पीएलए चीन नहीं, कम्युनिस्ट सेना-1 

Publsihed: 03.Sep.2020, 20:20

अजय सेतिया / चीन में सिविल वार अगस्त 1927 में शुरू हुई थी , जब क्यूमिनतांग सेना के नौ विद्रोही कमांडरों ने अपनी-अपनी टुकड़ी के साथ कियेंग्सी प्रांत की राजधानी नानचांग पर हमला कर के चार घंटे में कब्ज़ा कर लिया था | यहीं से कम्युनिस्ट विद्रोहियों की शुरुआत हुई ,मौजूदा पीपल्स लिबरेशन आर्मी का इतिहास यहीं से शुरू होता है | उस समय इस विद्रोही सेना का नाम रखा गया था- चाइनीज़ वर्कर्स ऐंड पीजेन्ट्स रेड आर्मी | यानी, चीन के कामगारों और किसानों की लाल सेना, जिसे संक्षेप में रेड आर्मी कहा जाता था | चीन की सिविल वार 22 साल तक यानी 1949 तक चली | पहली अक्टूबर 1949 में कम्यूनिस्टों ने राष्ट्रवादी क्यूमिनतांग पार्टी और उसके मुखिया चियांग काई शेक को चीन से भागने पर मज़बूर कर दिया | चियांग काई शेक के चीन से भागने के बाद माओ त्से तुंग ने कम्यूनिस्ट चीन की नींव रखी, तो देश का नया नाम पड़ा- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना | रेड आर्मी को भी नया नाम मिला- पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए | .

पीपल्स लिबरेशन आर्मी में देश के नाम का उल्लेख नहीं है , जैसे भारतीय सेना , अमेरिकी सेना या ब्रिटिश सेना | यह इस लिए है क्योंकि यह कम्युनिस्ट विद्रोही सेना है , चीन की सेना नहीं , इस लिए आप ने देखा होगा कि भारत के कम्युनिस्ट भी कभी पीएलए के खिलाफ कुछ नहीं बोलते | अलबत्ता जब कभी भारतीय सेना के साथ पीएलए का टकराव होता है तो भारत के कम्युनिस्ट भी पीएलए के पक्ष में ही बोलते हैं |  चीन में सिविल वॉर के दौर की तरह पीएलए आज भी कम्यूनिस्ट पार्टी का ही सशस्त्र विंग बना हुआ है | पीएलए की निष्ठा, उसकी जवाबदेही चीन के प्रति नहीं, चीन की जनता के प्रति नहीं, बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के प्रति है | इसका मुख्य कर्तव्य है कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को बनाए रखना | यह सुनिश्चित करना कि उसका शासन और उसका असर बना रहे |  

 

दिसंबर 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने इक्कसवीं सदी में सेनाओं की भूमिका पर दिए अपने भाषण में कहा था पीएलए के चार प्रमुख कार्य हैं | पहला कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को मज़बूत करना, दूसरा राष्ट्रीय विकास के लिए चीन की संप्रभुता, उसके इलाकों की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना , तीसरा चीन के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करना और चौथा वैश्विक शान्ति बनाए रखने में मदद करना | हालांकि चौथा कार्य हास्यस्पद है क्योंकि पीएलए पूरी दुनिया में अशांति फैलाने में लगी हुई है | 1949 में पीएलए तिब्बत पर कब्जा कर लिया था | भारत , भूटान , हांगकांग, वियतनाम और अब नेपाल के साथ भी चीन का सीमा विवाद चल रहा है | पीएलए दक्षिण समुद्र तक कब्जे की फिराक में है |  हालांकि 1979 में पीएलए को वियतनाम के साथ युद्ध में मुहं की कहानी पड़ी थी | लेकिन 1980 के बाद पीएलए का बड़ी तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है | इस समय पीएलए दुनिया की सब से बड़ी सेना है | दूसरे नम्बर पर अमेरिका और तीसरे नम्बर पर भारत है | भारत के पास 13.25 लाख सैनिक है | इसके विपरीत पीएलए में  23.35 लाख जवान है और उसने पूरे हिमालय में अपनी सेना को लगा रखा है |

 

आमतौर पर हर देश की सेना के तीन अंग होते हैं , थल सेना , वायु सेना और जल सेना , लेकिन पीएलए के दो और विंग हैं रॉकेट फोर्स और स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स | जैसे भारत ने अभी हाल में जनरल विपिन रावत को तीनों सेनाओं का प्रमुख बनाया है , उसी तरह पीएलए की कमान सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के पास होती है | चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया ही राष्ट्रपति होता है और राष्ट्रपति ही इस कमीशन का भी सर्वेसर्वा होता है | शी चिनफिंग 2013 में राष्ट्रपति बनने के एक साल पहले ही सेंट्रल मिलिटरी कमीशन और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख बन गए थे | इस से साबित होता है कि राष्ट्रपति नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया ही पीएलए का प्रमुख होता है | यानी यह चीन नामक देश की नहीं कम्युनिस्ट पार्टी की सेना है |

( जारी ) कम्युनिस्ट सेना की भविष्य की रणनीति-2  

 

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