India Gate Se

Published: 10.Sep.2020, 20:43

अजय सेतिया / भारत की सीरम कम्पनी को नहीं , बल्कि भारत समेत दुनिया के उन देशों को जबर्दस्त झटका लगा है जो कोरोनावायरस का इलाज करने वाली वेक्सीन के लिए भारत की तरफ देख रहे थे | रूस और चीन की ओर से वेक्सीन बना लेने के दावों के बावजूद दुनिया की निगाह आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से बन रही वेक्सिन की इन्तजार कर रहे थे | एस्ट्राज़ेनेका नाम की कम्पनी ने 30 अप्रेल को एलान किया था कि वह आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से कोरोनावायरस के इलाज की वेक्सीन पर काम कर रही है , जिस का उत्पादन दुनिया के तीन देशों की दवा निर्माता कम्पनियां करेंगी , जिन में भारत की सीरम कम्पनी प्रमुख है , क्योंकि सब से ज्यादा उत्पादन भारत में होना है |

जिन व्यक्तियों पर वेक्सिन का ट्रायल किया जा रहा था , उन में से एक महिला वालंटियर ने रीढ़ की हड्डी में दर्द होने की शिकायत की , यह मामला इस लिए गंभीर हो गया , क्योंकि जुलाई में भी परीक्षण में शामिल एक वालंटियर ने रीढ़ की हड्डी में दर्द की शिकायत की थी | ताज़ा शिकायत के बाद  एस्ट्राजेनेका ने अपनी कोरोना वैक्सीन के अंतिम दौर के ट्रायल को टाल दिया है |…

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Published: 09.Sep.2020, 21:05

अजय सेतिया / सुशांत सिंह राजपूत की हत्या या आत्महत्या के मामले में मुम्बई पुलिस की जांच पहले दिन से संदेह के घेरे में थी , मीडिया उस पर सवाल उठा रहा था | नसीरुद्दीन शाह और आमिर खान जैसे जिन फ़िल्मी कलाकारों का कुछ दिन पहले तक दम घुटता था , उन की चुप्पी रहस्यपूर्ण थी | न वे जांच पर संदेह कर रहे थे , न बिना जांच आत्महत्या कहे जाने पर सवाल उठा रहे थे | आखिर क्या कारण था कि किसी बड़े फ़िल्मी कलाकार ने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या पर निष्पक्ष जांच की आवाज नहीं उठाई , ऐसे वातावरण में किसी का दम क्यों नहीं घुटा , जिस में जीवन तक सुरक्षित नहीं रहा था | क्या भारत के मन में यह सवाल नहीं उठता होगा कि वे सब चुप क्यों थे , आज भी चुप हैं |

आखिर सवाल खड़ा होता है कि जब चारों तरफ से सीबीआई जांच की मांग उठ रही थी , तो शिव सेना ने मुम्बई पुलिस के बचाव में बयानबाजी क्यों की | पुलिस खुद जवाब देती , शिवसेना क्यों पुलिस के बचाव पर उतरी | इसे मराठी –गैर मराठी का सवाल क्यों बनाया गया | न तो रिया चक्रवर्ती मराठी है , न सुशांत सिंह राजपूत मराठी थे , फिर शिव सेना ने महाराष्ट्र पुलिस को निष्पक्ष…

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Published: 08.Sep.2020, 21:07

अजय सेतिया / चौदह सितम्बर से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है | वजह यह बताई जा रही है कि नियमानुसार संसद की दो बैठकों के बीच अधिकतम 180 दिन का वक्फा हो सकता है , संसद का बजट सत्र क्योंकि 23 मार्च को खत्म कर दिया गया था , इस लिए संसद की बैठक 22 सितम्बर से पहले होनी चाहिए | बजट सत्र 3 अप्रेल तक चलना था , वह देश में कोरोनावायरस की बीमारी फ़ैल जाने के कारण दस दिन पहले सत्रावसान करना पड़ा था | हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई थी कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिरने तक सत्रावसान नहीं किया , जब कि तब तक भारत में हालात बिगड़ चुके थे | 18 मार्च 2020 तक भारत में 1000 से ज्यादा लोग कोरोनावायरस से पीड़ित हो चुके थे और 27 लोगों की मौत भी हो चुकी थी , भारत में 21 दिन के लाकडाउन की घोषणा कर दी गई थी , 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू लग चुका था , लेकिन संसद चल रही थी |

दुनिया भर में छह लाख लोग संक्रमित हो चुके थे , मरने वालों का आंकडा भी 30 हजार से ज्यादा हो चुका था | आखिरकार 23 मार्च को जब सत्रावसान क…

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Published: 07.Sep.2020, 17:56

अजय सेतिया /सुशांत सिंह की मौत के बाद कंगना रानौत ने ड्रग माफिया , फिल्म इंडस्ट्री और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ का खुलासा कर के सुशांत सिंह की हत्या किए जाने की आशंका जताई थी | मामला इतना तूल पकड़ा कि सुप्रीमकोर्ट में गया और कोर्ट के रास्ते सीबीआई के पास पहुंच गया | सीबीआई के बाद नारकोटिक्स जांच एजेंसी के पास पहुंच गया | रिया चक्रवर्ती का सारा परिवार ड्रग रैकेट में फंसता दिखाई दे रहा है , आने वाले दिनों में कई फ़िल्मी हस्तियों और राजनीतिज्ञों के फंसने के भी आसार हैं |

इस सारे घटनाक्रम से शिव सेना और खासकर शिवसेना के सांसद संजय राउत सब से ज्यादा परेशान हैं | उन्होंने कंगना रानौत के खिलाफ अनाप शनाप बोलना शुरू कर दिया और सारी मर्यादाएं तोड़ कर यहाँ तक कह दिया कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान कर रही हैं , अगर अपने बाप की औलाद हैं तो मुम्बई में आ कर दिखाएं | संजय राउत ने कंगना रानौत को हरामखोर तक कह डाला , जिस से सारे देश खासकर उत्तर भारतीयों में रोष है | कंगना क्योंकि हिमाचल मूल की हैं , इस लिए हिमाचल सरकार ने केंद्र सरकार से उन की सुरक्षा की दरख्वास्त की थी , जिस पर गृह मंत्री…

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Published: 04.Sep.2020, 19:58

अजय सेतिया / 1979 में वियतनाम से मात खाने के बाद चीनी सेना का बड़ी तेजी से आधुनिकीकरण चल रहा है , उस का रक्षा बजट कई गुना बढ़ गया है | लेकिन युद्ध कौशल के मामले में पीएलए भारत और अमेरिका से काफी पीछे है | मोदी सरकार आने के बाद भारत ने कुछ क्षेत्रों में चीन पर बढत बना ली है जैसे हाल ही में फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमान | चीन के त्वरित खतरे को देखते हुए ही मोदी सरकार 126 राफेल विमानों की जगी तुरंत 36 राफेल विमान खरीदे हैं, जिनमें मेटिओर और स्कैल्प मिसाइलें भी तैनात हैं | मेटिओर 100 किलोमीटर, जबकि स्कैल्प 300 किलोमीटर तक सटीक निशाना साध सकती हैं |

 

चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और विश्व विजेता बनने की लालसा सबको साफ़ नज़र आ रही है | लेकिन 1979 में चीन के वियतनाम से हारने के बाद भारत जानता है कि पीएलए जवानों में भारतीय फौजियों की तरह देश के लिए कुर्बानी का जज्बा नहीं है | इस की एक ख़ास वह यह भी है कि पीएलए के ज्यादातर जवान अपने मां बाप की इकलौती संतानें है , इसलिए कुर्बानी से डरते हैं | बरसों तक चली चीन की एक बच्चा पैदा करने की पालिसी के कारण ऐसा…

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Published: 03.Sep.2020, 20:20

अजय सेतिया / चीन में सिविल वार अगस्त 1927 में शुरू हुई थी , जब क्यूमिनतांग सेना के नौ विद्रोही कमांडरों ने अपनी-अपनी टुकड़ी के साथ कियेंग्सी प्रांत की राजधानी नानचांग पर हमला कर के चार घंटे में कब्ज़ा कर लिया था | यहीं से कम्युनिस्ट विद्रोहियों की शुरुआत हुई ,मौजूदा पीपल्स लिबरेशन आर्मी का इतिहास यहीं से शुरू होता है | उस समय इस विद्रोही सेना का नाम रखा गया था- चाइनीज़ वर्कर्स ऐंड पीजेन्ट्स रेड आर्मी | यानी, चीन के कामगारों और किसानों की लाल सेना, जिसे संक्षेप में रेड आर्मी कहा जाता था | चीन की सिविल वार 22 साल तक यानी 1949 तक चली | पहली अक्टूबर 1949 में कम्यूनिस्टों ने राष्ट्रवादी क्यूमिनतांग पार्टी और उसके मुखिया चियांग काई शेक को चीन से भागने पर मज़बूर कर दिया | चियांग काई शेक के चीन से भागने के बाद माओ त्से तुंग ने कम्यूनिस्ट चीन की नींव रखी, तो देश का नया नाम पड़ा- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना | रेड आर्मी को भी नया नाम मिला- पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए | .

पीपल्स लिबरेशन आर्मी में देश के नाम का उल्लेख नहीं है , जैसे भारतीय सेना , अमेरिकी सेना या ब्रिटिश सेना | य…

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Published: 02.Sep.2020, 21:08

अजय सेतिया / ऐसा लगता है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए चीन सरकार की बात नहीं सुन रही | एक तरफ चीन सरकार के बयान तनाव को कम करने वाले आ रहे हैं तो दूसरी तरफ पीएलए ने लद्दाख से ले कर अरुणांचल तक अपनी हरकतें तेज कर दी हैं | कुछ कुछ कारगिल जैसा ही हो रहा है | कारगिल के समय नवाज शरीफ प्रधानमंत्री और परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे | नवाज शरीफ ने बाद में कहा था कि पाकिस्तानी सेना के कारगिल आपरेशन की उन्हें जानकारी नहीं थी | जिस पर बाद में मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट दिया था |

पीएलए असल में चीन की सेना नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी की सेना है और उस के चार कामों में से एक काम चीन में कम्युनिस्ट सरकार को बनाए रखना भी है , लेकिन अब सवाल यह है कि सरकार की कथनी और पीएलए की करनी में अंतर क्यों है | सरकार की कथनी और करनी में भी अक्सर हमें अंतर दिखाई देता है , क्योंकि सरकार को अपने हर कदम की कम्युनिस्ट पार्टी से सहमती लेनी पडती है | जहां अपना आकलन यह है कि कम्यूनिस्ट सरकार अंतर्राष्ट्रीय स्थिति का आकलन करती है , वहीं पीएलए अपनी विस्तारवादी नीति पर ही आगे बढती रहती…

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Published: 01.Sep.2020, 20:43

अजय सेतिया / 23 अगस्त को अपन ने लिखा था कि चीन से दो-दो हाथ करने पड सकते हैं | अगले दिन जब यह कालम छपा था तो उसी दिन जनरल रावत का बयान आया था कि चीन से निपटने के लिए सैन्य विकल्प खुला है | विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पिछले हफ्ते कहा था कि लद्दाख की स्थिति 1962 के संघर्ष के बाद 'सबसे गंभीर' है , दोनों तरफ से तैनात सुरक्षा बलों की संख्या भी 'अभूतपूर्व' है | पन्द्रह जून की रात को भारत और चीन के सैनिकों में हुई मुठभेड़ से पहले खबरें आ चुकीं थी कि पीएलए कम से कम 8 किलोमीटर अंदर घुस आई है | इस मुठभेड़ में चीन के कम से कम 43 सैनिक मारे गए थे , भारत उसे फिंगर 4 से खदेड़ने में कामयाब हो गया था , लेकिन लक्ष्य फिंगर 8 से पार खदेड़ने का है क्योंकि मार्च 2020 में वह फिंगर 8 के पार था |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 17 जून को लद्धाख जा कर शहीद हुए 20 जवानों को श्रद्धांजली दे कर चीन को स्पष्ट संकेत दिया था कि यह 1962 नहीं है | हालांकि इस के बावजूद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आए दिन सीमा पर तनाव को ले कर सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं | जबकि मोदी सरकार ने भारतीय फ़ौ…

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Published: 31.Aug.2020, 19:50

अजय सेतिया / क्या आप हैरान नहीं हुए कि सोशल मीडिया पर स्वीडन में मुस्लिम हिंसा की खबरों की भरमार के बावजूद भारत के मेनलाईन मीडिया में ये खबरें क्यों दिखाई नहीं दी | यह समझना मुश्किल नहीं है , लेकिन हमें समझना चाहिए | अगर हम समझ जाएंगे , तो आने वाले समय में भारत को स्वीडन बनने से बचा सकते हैं , नहीं तो 50 साल बाद भारत का हर शहर बेंगलुरु की तरह जलेगा | इस की वजह है  कम्यूनिस्टों की ओर से मुस्लिम कट्टरपंथ को अपना हथियार बनाया जाना , भले ही मोदी सरकार आने के बाद भारतीय  मीडिया के राष्ट्रवादी पत्रकार खुल कर पत्रकारिता करने लगे हैं , लेकिन ज्यादातर मीडिया घरानों के महत्वपूर्ण पदों पर अभी भी कम्यूनिस्ट पत्रकारों का कब्जा है , जो मुस्लिम आतंकवाद को छुपाने की कोशिशे करता रहता हैं , वह आतंकवाद श्रीनगर में हो , दिल्ली में हो , बेंगुलुरु में हो या स्वीडन में |

इसी साल फरवरी में दिल्ली और आसपास के इलाकों में हुए मुस्लिम हिंसक दंगों के असली अपराधियों को छुपाने में भी मीडिया ने कोई कसर नहीं छोडी थी | खुद को सहिष्णु और विरोधियों को असहिष्णु बताने वाले वामपंथियों ने दिल्ली क…

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Published: 28.Aug.2020, 17:48

अजय सेतिया  / कांग्रेस की हाल ही की दो घटनाएं सोनिया गांधी की राजनीतिक शैली की ओर इशारा करती है | 7 अगस्त को जब कांग्रेस के 23 वरिष्ठतम सदस्यों ने सोनिया गांधी को चिठ्ठी लिख कर पार्टी में लोकतंत्र भाल करने की आवाज़ उठाई थी , तो सोनिया गांधी ने तुरंत कार्यसमिति की बैठक बुलाई , और बैठक से पहले वह चिठ्ठी मीडिया में लीक करवा दी | कांग्रेसियों में अभी भी सुगबुगाहट है कि चिठ्ठी के.सी.वेणुगोपाल ने लीक की थी, जो इस समय सोनिया गांधी की किचेन केबिनेट के मैम्बर हैं | इस के बजाए सोनिया गांधी उन सभी 23 नेताओं को बुला कर पार्टी में जान फूंकने के उपाओं पर विचार कर सकती थी , उस बैठक में एक पेपर तैयार हो सकता था , जिसे कार्यसमिति में रखा जा सकता था या पचमढी जैसे मंथन की रूपरेखा बन सकती थी |

कांग्रेस में किसी महत्वपूर्ण बैठक से पहले अगर कुछ चीज लीक की जाती है , तो उस का ख़ास मकसद होता है , और मकसद इस लीक का भी था , जो पूरा भी हुआ | बैठक में चिठ्ठी की निंदा की गई | सोनिया गांधी की शैली का दूसरा उदाहरण बैठक से तीसरे दिन 27 अगस्त को मिला , जब सोनिया गांधी ने चिठ्ठी लिखने वाले प्रमुख न…

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