15 साल से लटके राफेल आएंगे,पर 3 साल बाद

Publsihed: 22.Sep.2016, 15:43

मोदी सरकार ने दशको से रूके पडे रक्षा सौदो को जल्द से जल्द निपटा कर भारत की मारक क्षमता को बढाने के तीव्र प्रयास शुरु कर दिए हैं. इसी के अंतर्गत 15 साल से अटका रफेल विमानो का सौदा तय हो गया है. इंडियन एयरफोर्स को मजबूत करने के लिए   भारत फ्रांस से 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमान खरीदेगा। 23 सितंबर यानी शुक्रवार को फ्रांस के रक्षा मंत्री ज्यां वेस ली ड्रियान डील पर दस्तखत करने के लिए भारत आ रहे हैं।भारत-फ्रांस के बीच हुए समझौते के मुताबिक कीमतों में 10 फीसदी की बढ़ोतरी शामिल थी। सरकार का दावा किया है कि वह सौदेबाजी में राफेल विमान के दामों को करीब 4,500 करोड़ रुपये कम करवाने में सफल रही है। फ्रांस 50 फीसदी ऑफसेट प्रावधान पर भी राजी हो गया है। इसके तहत फ्रांस सौदे का 50 फीसदी भारत में फिर से सैन्य उपकरणों में निवेश करेगा। इससे भारत में हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा।

इसलिए जरूरी हैं नए फाइटर प्लेन

चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्कों से संभावित खतरे से निपटने के लिए भारत को 42-44 फाइटर स्क्वाड्रन की जरूरत है। लेकिन, मौजूदा समय में भारत के पास महज 32 स्क्वाड्रन हैं। एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 जेट विमान होते हैं। मिग 21 फाइटर विमान के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई है, जिसके चलते यह संख्या और कम हो जाएगी। पुराने होने की वजह से मिग 21 और मिग 27 के 11 स्क्वाड्रन रिटायर हो रहे हैं।

पहले बीस तेजस जेट मिलेंगे

सुखोई 30 एमकेआई और जगुआर विमान के बेड़े की सेवाएं बेहद खराब हैं। सुखोई टी-50 और सुखोई PAK FA जैसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए भारत और रूस के बीच डील की अभी तक शुरुआत नहीं हुई है। स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों में काफी देर हो रही है। पहले 20 तेजस जेट साल 2018 तक एयरफोर्स को मिलेंगे। इसके बाद इनके 100 उन्नत संस्करण 2018 से 2026 तक उपलब्ध हो सकेंगे। जबकि नए राफेल विमान 2019 से इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होंगे।

राफेल की खूबियां:

यह विमान 4.5 जेनरेशन के ट्विन इंजन से लैस है।

परमाणु हथियार ढोने समेत तमाम तरह के मिशन को अंजाम देने में सक्षम है।

अफगानिस्तान, लीबिया और माली में ये विमान सफलतापूर्वक आजमाएं जा चुके हैं।

फास्ट डिलिवरी: पहला राफेल 36 महीने में, बाकी अगले 30 महीने में।

पाकिस्तान के एफ-16 विमानों के मुकाबले ज्यादा उन्नत विमान है।

यह विमान खतरनाक मिसाइल और बमों से लैस है।

राफेल डील के माइनस प्वाइंट्स:

इन विमानों की खेप आने से लॉजिस्ट‍िक या रखरखाव की दिक्कत बढ़ जाएगी। भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही मिग-21, मिग-23, मिग-29, जगुआर, मिराज-2000, सुखोई 30 एमकेआई और तेजस जैसे छह अलग-अलग तरह के लड़ाकू विमान हैं।

राफेल विमानों की कीमत बहुत ज्यादा है। एक विमान की कीमत 1640 करोड़ रुपये आंकी जा रही है।

ऑपरेशनल प्वाइंट ऑफ व्यू से महज 36 विमानों का बेड़ा बहुत छोटा है। मूल एमएमआरसीए यानी मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट के तहत 126 जेट विमान आने थे।

राफेल डील के तहत ‘मेक इन इंडिया’ या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसी कोई बात नहीं है।

ऐसे अंजाम तक पहुंची डील

सितंबर 2000: भारतीय वायुसेना ने 126 एमएमआरसीए की मांग की।

अगस्त 2007: यूपीए सरकार ने फ्रांस से 126 विमानों को खरीदने का सौदा तैयार किया। इसमें 36 विमान सीधे दसाल्ट-एवियशन कंपनी से खरीदे जाने थे. बाकी 90 भारत में तैयार होने थे।

अप्रैल 2011: ट्रायल के बाद अमेरिकी एफए-18, एफ-16, स्वीडन की ग्रिपन और रूस के मिग-35 रिजेक्ट कर दिए गए।

जनवरी 2012: कमर्शियल इवैलुएशन में राफेल ने यूरोफाइटर टाइफून को पछाड़ा।

2012 से 2015 के बीच विमान की लागत को लेकर मोलभाव होता रहा।

अप्रैल 2015: पीएम मोदी ने पुराने सौदे को रद्द कर सीधे फ्रांस सरकार से नई डील की। मोदी और ओलांद की बैठक के दौरान भारत सरकार ने ऐलान किया कि वो फ्रांस से सीधे 36 फाइटर जेट्स खरीदेगा।

 

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