राजनीतिक विरोध की गिरावट / अजय सेतिया

Publsihed: 04.Oct.2016, 20:12

यूएन ने तो पाकिस्तान के एलओसी पर हुई गोलीबारी के दावे का खंडन किया था, एलओसी के तीन किलोमीटर भीतर सर्जिकल स्ट्राईक का खंडन नहीं किया था. यूएन एलओसी पर निगरानी रखता है, न कि एलओसी के भीतर.

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से घबराए विपक्ष ने सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठाने शुरु कर दिए हैं.दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की "अनार्की " सोच के कारण उन का सेना पर सवाल उठाना तो समझ में आता था. लेकिन कांग्रेस. जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल ने भी सर्जिकल स्ट्राईक के बाद मोदी की लोकप्रिय में बढोतरी से घबरा कर भारतीय सेना के दावे पर सवाल उठाना शुरु कर दिया है. राजनीतिक हित-अहित को देखते हुए भारतीय सेना की विश्वसनीय्ता पर सवाल उठाना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है.भारत में यह पहली बार हो रहा है. शुरु में पी. चिदम्बरम की ओर से सिर्फ इतना कहा गया था कि सर्जिकल स्ट्राईक यूपीए के समय भी हुए थे, लेकिन यूपीए ने न तो उस का प्रचार किया और न ही राजनीतिक लाभ उठाया. कूटनीतिको का भी कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से सर्जिकल स्ट्राईक का राजनीतिक लाभ उठाया जाना सेना के पराक्रम का दुरुपयोग है. लेकिन विपक्षी दलो की ओर से इस मुद्दे को उठाए जाने की बजाए सेना के पराक्रम पर ही सवाल उठा दिए गए, जिस पर देश में फिर से गुस्से की लहर पैदा हो गई है.

सब से पहले पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठाया था, क्योंकि भारतीय सेना की ओर से घोषणा के बाद नवाज शरीफ सरकार भारी दबाव में थी और तख्ता पलटने तक की आशंकाए शुरु हो गई थी. इस लिए पाकिस्तान की पहले दिन से यही लाईन थी कि कोई सर्जिकल स्ट्राईक हुआ ही नहीं . लेकिन वहाँ का राजनीतिक घटनाक्रम पाक सरकार के दावे की पोल खोल रहा है. अगर कोई सर्जिकल स्ट्राईक हुआ ही नहीं तो नवाज शरीफ ने तुरंत केबिनेट मीटिंग क्यो बुलाई. सेना प्रमुख राहिल शरीफ के साथ उसी दिन बैठक क्यो हुई. एक सप्ताह में तीन केबिनेट मीटिंगे हो चुकी हैं, इतनी ही बार सेना और राष्ट्रीय सलाहाकार नसीर खान जंजुआ के साथ मीटिंग हो चुकी है. विदेशी मीडिया को बुला कर पीओके में क्यो घुमाया. यन्हा तक की पाकिस्तान नेशनल ऐसेम्बली की बैठक भी बुला ली गई. क्या ये सब सर्जिकल स्ट्राईक न होने के संकेत हैं. लेकिन अपने आप को राजनीतिक परिपक्व कहने वाले भारतीय राजनीतिक नेताओ ने भारतीय सेना की घोषणा पर सवाल खडे कर दिए. 

अरविंद केजरीवाल की ओर से आप्रेशन का सबूत मांगे जाने को पाकिस्तानी मीडिया ने हाथो हाथ लिया और मंगलवार को पाकिस्तान के सभी अखबारो में केजरीवाल के बयान की लीड छपी. जब कि भारतीय सेना के डीजीएमओ ने घोषणा की थी कि आप्रेशन एलओसी से तीन किलोमीटर भीतर किया गया. पाकिस्तान ने  सर्जिकल स्ट्राईक का खंडन करते हुए कहा था कि एलओसी पर गोलीबारी हुई,जिसमें पाकिस्तान के दो जवान मारे गए. दूसरी तरफ यूएन ने कहा कि 28 सितम्बर की रात एलओसी पर गोलीबारी हुई ही नहीं. पाकिस्तान ने इस बयान का लाभ उठाने के लिए कहा कि यूएन ने भी  सर्जिकल स्ट्राईक होने का खंडन किया है.अब पाकिस्तान के बाद भारत के विपक्षी नेता भी यूएन के इस बयान को आधार बना कर सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठा रहे हैं. जबकि यूएन ने तो पाकिस्तान के एलओसी पर हुई गोलीबारी के दावे का खंडन किया था, एलओसी के तीन किलोमीटर भीतर सर्जिकल स्ट्राईक का खंडन नहीं किया था. यूएन एलओसी पर निगरानी रखता है, न कि एलओसी के भीतर.

आप्रेशन से अगले दिन जैसे ही सेना ने आप्रेशन का एलान किया, सोनिया गांधी,  और राहुल गांधी ने स्वागत करते हुए सेना को बधाई दी थी. सभी राजनीतिक दलो ने सरकार का समर्थन करते हुए सेना को बधाई दी. सिर्फ वामपंथी दलो ने पाकिस्तान से बातचीत शुरु करने की वकालत की थी, हालाकि देश का मूड भांप कर वामपंथी भी चुप्पी साध गए थे, लेकिन वामपंथी किस्म के पत्रकार इस हालात से सर्वाधिक परेशान थे,क्योकि पठानकोट और उरी में सेना के शिविरो पर हुए आतंकी हमलो के बाद नरेंद्र मोदी के खिलाफ खडा हुआ वातावरण सर्जिकल स्ट्राईक के बाद उलटे मोदी के पक्ष में हो गया था. जिस पर वामपंथी टाईप पत्रकारो ने पिछले हफ्ते ही सोशल मीडिया पर सर्जिकल स्ट्राईक पर सवालात की  शुरुआत कर दी थी. जनसत्ता के सम्पादक रहे ओम थानवी कोई छिपावा नहीं करते कि वह घोर नरेंद्र मोदी विरोधी हैं. सब से पहले उन्होने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा कि उन्हे एक नेता ने बताया था कि यूपीए शाषण काल में भी पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राईक हुआ था. यह लिख कर उन्होने तो अपनी मोदी विरोधी खुन्नस निकाल ली थी. इस के दो दिन बाद तक कांग्रेस चुप रही,लेकिन मोदी विरोधी पत्रकार कांग्रेस को उकसाने के लिए सक्रिय हो गए. कांग्रेस को वामपंथी टाईप इन पत्रकारो की साजिश की जब तक समझ आती तब तक काफी नुकसान हो चुका था. कांग्रेस ने बहुत बाद में अपने ही नेताओ की ओर से सेना पर उठाए गए सवालो से किनारा किया.

पी.चिदम्बरम ने सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठाते हुए कहा कि यूपीए के समय भी तीन बार सर्जिकल स्ट्राईक हुए थे, लेकिन सरकार ने इस का एलान नहीं किया और कांग्रेस ने कभी उस का राजनीतिक फायदा नहीं उठाया. यह एक राजनीतिक बयान था, य्हान तक ठीक था, क्योंकि सेना के पराक्रम का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. लेकिन दबी जुबान से उन्होने सर्जिकल स्ट्राईक पर भी सवाल उठा दिया तो कांग्रेस के कई नेताओ के होंसले बुलंद हुए. दिग्विजय सिंह ने भी मौके का फायदा उठाते हुए स्ट्राईक का सबूत मांगा. इस के बाद तो कांग्रेस नेताओ ने सर्जिकल स्ट्राईक की विश्वस्नीयता पर सवाल खडा करना शुरु कर दिया .सम्भवत: कांग्रेस हाईकमान में सर्जिकल स्ट्राईक पर उठाए गए सवालो को गम्भीरता से नहीं लिया गया. लेकिन जब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रशाद ने सोनिया गांधी से पूछा कि क्या चिदम्बरम की लाईन ही कांग्रेस की लाईन है तो कांग्रेस में खलबली मची, जैसे ही कांग्रेस के पूर्व सांसद और प्रवक्ता संजय निरूपम ने सर्जिकल स्ट्राईक पर सवाल उठाते हुए सबूत मांगा तो कांग्रेस के प्रवक्ता  रणदीप सुरजेवाला ने आधिकारिक बयान जारी कर के कहा कि कांग्रेस संजय निरूपम के बयान से खुद को अलग करती है. इस के बाद  शीला दीक्षित के बेटे, कांग्रेस के पूर्व सांसद और प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिख कर पूछा कि जब सारा देश सरकार की चुप्पी पर खफा था,क्या उन की फौज ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राईक किया था. यानि संदीप दीक्षित ने पी. चिदम्बरम पर कोई भरोसा नहीं किया है. जनता के गुस्से को देखते हुए जनता दल (यू ) के अजय आलोक ने भी बिना मौका गंवाए सेना पर सवाल उठाने के कुछ घंटे बाद ही माफी मांग ली. राजद के तेवर भी ठंडे पडने शुरु हो चुके हैं , अब सिर्फ केजरीवाल बचे हैं, जो अपनी राजनीतिक विश्वसनियता पूरी तरह खोते जा रहे हैं. 

 

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