लादेन के बाद भारत-अफगानिस्तान

Publsihed: 02.May.2011, 23:03

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से ३६ घंटे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिह ने अपना अफगानिस्तान दौरा स्थगित किया। मनमोहन सिंह के दौरे की तारीख तय नहीं हुई थी, पर यह तय था कि वह मई महीने में अफगानिस्तान जाएंगे। शनिवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय सूत्रों ने प्रधानमंत्री का दौरा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने की बात कही। रविवार को अमेरिकी ऑप्रेशन में ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर एबोटाबाद में मारा गया। अमेरिका ने दावा किया है कि ओसामा बिन लादेन की खोज अगस्त २०१० में कर ली गई थी। स्वाभाविक है कि पाकिस्तान को अमेरिका ने इसकी जानकारी नहीं दी होगी। अन्यथा जिस प्रकार पहले ओसामा बिन लादेन तौरा-बोरा से भाग जाने में सफल हुए थे, वैसे ही अब भी सफल हो जाते। यह कोई भी मानने को तैयार नहीं हो सकता था कि लादेन के इस्लामाबाद से सिर्फ १५० किलोमीटर पर एक कस्बे में रहने की पाक खुफिया एजेंसियों को पहले से जानकारी नहीं होगी।

एक शाम राम के नाम

Publsihed: 13.Apr.2011, 20:06

भगवान राम पर बनी डाक्यूमेंट्री का आधार भी फिल्मी गाने रहा। प्रतिभा खुद सूत्रधार के रूप में हैं। यानी राम कथा को खुद आगे बढ़ाती हैं प्रतिभा। राम पर फिल्माए गए गानों का संगम। प्रतिभा १९४३ की फिल्म का गाना भी ढूंढकर लाई। ताजा गाना २०१० की फिल्म का भी शुमार हुआ। इतनी सारी खासियत बताने के बाद इसकी अहमियत नहीं। यह सब इसलिए नहीं, क्योंकि वह लालकृष्ण आडवाणी और कमला आडवाणी की बेटी हैं। राजनीति से कोसों दूर। अपने काम में मग्न।

एक शाम राम के नाम....

Publsihed: 12.Apr.2011, 23:29

प्रतिभा आडवाणी का एसएमएस था। रामनवमी की पूर्व संध्या पर एक घंटे की डाक्यूमेंट्री देखने का न्यौता था। ताकीत थी- आ रहे हों, तो एसएमएस से पुष्टि कर दें। साथ में चाय का लालच भी था। सो अपन ने आने की पुष्टि कर दी। यों अपन जानते हैं- इस परिवार में चाय का मतलब होता है- कुछ चटपटा हो जाए। गोल-गप्पे, दही-भल्ले, पापड़ी-भल्ले, पाव-भाजी, छोले-कुल्चे, जलेबी वगैरहा।

दादागिरी पर भारी पडी अण्णागिरी

Publsihed: 10.Apr.2011, 19:45

मनमोहन सिहं इतने भोले भी नही। आधुनिक गांधी अण्णा हजारे की बातें नहीं मानने की पूरी कोशिश की थी उनने। तीन दिन तक मनमोहन सिंह के नुमाइंदे कपिल सिब्बल संविधान की दुहाई देकर समझाने-बुझाने की कोशिश कर रहे थे। अण्णा के नुमाइंदे अरविद केजरीवाल को बता रहे थे जो निवाचित नही हुए, वे कानून बनाने वाली कमेटी में कैसे आएंगे। आएंगे भी, तो सरकारी नोटिफिकेशन कैसे होगा। कपिल सिब्बल के मन में धुकधुकी भी थी, किसी ने सोनिया गांधी की रहनुमाई वाली एनएसी पर सवाल उठाया तो क्या होगा। एनएसी मैंबर कौन से चुनकर आए हैं, सारे सरकारी बिलों की हरी झंडी पहले उन्हीं से लेती है सरकार। उनके नामों की नोटिफिकेशन कैसे की थी सरकार ने।

आलोक तोमर का चला जाना

Publsihed: 29.Mar.2011, 19:02

आलोक जी के साथ बहुत पुराना रिश्ता था, भले ही मैं चंडीगढ़ जनसत्ता में था, वह दिल्ली में थे. पर हमारी मुलाकात 1989 में मेरे जनसत्ता ज्वाइन करने से पहले की थी. मैने बाद में जनसत्ता ज्वाइन किया, पर छोडा आलोक तोमर से पहले. हम दोनो जब जनसत्ता छोड चुके थे तो अक्सर मुलाकातें हुआ करतीं थी. मैने अपने जीवन में आलोक तोमर जैसा धुरंधर लिखाड नही देखा. लेखनी पर जबरदस्त पकड थी. वैसे तो प्रभाष जोशी जी ने एक बखिया उधेडने वाले छांटे थे… इसीलिए स्लोगन भी था… सबकी खबर दे, सबकी खबर ले… पर किसी की बखिया उधेडनी हो, तो आलोक तोमर की शब्दावली उधार लेनी पडती थी. आलोक तोमर जैसा खबरची और शब्दों का खिलाडी न पहले कभी हुआ, न आगे कभी होगा. आलोक ने अपने जीवन में कई प्रयोग किए. बहुत कम लोग जानते होंगें… अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोडपति प्रथम के सारे सवाल आलोक तोमर ने तैयार किए थे.