जनरल परवेज मुशर्रफ की वर्दी आखिर उतर गई। इमरजेंसी लगाकर भी वर्दी नहीं बचा पाए। देखा अमेरिका का करिश्मा। सो नरेंद्र मोदी अबके चुनाव में मियां मुशर्रफ का मुद्दा शायद ही उठाएं। मोदी की बात चली। तो बताते जाएं। लालू की करनी कांग्रेस के सामने आ गई। लालू ने जिद करके बनर्जी आयोग बनवाया। जिसने कहा- 'गोधरा में आग बाहर से नहीं। डिब्बे के अंदर से लगी थी।' अब कांग्रेस को इस सवाल का जवाब देना होगा। बीजेपी के पहले इश्तिहार ने ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
जरा भाषा देखिए- 'नमक गोधरा के घावों पर, बनर्जी से रिपोर्ट बनवाई, कहा- आग भीतर से आई, केस कमजोर-बचे सब दोषी। साजिश का पर्दाफाश-जीतेगा गुजरात।' अब भले ही सेक्युलरवादी इसे सांप्रदायिकता कहें। पर बनर्जी आयोग की इसी रपट को लालू ने बिहार में दो बार इस्तेमाल किया। अबकी बारी मोदी की। पर बात मोदी की नहीं। बात हो रही थी मुशर्रफ की। जिनने वर्दी उतार जनरल कियानी को कमान सौंप दी। पाकिस्तान में बच्चों को घुट्टी में पिलाया जाता है- 'औरंगजेब महान शासक था।' सो हर पाकिस्तानी शासक के भीतर एक औरंगजेब। जनरल कियानी अमेरिका के उतने ही करीब। जितने परवेज मुशर्रफ। भुट्टो ने जिया उल हक को सेनाध्यक्ष बनाया। जिया ने भुट्टो का तख्ता पलटा। नवाज शरीफ ने मुशर्रफ को सेनाध्यक्ष बनाया। मुशर्रफ ने नवाज का तख्ता पलटा। अब मुशर्रफ ने कियानी को सेनाध्यक्ष बनाया। नतीजा समय ही बताएगा। पर जब उधर वर्दी उतर रही थी। तो अपने यहां लोकसभा में बुश-मनमोहन एटमी करार निर्वस्त्र हो रहा था। पहले अपन मनमोहन का एक बयान याद कराएं। जो उनने करार के दो दिन बाद 20 जुलाई 2005 को अमेरिका में दिया। सवाल था- 'क्या भारत की संसद को यह करार कबूल होगा?' उनने कहा- 'मुझे पूरी उम्मीदं राष्ट्रीय आम सहमति बनेगी।' बहस की शुरुआत करते हुए आडवाणी ने पूछा- 'क्या राष्ट्रीय आम सहमति बन चुकी?' लोकसभा में सरकार पूरी तरह अल्पमत में दिखी। लेफ्ट भले ही संसद में करार पर गिरियाए। भले ही संसद के बाहर। पर सब घड़ियाली आंसू। लेफ्ट करार के खिलाफ होता। तो नियम-184 में बहस कराता। बहस के बाद वोटिंग होती। तो मनमोहन सरकार के बुधवार को ही परखचे उड़ जाते। पर जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। लेफ्टियों-यूपीए की छह मीटिंगों में क्या खिचड़ी पकी। किसी को पता नहीं। बस नतीजा सबको पता। इसी वजह से नियम-184 में बहस नहीं हुई। पर फिर भी एक बात तो साफ। संसद में सहमति नहीं। एनडीए की बात आडवाणी ने जाहिर की। लेफ्ट की रूपचंद पाल ने। आडवाणी ने कहा- 'मौजूदा समझौता देश के हित में नहीं। करार के बाद एटमी विस्फोट नहीं कर सकते। एनडीए-बीजेपी को अमेरिका से कोई विरोध नहीं। पर समझौता बराबरी के स्तर पर हो। जेपीसी से ड्राफ्ट की चीरफाड़ हो। अमेरिका के साथ नए सिरे से बातचीत हो।' लेफ्ट जेपीसी पर सहमत नहीं। अमेरिका से नए सिरे से बातचीत पर सहमत नहीं। करार के पक्ष में नहीं। पर सरकार को आईएईए से बात की इजाजत दे दी। लेफ्ट की उलझन लेफ्ट ही जाने। पर जिस सरकार को जनादेश नहीं। वह देश पर चालीस साल का समझौता लादने पर अमादा। यों सरकार की पैरवी में ज्योतिरादित्य का भाषण बढ़िया हुआ। अंदाज-ए-बयां अच्छा था। पर राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर सवालों पर कोई जवाब नहीं। मनमोहन सिंह ने बहस मे तब दखल दिया। जब आडवाणी बोल रहे थे। घिसा पिटा वही पुराना जवाब- 'वनटूथ्री में एटमी विस्फोट पर कोई पाबंदी नहीं।' पर कोई अनाड़ी भी जानते हैं- करार में एक शर्त राष्ट्रीय कानूनों की। तो हाईड एक्ट की साफ शर्त- 'एटमी विस्फोट हुआ। तो करार खत्म।' अपन ने तो चार अगस्त को ही यही बात लिखी थी। जब ड्राफ्ट जारी हुआ।
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