अजय सेतिया / खैर यह नैतिकता तो नहीं है , जिस को आधार बता कर अनिल देशमुख ने इस्तीफा दिया है | नैतिकता होती , तो उसी दिन इस्तीफा दे कर सीबीआई जांच की मांग करते , जिस दिन परमवीर सिंह ने सौ करोड़ रुपए माहवारी लेने का आरोप लगाया था | मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे में भी कोई नैतिकता होती तो वह उसी दिन अपने गृहमंत्री से इस्तीफा मांग लेते , जिस दिन उन्हें परमवीर सिंह की चिठ्ठी मिली थी | परमवीर सिंह में भी नैतिकता होती , तो वह मुम्बई के पुलिस कमिश्नर रहते हुए उस दिन मुख्यमंत्री को चिठ्ठी लिखते ,जिस दिन उन्हें पता चला था कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाझे जैसे छोटे पुलिस अधिकारियों को वसूली पर लगा रखा है , जिस कारण वह उन पुलिस कर्मियों से इमानदारी की अपेक्षा नहीं कर सकता | परमवीर सिंह में जरा भी नैतिकता होती तो यह सब जानते हुए वह वाझे को सम्मानित नहीं करते, जिस के फोटो अखबारों में छपे थे |
नैतिकता के हमाम में सब नंगे हैं , सिर्फ अनिल देशमुख , परमवीर सिंह और सचिन वाझे ही क्यों , उद्धव ठाकरे और शरद पवार भी , जो पिछले 15 दिन से भ्रष्टाचार को दबाने की कोशिश में लगे हुए थे | उद्धव ठाकरे , शरद पवार और अनिल देशमुख पिछले 15 दिनों से बैठकें कर के मामले को रफा दफा करने की कोशिश कर रहे थे | जब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सुप्रीमकोर्ट से हाई कोर्ट पहुंचा तो तीनों के हाथ पाँव फूल गए थे | कही कोर्ट सीबीआई जांच के आदेश न दे दें , इसीलिए तीनों ने नैतिकता को ताक पर रख कर न्यायिक जांच का आदेश देने की रणनीति बनाई थी | जब हाईकोर्ट ने परमवीर को लताड़ लगाई कि उन्होंने उद्धव ठाकरे को चिठ्ठी लिखने की बजाए ऍफ़आईआर दर्ज क्यों नहीं करवाई तो उद्धव , पवार और देशमुख खुश थे , अलबत्ता परमवीर को सस्पेंड करने की रणनीति बना रहे थे | इन तीनों ने जब अर्नब गोस्वामी के खिलाफ परमवीर सिंह को इस्तेमाल किया था , और अनिल देशमुख ने अर्नब के आत्महत्या करने की भविष्यवाणी की थी , तब कौन सी नैतिकता थी |
अपन याद करवाते है अपना 24 मार्च का कालम , जिस में अपन ने लिखा था कि किस राज्य में ट्रांसफर पोस्टिंग उद्योग नहीं | तो नैतिकता की दुहाई दे कर इस्तीफा तब दिया जाता है , जब बचने का कोई रास्ता न बचे | वरना देश के सभी राज्यों में पुलिस सिर्फ लूट खसूट के लिए रखी हुई है और ट्रांसफर पोस्टिंग मंत्रियों का धंधा बना हुआ है | ट्रांसपोर्ट विभाग , आबकारी विभाग, खनन विभाग सब लूट खसूट के मंत्रालय हैं , जिस के लिए मंत्री लाचार रहते हैं | और यह कोई पहली बार नहीं है कि वसूली में किसी मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा हो | अभी हाल ही में नितीश कुमार के शिक्षा मंत्री मेवालाल को रिश्वत के पुराने मामले में मंत्री बनने के तीन दिन के अंदर इस्तीफा देना पड़ा था | मनमोहन सरकार से ए.राजा , दयानिधि मारन , वीरभद्र सिंह , पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार को इस्तीफा देना पड़ा था | नरसिंह राव सरकार से सुखराम को इस्तीफा देना पड़ा था | इस्तीफा तो जैन हवाला डायरी में भी कई मंत्रियों का हुआ , पर आरोप साबित न हुए | इस्तीफा तो जार्ज फर्नाडिज का भी प्रायोजित तहलका स्टिंग में हुआ , लेकिन आरोप साबित न हुए |
कई आईएएस , आईपीएस , इंजीनियर वक्त वक्त पर भ्रष्टाचार , आमदनी से ज्यादा की प्रापर्टी के मामलों में निलम्बित , बर्खास्त और गिरफ्तार होते रहे हैं | कुछ दिन अखबारों की सुर्खियाँ बनतीं है .... और फिर लंबा मौन | भ्रष्टाचार –लूट-खसूट का कोई स्थाई समाधान नहीं खोजता | सब कुछ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की नाक के नीचे होता रहता है | वाझे जैसे पुलिस अफसर देश के हर थाने में मौजूद हैं , जो लग्जरी कारों के मालिक हैं , जबकि तनख्वाह में औकात 800 सीसी की मारुती खरीदने की भी नहीं होती | निगरानी करने वाली सारी विजिलेंस एजेंसियां सोई रहती हैं , बल्कि विजिलेंस एजेंसियों के अफसरों , आयकर कमिश्नरों , चीफ इंजीनियरों की पाँचों उंगलिया घी में रहती हैं | इन एजेंसियों और अफसरों को भी पता है कि राजनेता अपने विरोधियों पर उन का इस्तेमाल कर के संतुष्ट हो जाते हैं , इस लिए वे अपनी लूट खसूट बनाए रखते हैं , उन्हें किसी का खौफ नहीं क्योंकि वे ऊपर तक हिस्सा पहुंचा देते हैं | यानी राजनेता हो या नौकरशाह , देश की जनता को लूट रहे हैं ,जैसे ब्रिटिश राज में लूटते थे | क़ानून का डंडा दिखा कर उगाही चालू आहे | उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने अनिल देशमुख का इस्तीफा करवा कर फिलहाल अपनी सरकार बचा ली , बस राजनीतिज्ञों का वही अंतिम लक्ष्य है , जनता को वसूली की लूट से बचाना नहीं | एक मंत्री के इस्तीफे से वसूली का धंधा नहीं रुकने वाला |
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