अब सब को वेक्सीन, देर आए , दुरुस्त आए

Publsihed: 19.Apr.2021, 20:50

अजय सेतिया / अपना शुरू से मत रहा है और अपन कई बार लिख भी चुके हैं | टीवी चेनल पर चर्चा में भी अपना मत साफगोई से रख चुके हैं कि मोदी को ब्यूरोक्रेसी के मक्कड़जाल से निकल कर राजनीतिक लोगों से सलाह मशविरा ले कर निर्णय करने चाहिए | लेकिन यह गलती सिर्फ मोदी के स्तर पर ही नहीं हो रही , राज्यों के भाजपाई मुख्यमंत्री भी इसी तरह की गलतियाँ कर रहे हैं | जिस से जनाक्रोश बढ़ता है | उत्तराखंड का उदाहरण अपने सामने है | कोरोनावायरस से पहले भी अपन पिछले कई सालों से लिख रहे हैं कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को अपना राजनीतिक फीडबैक मजबूत करना चाहिए | ब्यूरोक्रेसी से मिले फीडबैक के आधार पर फैसला करने की बजाए काउन्टर चेक किया जाना चाहिए | राजनीतिक मामलों की केबिनेट कमेटी की बैठकें साप्ताहिक स्तर पर होने चाहिए | अगर अपन संक्रमन की मौजूदा रफ्तार के लिए ब्यूरोक्रेटिक फैसलों को जिम्मेदार ठहराएं तो गलत नहीं होगा |

अपन जानते हैं कि भारत में मेन्युफेकचर की गई कोवेक्सिन और कोवाशिल्ड दुनिया के अन्य देशों को देने की हमारी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिब्द्ध्ता थी , क्योंकि वेक्सीन पर उन देशों का भी हक बनता हैं , जहां के नागरिकों ने रिस्क लेकर वेक्सीन को टेस्ट करने में भूमिका निभाई है | लेकिन उस का कोई अनुपात तय होना चाहिए था | जैसे 25 प्रतिशत निर्यात किया जाएगा और 75 प्रतिशत भारत में इस्तेमाल होगा , या एक तिहाई निर्यात होगा | लेकिन अपन ने देखा जब सात लाख भारतीयों का वेक्सीनेशन हुआ था , तब तक अपन 6 लाख वेक्सीन निर्यात कर चुके थे | अपन ने इसी जगह पर 25 मार्च को लिखे अपने कालम निर्यात रोक पहले भारत को वेक्सीन दो  में इस मुद्दे को जोर दे कर उठाया था | अगले दिन 26 मार्च को अपन ने फिर लिखा कि वैक्सीनेशन की रफ्तार पर्याप्त नहीं  , क्योंकि अपन देख रहे थे कि 60 साल से ज्यादा आयु की 50 प्रतिशत आबादी का भी वेक्सीनेशन नहीं हुआ था | तब अपन ने जरा और जोर दे कर 7 अप्रेल को लिखा जिद्द छोडो , पहले देश का वेक्सीनेशन करो , लेकिन सरकार नहीं जागी ,अपन लिख रहे थे कि इस बार 45 साल से कम आयु वाले लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं , इस लिए आयु की सीमा तुरंत खत्म की जाए |

दिल्ली और मुम्बई से संक्रमण के बड़ी तेजी से फैलने की खबरें आ रही थी और फेक्ट्रियां फिर बंद होने लगी थी | अपन ने आज से 12 दिन पहले 8 अप्रेल को सरकार को आगाह किया था कि पलायन की स्थिति फिर बनने लगी है | अपना मानना था कि वेक्सीनेशन की आयु राजनीतिक नेतृत्व को तय करना चाहिए | 13 अप्रेल को जब हालात बिगड़ गए तब सरकार ने पहला समझदार फैसला किया , जिस पर उस दिन अपन ने लिखा वेक्सीन का निर्यात रुकेगा, आयात भी होगा | यह पहले भी हो सकता था लेकिन सब ओर से आ रही सलाहों को नजरंदाज किया गया क्यों कि स्वयंभू विशेषग्य ब्यूरोक्रेट्स प्रधानमंत्री को गुमराह कर रहे थे | उन्हें विदेशी वेक्सीन के आयात का फैसला भी राजनीतिक स्तर पर करना पड़ा और अब  हालात इतने बिगड़ गए हैं कि देश में हर रोज संक्रमण के तीन लाख नए मामले आ रहे हैं |

महाराष्ट्र और दिल्ली में लाकडाउन शुरू हो चुका है | मुम्बई और दिल्ली से पलायन शुरू हो चुका है | मृतकों की तादाद भी बढ़ रही है , तब जा कर प्रधानमंत्री को 19 अप्रेल को उन डाक्टरों से वीडियो कांफ्रेंस कर के उन की सलाह पर पहली मई से 18 साल की उम्र से वेक्सीनेशन करने और राज्य सरकारों को सीधे वेक्सीन खरीदने की छूट देनी पड़ी | जबकि ये सभी डाक्टर , जिन में खासकर देवी शेट्टी पिछले 20 दिन से टीवी चेनलों पर चर्चा में उम्र की सीमा खत्म करने की मांग कर रहे थे | इस का मतलब साफ़ है कि प्रधानमंत्री को सही फीडबैक नहीं दिया जा रहा था , अपना दृढ़ मत है कि लोकतंत्र में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है | सरकारों के मुखियायों को मीडिया के माध्यम से सूचनाएं मिलती हैं , इसलिए पिछले सभी प्रधानमंत्रियों का मीडिया तन्त्र काफी मजबूत होता था | वाजपेयी जी के समय अशोक टंडन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और मनमोहन सिंह के वक्त पहले संजय बारू , फिर हरीश खरे और अंत में पंकज पचौरी प्रधानमंत्री के मीडिया एडवाईजर थे | जिन चारों का अपन ने जिक्र किया है उन चारों का पत्रकारिता में 25-25 साल का अनुभव था , वे प्रधानमंत्री को फीडबैक देते थे तो पत्रकारों को भी फीडबैक देते थे | लेकिन अब जमाना एजेंसियों का हायर करने का गया , वे ठेका लेती हैं , पैसा कमाती हैं , उस का कुछ हिस्सा ब्यूरोक्रेट्स को मिलता है | प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मीडिया के फीडबैक से वंचित रह जाते हैं | यह सिस्टम आत्माहीन सिस्टम है | खैर अपन दूसरे विषय की ओर भटक गए , वापस लौटते हैं | प्रधानमंत्री के देर से किए गए सही निर्णय की तारीफ़ की जानी चाहिए अभी भी बहुत देर नहीं हुई है | अब राज्य सरकारें वेक्सीन की कमी का ठीकरा केंद्र सरकार के सिर नहीं फोड़ सकतीं , जिस तरह उद्धव ठाकरे , ममता बेनर्जी , केजरीवाल , केसी चन्द्रशेखर राव आदि ने प्रधानमंत्री को चिठ्ठियाँ लिख कर उन के सिर पर ठीकरा फोड़ दिया था |  

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