जांच की सियासत
जनसत्ता, 22 नवंबर, 2011 : राजनीतिक गलियारों में लोग कहते सुने जाते हैं, राज तो कांग्रेस को ही करना आता है। कौन-सी चाल कब चलनी है, इस मामले में बाकी सब अनाड़ी हैं। मायावती चाहे लाख बार सवाल उठाती रहें कि जयराम रमेश की चिट्ठियां और गुलाम नबी आजाद के आरोपों की बाढ़ चुनावों के वक्त ही क्यों। भारतीय जनता पार्टी भी चाहे जितने आरोप लगाए कि राजग कार्यकाल के स्पेक्ट्रम आबंटन पर एफआईआर सीबीआई का बेजा इस्तेमाल है, पर यह कांग्रेस को ही आता है कि लालकृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा के समापन आयोजन की हवा कैसे निकालनी है। आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी रैली और संसद के शीत सत्र से