कम्युनिस्ट सेना की भविष्य की रणनीति-2 

Publsihed: 04.Sep.2020, 19:58

अजय सेतिया / 1979 में वियतनाम से मात खाने के बाद चीनी सेना का बड़ी तेजी से आधुनिकीकरण चल रहा है , उस का रक्षा बजट कई गुना बढ़ गया है | लेकिन युद्ध कौशल के मामले में पीएलए भारत और अमेरिका से काफी पीछे है | मोदी सरकार आने के बाद भारत ने कुछ क्षेत्रों में चीन पर बढत बना ली है जैसे हाल ही में फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमान | चीन के त्वरित खतरे को देखते हुए ही मोदी सरकार 126 राफेल विमानों की जगी तुरंत 36 राफेल विमान खरीदे हैं, जिनमें मेटिओर और स्कैल्प मिसाइलें भी तैनात हैं | मेटिओर 100 किलोमीटर, जबकि स्कैल्प 300 किलोमीटर तक सटीक निशाना साध सकती हैं |

 

चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और विश्व विजेता बनने की लालसा सबको साफ़ नज़र आ रही है | लेकिन 1979 में चीन के वियतनाम से हारने के बाद भारत जानता है कि पीएलए जवानों में भारतीय फौजियों की तरह देश के लिए कुर्बानी का जज्बा नहीं है | इस की एक ख़ास वह यह भी है कि पीएलए के ज्यादातर जवान अपने मां बाप की इकलौती संतानें है , इसलिए कुर्बानी से डरते हैं | बरसों तक चली चीन की एक बच्चा पैदा करने की पालिसी के कारण ऐसा हुआ है | इस के अलावा पीएलए के पास युद्ध लड़ने का अनुभव भी नहीं है | सिविल-वॉर से बाद पीएलए ने अपने पूरे इतिहास में चार बाहरी युद्ध लड़े हैं | पहला, 1950 से 1953 तक कोरियन वॉर | दूसरा, 1962 में भारत से , तीसरा 1969 में सीमा विवाद पर सोवियत की सेना से भिड़ंत और चौथा, 1979 में वियतनाम के साथ , जिस में उसे मुहं की कहानी पड़ी थी |

 

वियतनाम युद्ध के बाद पीएलए ने सीमा पर कई बार भारत जैसे दुश्मन देशों से छोटी मोटी झड़पें ही की है. किसी की सीमा में चुपके से घुस जाना, समंदर में दूसरे देशों की नावें डुबा देना, दूसरे देशों के जहाज़ों का पीछा करना और उन्हें खदेड़न | इस तरह की हरकतों के अलावा पीएलए के ज़्यादातर लोगों के पास भारत या अमेरिका जैसे बड़े देश के साथ युद्ध  का कोई अनुभव ही नहीं है | जानकारों का मानना है कि केवल वर्ल्ड-क्लास हथियार बनाने और खरीदने से पीएलए ताकतवर नहीं बन सकता, वह साज-सज्जा में भले ही कितनी भी ताकतवर हो गई हो, मगर अपने से मज़बूत देश के साथ लड़ाई में उसकी जीत का चांस नहीं है | आसान भाषा में कहें, तो अपने से कमज़ोर देशों के ऊपर तो उसका दांव बेशक चल सकता है, लेकिन भारत और अमेरिका जैसी ताकत के साथ आमने सामने की क्षमता नहीं है |

 

अभी हाल ही में देखने में आया जब अप्रेल 2020 में पेंगोंग झील उत्तरी क्षेत्र में फिंगर 8 से फिंगर चार पर आ जाने के बाद वह दो बार बुरी तरह मात खा चुका है | पहले 15 जून को फिंगर 4 पर भारत के २० जवानों के बदले उस के 80 जवान मारे गए और फिर 31 अगस्त को भारतीय तिब्बती सेना एसऍफ़ऍफ़ के हाथों 1962 में जीती ब्लैक टाप गवा ली | इन दो घटनाओं के बाद बातचीत की मेज पर पीएलए कमांडरों के तेवर ढीले पड गए और मास्को मे शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान चीन के रक्षामंत्री वेई फेंघे ने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात का आग्रह किया |

 

हालांकि चीन की कम्युनिस्ट सरकार और कम्युनिस्ट सेना पीएलए की महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है , उन का मंसूबा 2050 में विश्व विजेता बनने का है | चिनफिंग की विश्व विजेता बनने की इस महत्वाकांक्षा को चाइनीज़ ड्रीमकहते हैं | इस चाइनीज ड्रीम को पूरा करने के लिए पीएलए का बड़ी तेजी से विस्तार हो रहा है | सन 2000 में चीन का कुल रक्षा बजट 30 बिलियन डॉलर था , जो 2011 में 143 बिलियन डॉलर हो गया था और 2012 में शी चिनफिंग के पीएलए का मुखिया बनने के बाद रक्षा बजट 160 बिलियन डॉलर हो गया |

इस समय चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले तीन गुना है | पिछले साल चीन का रक्षा बजट 177.6 बिलियन डॉलर था , जो इस साल बढ़कर 179 बिलियन डॉलर हो गया | इस रफ्तार से 2035 तक चीन का रक्षा बजट अमेरिकी सुरक्षा बजट को भी पीछे छोड़ देगा | अमेरिका के बाद सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वाला चीन दुनिया का दूसरा देश है |चीन के इस साल के रक्षा बजट में वृद्धि पिछले कुछ सालों के मुकाबले सबसे कम वृद्धि है | इसकी एक प्रमुख वजह कोरोना वायरस के कारण अर्थव्यवस्था में आए भारी संकट को माना जा रहा है |

आपकी प्रतिक्रिया