मनमोहन रूस से लौट आए। गए थे, तो माथे पर फिक्र की रेखाएं थीं। लौटे तो चेहरे पर रौनक लौट आई। बुधवार को मनमोहन सिंह के चेहरे पर जितनी रौनक दिखी। अपने पड़ोसी देश के हुक्मरान मुशर्रफ के माथे पर फिक्र की उतनी लकीरें। दिन में एक बार तो मुशर्रफ के इस्तीफे तक की अफवाह उड़ी। एक इंटरव्यू में उनने कह दिया- 'जब मेरे जाने से पाक में संतुलन और स्थायित्व हो। तो मैं पद छोड़ दूंगा।'
इससे लगा- अमेरिकी दबाव में मुशर्रफ हिम्मत हारने लगे। पर शाम होते-होते खंडन आ गया। बिल्कुल वही हालत अपने पीएम मनमोहन की। पिछले तीन महीने से कभी लगता है- सरकार अब गई कि अब गई। कभी लगता है- वक्त पूरा करेगी। अब लगता था- शीत सत्र मौजूदा लोकसभा का आखिरी होगा। पर आखिरी वक्त में लेफ्ट ने 'यू टर्न' ले लिया। यों बुधवार को सबने सत्र की कमर कसनी शुरू कर दी। वैसे तो गुरुवार को छठ का त्योहार। सो अपन को लगता था- गुरुवार से सत्र शुरू नहीं होगा। पर सरकार के पास चारा नहीं बचा। जब लेफ्ट ने छोटे सत्र पर एतराज किया। यों भी पहले दिन संसद नहीं चलनी। लोकसभा तो विजय खंडेलवाल को श्रध्दांजलि देकर उठ जाएगी। राज्यसभा जना कृष्णामूर्ति को श्रध्दांजलि देकर। दोनों मेंबर बीजेपी के। बात बीजेपी से ही शुरू करें। दिनभर मीटिंगों का दौर चलता रहा। कुछ पार्टी के अंदरूनी झंझट। तो कुछ संसद में धुआंधार तैयारियों की रणनीति। बीच में स्पीकर की लंच मीटिंग का दौर भी चला। स्पीकर की मीटिंग का मकसद हमेशा सत्र को सुचारू चलाना। हर बार सभी दलों से अपील करके थक गए। पर होता वही है- तू-तू, मैं-मैं। सो अब स्पीकर की मीटिंगें रिवायत बनकर रह गई। फिर भी स्पीकर ने इस बार मंत्रियों-सांसदों से नई उम्मीद बांधी। उनने कहा- 'सत्र के दौरान मंत्री-सांसद विदेश न जाएं।' पर सत्र के दौरान प्रधानमंत्री के दौरे की बात अपन पहले लिख चुके। सवाल उठा, तो स्पीकर बोले- 'पीएम का दौरा अलग बात।' सो पीएम के दौरे में कोई अड़चन नहीं आएगी। ऐसी उम्मीद तो अपन को पालनी ही चाहिए। पर गुरुदास दासगुप्त ने पीएम के दौरे पर एतराज किया। बोले- 'पीएम विदेश जाएंगे। तो एटमी करार पर बहस कैसे होगी।' वैसे एटमी करार शीत सत्र का मुख्य मुद्दा होता। अगर लेफ्ट ने तेवर न बदले होते। नंदीग्राम बड़ा मुद्दा बनकर न उभरा होता। अब एटमी करार पर बहस तो होगी। पर एनडीए के तेवर लेफ्ट से ज्यादा तीखे होंगे। यों झेंप मिटाने को डी. राजा ने बुधवार को पूछा- 'पीएम बताएं- रूस से एटमी रिएक्टर का सौदा क्यों नहीं हुआ?' वैसे अपन इसकी वजह कल बता चुके। आईएईए से सेफगार्ड करार के बिना सौदे की कोई कीमत नहीं। पर बात नंदीग्राम की। अब एनडीए के लिए नंदीग्राम ज्यादा बड़ा मुद्दा। अपन एक बात बताते जाएं। नंदीग्राम के मुद्दे पर इस बार स्पीकर का इम्तिहान होगा। स्पीकर ने पिछली बार नंदीग्राम नहीं उठने दिया। अबके नंदीग्राम का मुद्दा ज्यादा गंभीर। एनडीए का डेलीगेशन होकर आ चुका। सोनिया-मनमोहन नंदीग्राम जाते-जाते रह गए। अलबत्ता अब तो नंदीग्राम पर कांग्रेस के वैसे तेवर भी नहीं रहे। जैसे सोमवार को दासमुंशी ने अपनाए थे। दासमुंशी की बात चली। तो बताते जाएं। बुधवार को दासमुंशी ने भी सत्र का एजेंडा बताया। सरकारी बिल तो जो होंगे, सो होंगे। पर हंगामे वाले मुद्दे शीत सत्र में ज्यादा होंगे। अपन को तो तू-तू, मैं-मैं की ही ज्यादा आशंका।
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