इंडिया गेट से अजय सेतिया
नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में जमकर विदेश यात्राएं की थी तो विपक्ष ने उन की खिल्ली उडाई थी | लेकिन अब उन्हें समझ आ गया होगा कि उन्हीं यात्राओं से बने सम्बन्धों के कारण कश्मीर से 370 हटाए जाने के खिलाफ कोई भी देश पाकिस्तान के साथ नहीं खड़ा , यहाँ तक कि कोई मुस्लिम देश भी नहीं | मोदी सरकार ने दुबारा सत्ता में आने पर कश्मीर में 370 हटाने की तैयारी चुनाव नतीजों से पहले ही शुरू कर दी थी | हालांकि सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री बनाया जाना था , लेकिन समांतर व्यवस्था के लिए एस. जयशंकर को तैयार किया हुआ था , जो विदेशी मोर्चा सम्भालते और गृह मंत्री के तौर पर अमित शाह की तैयारी थी ही | राजनाथ सिंह को दुबारा गृह मंत्री बनाने की कोई योजना ही नहीं थी , यह बात उन्हें खुद को भी पता थी | सुषमा स्वराज ने दुबारा विदेशमंत्री बनने से इनकार कर दिया था , इस लिए पहले से तैयार मोदी की समांतर योजना के तहत जयशंकर केबिनेट मंत्री बनाए गए |
मोदी को आशंका थी कि भारत में तो विपक्ष हल्ला करेगा ही , अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे को भी सम्भालना पड़ेगा | इसलिए एस. जयशंकर ने विदेश मंत्री का पद सम्भालते ही 370 हटाने पर होने वाली अन्तरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया को सम्भालने की तैयारी शुरू कर दी थी | उन्होंने रूस, चीन . अमेरिका के अलावा पोलेंड जैसे छोटे देशों तक से बातचीत कर ली थी , जो फिलहाल रोटेशन के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है | भारत को पता था कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आवाज उठाएगा | इसलिए पाकिस्तान ने सोमवार को जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अलख जगाई तो पोलेंड से बयान आया कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर का मसला आपसी बातचीत में सुलझाना चाहिए |
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य रूस ने शनिवार को 370 हटाए जाने को भारत का अंदरुनी मामला और भारतीय संविधान के तहत उस का अधिकार बता कर अपना स्टेंड स्पष्ट कर दिया था | चीन के विरोध में खड़े होने का खतरा था , इस लिए उन्होंने अपनी चीन यात्रा पहले से ही निर्धारित कर ली थी | पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार संसद का सत्र दो दिन और 9 अगस्त शुक्रवार तक बढाया जाना था, 370 गुरूवार और शुक्रवार को ही हटाई जानी थी | 4 अगस्त को नया इंडिया के अपने कालम में अपन ने 370 हटाए जाने की सरकारी योजना का खुलासा करते हुए इस रणनीति पर लिखा था | उसी रणनीति के तहत ही एस.जयशंकर ने 10 अगस्त का चीन दौरा तय किया हुआ था |
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार विदेशमंत्री एस. जयशंकर रविवार को बीजिंग पंहुचे | सोमवार को चीन के विदेशमंत्री वांग वी से हुई बातचीत में उन्होंने चीन को आश्वस्त किया कि भारत के इस आंतरिक-संवैधानिक निर्णय से भारत –चीन वास्तविक नियन्त्रण रेखा या भारत-पाक नियन्त्रण रेखा पर कोई असर नहीं होगा | यह आश्वासन देना इस लिए जरूरी था क्योंकि 370 हटाए जाने के बाद भारत में पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से को लेने की मांग उठनी शुरू हो चुकी है , इस सम्बन्ध में सोशल मीडिया पर तीनों देशों के नियन्त्रण वाले कश्मीर को दिखाया जा रहा है ,जिसे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी उछाला जा रहा है |
भारत ने चीन के सामने वही स्टेंड रखा है , जो रूस ने सार्वजनिक तौर पर लिया है कि यह भारत का अंदरुनी संवैधानिक मामला है | भारत ने चीन को यह समझाने की कोशिश भी की है कि महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर का विलय किसी शर्त पर नहीं किया था , बल्कि महाराजा ने जब पाकिस्तान से हुए हमले पर सैन्य मदद माँगी थी , तो भारत ने विलय की शर्त रखी थी | भारत का संविधान बनाते समय कश्मीर को कुछ अतिरिक्त अधिकार भारत ने अपनी मर्जी से दिए थे , जो अस्थाई थे | संविधान में इन्हें अस्थाई लिखा गया था , जिसे कभी न कभी हटाया ही जाना था |
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