नया इंडिया, 03 November 2015
जम्मू-कश्मीर नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की हरकतों का भारत से कड़ा जवाब मिलने का पाकिस्तान पर गहरा असर हुआ है। तभी अक्तूबर में अमेरिका-पाक वार्ता में नवाज़ शरीफ ने इस मुद्दे पर बाराक ओबामा के सामने गहरी चिंता जाहिर की। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की यह महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही हैं कि संयुक्त राष्ट्र मे विफलता के बावजूद वे बाराक ओबामा के साथ साझा बयान मे नियंत्रण रेखा पर तनाव का उल्लेख करवाने में सफल हुए।
इसे चाहे तो हम भारत-पाक संबंधों में अमेरिका की नई दिलचस्पी मान सकते है। मुंबई पर हुए 26 /11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने पहली बार पाक के साथ साझा बयान में भारत -पाक द्विपक्षयीय वार्ता मे भूमिका निभाने की इच्छा जाहिर की है। इससे पहले भारत के खिलाफ परंपरागत हमलावर रुख पर नवाज शरीफ को संयुक्त राष्ट्र में सफलता नहीं मिली थी। उनका संयुक्त राष्ट्र में दिया गया चार सूत्रीय फॉर्मूला भी उनकी घबराहट को बताने वाला था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उस फार्मूले को ठुकरा दिया था इसलिए उसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई, लेकिन अमेरिका-पाक साझा बयान के बाद उसका विश्लेषण करना जरूरी है।
पाकिस्तान के पेश पहले सूत्र में कहा गया कि 2003 के समझौते के तहत नियंत्रण रेखा पर पूर्णतय: युद्ध विराम हो। दूसरा- दोनों तरफ से संकल्प लिया जाए कि किसी भी सूरत में सेना का उपयोग नही किया जाएगा। तीसरा- कश्मीर को सेना से मुक्त करना और चौथा सूत्र सियाचिन ग्लेशियर से फौज को हटाना। यदि पहला सूत्र देखें तो पाएंगे कि नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का पहले उल्लंघन हमेशा पाकिस्तान ने किया, ऊफा सम्मेलन के बाद तो उस में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी आई थी, जिसका भारत ने बहुत कड़ा जवाब दिया। पहली बार भारत सरकार ने सेना को करारा जवाब देने की खुली छूट दे दी थी।
इसलिए पाकिस्तान को समझ आ चुका है कि भविष्य मे युद्ध विराम तोडऩे पर क्या नतीजे निकलेंगे, संभवत: यह बात पाक फौज को भी समझ आ गई है। इसलिए उनके फार्मूले का दूसरा सूत्र था नियंत्रण रेखा पर फौज का इस्तेमाल किसी सूरत में नहीं हो। यानि ऊफा के बाद नियंत्रण रेखा पर किए गए दुस्साहस का अनापेक्षित जवाब मिलने से पाकिस्तान ने सबक सीखा है, भारत की जवाबी कार्रवाही मे पाकिस्तान का भारी नुकसान हुआ। सीमा पर हुए नुकसान को पाक सरकार व सेना पाक आवाम से छुपाने में पहले कामयाब हो जाती थी, लेकिन इस बार सोशल मीडिया की सक्रियता के कारण पाक मीडिया ने नुकसान की खबरों को बिना सेंसर किए जारी कर दिया था। जिस कारण सरकार और सेना की किरकिरी हुई।
नवाज शरीफ के तीसरे और चौथे सूत्र को समझने की ज्यादा जरूरत है। तीसरे सूत्र में नवाज शरीफ ने कश्मीर को सेना मुक्त करने की बात कही है। संयुक्त राष्ट्र के जनमतसंग्रह फार्मूले में भी पहली शर्त यही थी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर से अपनी सारी फौज हटाएगा। पाकिस्तान ने यह पहली शर्त ही नामंज़ूर कर दी थी, फिर जनमत संग्रह होने का सवाल ही कहां पैदा होता था, लेकिन वह आरोप भारत पर लगाता रहा कि उसने जनमत संग्रह नही होने दिया।
अब तो कश्मीर को सेना मुक्त करने का यह फॉर्मूला भी नही माना जा सकता क्योंकि पाकिस्तान में सरकार भी फौज के नियंत्रण में रहती है। उनके हर क्षेत्र में फौज हावी है।
पाक अधिकृत कश्मीर को पूरी तरह सेना मुक्त किया ही नहीं जा सकता। जनमत संग्रह की विफलता के बाद संभवत: इसीलिए कश्मीर समस्या के हल का मुशर्रफ फॉर्मूला भी यही था। जिस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सहमति दे दी थी। अगर इस फार्मूले पर काम होता तो यह नेहरू के बाद की दूसरी बड़ी गलती होती। भारत के कूटनीतिज्ञों का मानना है कि नवाज शरीफ ने पाक सेना के कहने पर ही मुशर्रफ फार्मूले को शुगर कोटेड कर के चार सूत्रीय फार्मूले के रूप मे पेश किया है। नवाज शरीफ फार्मूले का चौथा सूत्र है सियाचिन ग्लेशियर से फौज को हटाना। सियाचिन ग्लेशियर 198 0 से पूर्णतया भारत के नियंत्रण में है, ग्लेशियर की 76 किलोमीटर की पूरी रेंज पर भारत की फौज तैनात है, इसलिए वहां से फौज हटाने का सवाल ही पैदा नही होता।
भारत का स्पष्ट स्टैंड है कि जब तक 110 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा तय नहीं होती, भारत वहां से फौज नही हटाएगा। अमेरिका-पाक वार्ता के कुछ और पहलू भी भारत के लिए चिंता का विषय हैं। जैसे अमेरिका ने पाक की ओर से कब्जा की गई जम्मू-कश्मीर की भूमि गिलगित बाल्टिस्तान में हाइड्रो प्रोजेक्ट को आर्थिक मदद देना मंजूर कर लिया है। भारत ने अभी हाल में ही संयुक्त राष्ट्र में इसे अपनी जमीन करार देते हुये पाकिस्तान के कब्जे को अनाधिकृत करार दिया है। पाक-चीन आर्थिक कारिडोर के इसी विवादास्पद भूमि से गुजरने के बावजूद चीन ने भी इस हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान को आर्थिक मदद नहीं दी थी। अमेरिका की पाकिस्तान के मामले मे दो कदम पीछे, एक कदम आगे की रणनीति भारत को उलझन में डालने वाली है।
पाक अधिकृत कश्मीर के मूरी क्षेत्र में हुई अफगानिस्तान-तालिबान वार्ता को हम पाक के तालिबान से संबन्धों का सबूत मानते हैं, लेकिन बाराक ओबामा ने इस पर पाक की पीठ थपथपा दी है। जिस तरह पाक को कुछ मुद्दों पर अमेरिका का समर्थन मिला है उन पर हमे चिंता करनी चाहिए कि कहीं अमेरिका नवाज़ शरीफ के चार सूत्रीय फार्मूले को आगे नहीं बढ़ा दे? अमेरिका ने भारत-पाक वार्ता को तो द्विपक्षीय माना है, लेकिन द्विपक्षीय वार्ता शुरू करवाने में भूमिका निभाने की दिलचस्पी को भी भारत उचित नहीं मानता। नवाज शरीफ का यह चार सूत्रीय फार्मूला कश्मीर समस्या का राजनीतिक हल निकालने का फार्मूला भी नहीं है। यह परवेज़ मुशर्रफ फार्मूले का ही शूगर कोटेड रूप है। उस फार्मूले को मोदी सरकार खारिज कर चुकी है ।
हालांकि भारत की पूर्ववर्ती सरकार परवेज़ मुशर्रफ के करीब-करीब इस फार्मूले पर आगे बढ़ रही थी। तत्कालीन विदेश सचिव ने हाल में खुलासा किया है कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने मनमोहन सिंह के समक्ष मुशर्रफ फार्मूले पर अपना विरोध जताया था और उन्हें सतर्क भी किया था। लेकिन मनमोहन सिंह इस फार्मूले पर कश्मीर समस्या का हल निकालना चाहते थे, जो फार्मूला नहीं, अलबत्ता परवेज़ मुशर्रफ की कश्मीर पर नई साजिश थी।परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता से हटने के बाद कहा था कि वह कश्मीर समस्या का हल निकालने के करीब पंहुच गए थे।
पिछले दिनों खुलासा हुआ कि मनमोहन सिंह ने इस फार्मूले की अहस्ताक्षरित प्रति 27 मई 2014 को नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौपी थी। यह भी पता चला है कि उस समय के विदेश सचिव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात कर परवेज़ मुशर्रफ की कश्मीर साजिश के निहितार्थ समझा दिये थे। जिस पर मौजूदा सरकार ने इस फार्मूले को पूरी तरह नकार दिया है। इसलिए नवाज शरीफ ने जब संयुक्त राष्ट्र में परवेज मुशर्रफ के फार्मूले को शुगर कोटेड कर के पेश किया तो सुषमा स्वराज ने उसे तुरंत खारिज कर दिया। अलबत्ता उन्होंने भुला दिए गए पाक अधिकृत कश्मीर का मुद्दा उसी शिद्दत से उठाया, जिस शिद्दत से नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में जनमत संग्रह प्रस्ताव को उठाया था।
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