येदुरप्पा सरकार गिराकर देवगौड़ा दिल्ली पहुंच गए। बीजेपी की सरकार नहीं बनने दी। अब यह कहकर मंगलवार को संसद में सेक्युलरिज्म का झंडा उठाएंगे। पर इसे कोई भाव नहीं देगा। सीपीएम ने तो बयान जारी कर कह भी दिया- 'एसेंबली भंग करना ही एक इलाज।' पर एसेंबली भंग करने की मांग करने वाली कांग्रेस के तेवर बदले हुए दिखे। अभिषेक मनु सिंघवी बोले- 'हालात का जायजा लेकर फैसला करेंगे।'
कर्नाटक के प्रभारी पृथ्वीराज का स्टेंड वही- 'एमएलए देवगौड़ा को छोड़कर आएं। तो सरकार बनेगी।' पर प्रवीन डावर ने दूसरा इशारा किया- 'बिना शर्त समर्थन दें, तो कांग्रेस सरकार बनाने को तैयार।' राजनीतिक गलियारों में अफवाह थी - 'देवगौड़ा की सोनिया से सीधी बात हुई। तभी देवगौड़ा ने येदुरप्पा के खिलाफ वोट का व्हिप जारी किया।' पर अपन को कांग्रेस के भरोसेमंदों ने यह अफवाह चंडूखाने की बताई। उनने बताया- 'सोनिया इस आदमी पर जरा भरोसा नहीं करती। सोनिया का तभी भरोसा टूट गया था। जब इक्कीस महीने पहले देवगौडा दिन भर भरोसा देते रहे। पर अपने बेटे कुमारस्वामी की बीजेपी से बात करवाते रहे।' देवगौड़ा ने तब धोखे से धर्म सिंह सरकार गिराई। अब बिना शर्त समर्थन दिलाकर येदुरप्पा की। अपना माथा तो तभी ठनका था। जब गवर्नर ने येदुरप्पा को हफ्ते भर में बहुमत साबित करने को कहा। यह बात कहनी थी। तो तब कहते। जब सरकार बनाने का न्यौता दिया। पर कांग्रेस-देवगौड़ा खिचड़ी बाद में पकी। सो गवर्नर ने तब कहा। देवगौड़ा ने राजनीतिक मक्कारी का सारा रिकार्ड तोड़ दिया। यों तो देवगौड़ा कभी भरोसेमंद नहीं रहे। पर जब उनने पहल कर येदुरप्पा को समर्थन की चिट्ठी पहुंचाई। तो येदुरप्पा लालच में आ गए। सिर्फ येदुरप्पा क्यों? यह गलती बीजेपी की भी। जो देवगौड़ा के बार-बार बदलने को नहीं पहचान पाए। तब जेडीएस एमएलए एम पी प्रकाश के साथ जाते न दिखते। तो देवगौड़ा बीजेपी को समर्थन की चिट्ठी न पहुंचाते। अपन को येदुरप्पा से हुई बातचीत का वह हिस्सा अब भी याद। जब कुमारस्वामी और मराजूदीन चिट्ठी लेकर येदुरप्पा के पास गए। तो येदुरप्पा ने पूछा- हम कैसे भरोसा करें, देवगौड़ा का इस चिट्ठी को समर्थन। इस पर मराजूदीन ने येदुरप्पा को कहा था- 'मैं देवगौड़ा की तरफ से आपके पास आया।' मराजूदीन क्योंकि देवगौड़ा के करीबी। सो येदुरप्पा ने भरोसा कर लिया। अपन को तो तभी शक हुआ। जब अभी रामेश्वर ठाकुर ने न्योता भी नहीं दिया था। पर देवगौड़ा ने एमओयू का ड्राफ्ट राजनाथ को भेजा। बीजेपी मेच्योरिटी दिखाती। तो एमओयू का ड्राफ्ट देखने के बाद द्क्षिण में खाता खोलने की जल्दबाजी न दिखाती। पर वाजपेयी के बीमार पड़ने। आडवाणी के बीजेपी अध्य््क्ष न रहने का नतीजा निकला। बीजेपी अब अनाड़ियों के हाथ आ गई। वैसे आडवाणी भी कम जिम्मेदार नहीं। उनने भी पीएम के पास गए डेलीगेशन की रहनुमाई की। कुमारस्वामी येदुरप्पा को भरोसा देते रहे- ' एमओयू की बात संभाल लेंगे।' पर इतवार को वह घड़ी आ गई। जब देवगौड़ा ने साफ कहा- 'पहले एमओयू साईन करो।' बेंगलुरू पहुंचे यशवंत सिन्हा दिल्ली से संदेश लेकर गए थे- 'कोई एमओयू साईन नहीं होगा।' एसेंबली में येदुरप्पा ने देवगौडा की पोल खोली। जनता में जाकर लड़ने का ऐलान किया। राजभवन जाकर इस्तीफा दे आए। अब नया सवाल? क्या कांग्रेस देवगौड़ा से हाथ मिलाएगी? बुधवार को दिल्ली आकर देवगौडा अहमद पटेल-पृथ्वीराज चह्वाण से मिले। पर कल का पता नहीं। कांग्रेस का आज का स्टेंड वही- 'देवगौड़ा भरोसे लायक नहीं। जेडीएस एमएलए एम पी प्रकाश के साथ आएं। तो सरकार बनोगी।' पर हैरानी की बात तब हुई। जब जेडीएस ने मीटिंग में सिर्फ सात एमएलए व्हिप के ख्रिलाफ बोले। पर बड़ा सवाल दूसरा। बिना समर्थन चिट्ठी का क्या हुआ। राजभवन और राष्ट्रपति भवन में समर्थन की परेड़ का क्या हुआ। झूठ बोलने वाले विधायकों को इतनी सजा तो मिलनी चाहिए। एसेंबली भंग होनी चाहिए।
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