कि सूचना का आदान प्रदान दोनों तरफ किया गया था |
इसके बाद की नक्सलियों और राज्य सरकार की मिलीभक्त की कहानी भी बहुत कुछ कहती है , जब अमित शाह पुलवामा के हमले जैसा जवाब देने का इशारा कर रहे थे , तब राज्य सरकार ने राकेश्वर सिंह मिनहास को छोड़ने के लिए रखी नक्सलियों की वह शर्त बहुत आसानी से मान ली | नक्सलियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने अपनी शर्तों में कहा था कि सरकार पहले मध्यस्थ नियुक्त करे तब राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई करेंगे | छतीसगढ़ सरकार ने जो कमेटी बनाई , उस में सात पत्रकार शामिल थे , ताकि नक्सलियों को पूरी पब्लिसीटी मिल सके , इतना ही नहीं अलबत्ता सैंकड़ों ग्रामीणों को इक्कठा कर के उन के सामने कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को रस्सी से बाँध कर लाया गया | वे लाईनों में ऐसे बिठाए गए थे , जैसे उन्हें गणतन्त्र दिवस का कार्यक्रम दिकाया जा रहा हो | अपन ने पाकिस्तान के हाथों अभिनन्दन का इतना अपमान होते नहीं देखा था | सहमे हुए ग्रामीण इस नजारे को देख रहे थे | और यह इस लिए हुआ ताकि केंद्र सरकार को नक्सलियों के सामने बौना दिखाया जा सके और 1960 से बने हुए नक्सलियों के दबदबे को कायम रखने की गारंटी मिल सके , जो पिछले 15 साल में कम हो गया था | कमेटी में सात पत्रकारों के अलावा 91 वर्षीय स्वतन्त्रता सेनानी पद्मश्री धर्मपाल सैनी गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बोरैया और छतीसगढ़ सरकार के दो अधिकारी भी शामिल थे | अपन ने अपनी आशंका के कई सबूत दे दिए हैं , अब अमित शाह को चाहिए कि वह साजिश के एंगल से जांच करवाएं |
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