संसद की तू-तू , मैं-मैं का एजेंडा तय हो गया। घमासान का मुहूर्त सोमवार का। लोकसभा विजय खंडेलवाल को श्रध्दांजलि देकर उठ गई। राज्यसभा जना कृष्णामूर्ति को। अपने अंदेशे के मुताबिक ही हुआ। छठ को नजरअंदाज कर जिद में पंद्रह से सत्र शुरू किया। पर लालूवादियों ने दबाव से छठ की छुट्टी करवा ली। अब संसद सोमवार को ही बैठेगी। लोकसभा की बीएसी में रघुवंश बाबू हावी हो गए। बीएसी तो राज्यसभा की भी हुई। पर उसमें किसी ने छठ का मुद्दा नहीं उठाया। अलबत्ता नंदीग्राम ही छाया रहा।
जब लोकसभा की बीएसी का फैसला हुआ। तो सुरेश पचौरी ने घर जा चुके चेयरमैन से गुहार लगाई। हामिद अंसारी को सुषमा-आहलूवालिया से फुनियाना पड़ा। तब जाकर छुट्टी का फैसला हुआ। लेफ्ट को नंदीग्राम के साथ छठ की छुट्टी पर भी एतराज। चारों लेफ्ट पार्टियों ने नंदीग्राम पर एका कर लिया। यानी सीपीआई, आरएसपी, एफबी की हायतोबा फर्जीवाड़ा। अपन को हैरानी तब हुई। जब नंदीग्राम पर कपड़े फाड़ने वाले भाकपाई गुरुदास दासगुप्त बोले- 'नंदीग्राम स्टेट सबजेक्ट।' पर इस बार नंदीग्राम एनडीए का खास मुद्दा। आडवाणी के घर मीटिंग में एनडीए ने तय किया। आडवाणी का घर अब विपक्ष की धुरी। भोपाल की बीजेपी में भले ही अटल की चिट्ठी से भ्रम फैला। पर आडवाणी अब बीजेपी के सर्वोच्च नेता। अटल की हेल्थ सक्रिय राजनीति की इजाजत नहीं देती। यों आज भी एनडीए में उनके बिना पत्ता नहीं हिलता। एनडीए संसद में एटमी करार पर फच्चर न फंसाए। सो मनमोहन बुधवार रात अटल को गुहार लगाने गए। आडवाणी को पहले से खबर पहुंर्चाई। ताकि आडवाणी मौजूद रहें। पर अटल-आडवाणी ने हामी नहीं भरी। मल्होत्रा ने कहा- 'एनडीए का स्टेंड जस का तस।' पर बात नंदीग्राम की। जो सिर्फ लेफ्ट की ही मुसीबत नहीं। इस बार स्पीकर की ज्यादा बड़ी मुसीबत। चौदह मार्च को संसद में हंगामा हुआ। तो स्पीकर उठकर चले गए थे। डिप्टी स्पीकर से रूलिंग करवाई- 'नंदीग्राम स्टेट सबजेक्ट।' दासगुप्त ने अपन को वही रूलिंग याद कराई। दासगुप्त का गुस्सा हमेशा दोधारी तलवार। एक धार मनमोहन की तरफ। दूसरी आडवाणी की तरफ। मनमोहन के विदेश दौरे पर एतराज। आडवाणी पर संसद न चलने देने की आशंका। बोले- 'सत्र के दौरान पीएम का विदेश दौरा क्यों। दौरे के बाद सत्र कर लिया जाता। आडवाणी ने पिछला सत्र एटमी करार पर नहीं चलने दिया। इस बार नंदीग्राम पर नहीं चलने देंगे।' यों लेफ्ट ने देशभर का दबाव मानना शुरू कर दिया। सो माओवादी हिंसा के जरिए नंदीग्राम पर बहस का रास्ता खोल दिया। लेफ्ट के मुताबिक नंदीग्राम पर अब तक माओवादियों का कब्जा था। पर बुध्ददेव भट्टाचार्य अब देश के पहले सीएम बन चुके। जिनने कानून के राज की धज्जियां उड़ाई। अब तक सेक्युलरवादी कहते नहीं थकते थे- 'नरेंद्र मोदी ने तीन दिन तक अपने काडर को पूरी छूट दी।' पर मोदी ने इस आरोप को कभी नहीं माना। वैसे भी यह आरोप रिकार्ड से मैच नहीं करता। इसका सबूत 28 फरवरी 2002 को पहले ही दिन पुलिस गोली से दो लोगों का मरना। पर बुध्ददेव ने तो यह कहने में कोई शर्म नहीं की- 'ग्यारह महीने नंदीग्राम पर भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का कब्जा रहा। वहां पुलिस जा नहीं सकती थी। इसलिए 7 नवंबर को हमारे लोगों ने उन्हें खदेड़ दिया।' ताकि सनद रहे सो अपन बताते जाएं। सात नवंबर को लेफ्ट की मीटिंग में सीआरपीएफ नहीं भेजने का फैसला किया गया। काडर भेजकर नंदीग्राम पर कब्जा करवाया। फोर्स जाती, तो काडर बलात्कार नहीं कर पाता। चालीस लोगों को गोलियों से भून नहीं पाता। सो फोर्स नहीं जाने दी। इसलिए अपन ने नंदीग्राम को सीपीएम की बेस्ट बेक्री कहा। पर लेफ्ट ने बुधवार को भी कहा- 'ऑप्रेशन कलंक पर बहस होगी। नंदीग्राम पर नहीं।'
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