संसदीय लोकतंत्र पर मंडराता खतरा 

Publsihed: 11.Aug.2021, 17:33

अजय सेतिया / याद करिए अपन का 20 जुलाई का कालम “स्पीकर चला पाएँगे क्या लोकसभा” और दस दिन बीत जाने के बाद दो अगस्त का कालम “ अगले 9 दिन भी संसद क्या चलेगी “ | अपन ने साफ़ साफ़ लिखा था कि संसद नहीं चलेगी | संसद का ना चलना अलग बात है | यह कोई पहली बार नहीं होने वाला था | पर अपना कहना था कि स्पीकर पूरी तरह नाकाम होंगे क्योंकि इस बार मीडिया भी उन के साथ नहीं होगा | आखिर लोकसभा स्पीकर ओम बिडला को दो दिन पहले ही सत्रावसान करना पड़ा | राज्यसभा में तो वैसे भी भाजपा बहुमत में नहीं , सो वहां तो हंगामा होना ही था | पर ऐसा हंगामा होगा कि सभापति वंकैयानायडू की नींद हराम हो जाएगी | इस की कल्पना तो अपन ने भी नहीं की थी | राज्यसभा वरिष्ठ राजनीतिज्ञों के लिए बनाया गया सदन है | राज्यसभा धीर गंभीर सदन ही था | ताकि जनता से सीधे चुने गए लोकसभा के सांसद अनुभवहीनता के कारण क़ानून बनाते समय कोई गलटी कर दें , तो उसे राज्यसभा सुधार ले |

राजीव गांधी के कार्यकाल को छोड़ दें , जब विपक्ष को बुल्डोज करने के लिए राजीव ब्रिगेड के पांच युवा राज्यसभा में भेजे गए थे | उस के बाद हाल ही के सालों तक राज्यसभा धीर गंभीर सीनियर राजनीतिज्ञों का सदन ही था | लोकसभा में तो मंत्री के हाथ से खिंच कर बिल फाड़े जाने के कई उदाहरण थे | पर अब राजसभा ने भी वह शर्मनाक रिकार्ड बना लिया है | आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने पिछले सत्र में वेल की टेबुल पर चढ़ कर संसदीय इतिहास की गौरवशाली परंपरा को भंग किया था | इस बार राज्यसभा की गरिमा को तहश नहश करने वालों में तृणमूल कांग्रेस की अर्पिता घोष और कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा का नाम भी जुड़ गया | अर्पिता घोष ने लाबी के दरवाजे का शीशा तोड़ दिया था | संजय सिंह से एक कदम आगे बढ़ते हुए बाजवा ने वेल की टेबुल पर चढ़ कर रूलबुक उपसभापति के मुहं पर दे मारी |

जब लोकसभा स्पीकर ओम बिडला सत्रावसान की घोषणा कर रहे थे | ठीक उसी समय वंकैयानायडू राज्यसभा में बता रहे थे कि बाजवा की हरकत के कारण वह रात भर सो नहीं पाए | सदन के भीतर चेयर के सामने रखे गए टेबुल पर महासचिव और रिपोर्टर बैठते हैं | वही जो सदन का सारा रिकार्ड बनाते और रखते है | वंकैयानायडू ने कहा कि जैसे मंदिर में गर्भगृह होता है , वैसे ही लोकतंत्र के मंदिर का यह गर्भग्रह है | जैसे गर्भगृह की पवित्रता होती है , वहां तक जाने की किसी को इजाजत नहीं होती | वैसे ही लोकतंत्र के मंदिर के गर्भग्रह की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए | इस घटना ने लोकतंत्र को तो कलंकित किया ही है | वंकैयानायडू की यह चेतावनी अति महत्वपूर्ण है कि इस तरह की घटनाओं से संसदीय लोकतंत्र महत्वहीन हो जाएगा | लेकिन संसदीय लोकतंत्र पर सिर्फ राजसभा और लोकसभा के भीतर खतरा नहीं मंडरा रहा |

छोटी छोटी घटनाएं मिल कर संसदीय लोकतंत्र को नुक्सान पहुंचा रही हैं | अपन पहले भी कई बार लिख चुके हैं कि मीडिया को लोकतंत्र के मंदिर की चारदीवारी से बाहर रखना भी लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है । ओम बिडला ने जब अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि संसदीय परंपराओं का ख़्याल रखना चाहिए । तो अपन को याद आया कि संसद में मीडिया भी संसदीय परंपरा का हिस्सा रहा है । इस मामले में कोविड के नाम पर वंकैयानायडू ने वह नहीं होने दिया , जो ओम बिडला ने होने दिया | ओम बिडला ने इस साल पत्रकारों के सालाना पास ही जारी नहीं किए | जबकि वंकैयानायडू ने इस तरह का कोई सुझाव मानने से इनकार दिया | हालांकि सेंट्रल हाल में पत्रकारों का प्रवेश रोकने में उन के हाथ बंधे के बंधे रह गए |

 

 

 

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