भारत-पाक दोनों ही विदेशी दबाव में। दोनों पर दबाव अमेरिका का। मुशर्रफ पर दबाव बेनजीर के साथ सत्ता बांटने का। मनमोहन पर दबाव एटमी करार सिरे चढ़ाने का। अमेरिका दोनों देशों की राजनीति में दखल देने लगा। पाकिस्तान में दखल का नतीजा अपने सामने। मुशर्रफ पूरी तरह तानाशाह हो गए। आवाम में मुशर्रफ की हालत अब बिल्कुल वैसी। जैसी 1976-77 में अपने यहां इंदिरा गांधी की थी।
बेनजीर इस जमीनी हकीकत से वाकिफ। सो अमेरिकी शह के बावजूद मुशर्रफ के खिलाफ लामबंद। अलबत्ता अब तो अपन को ऐसा लगने लगा- जैसे मुशर्रफ नहीं रहे, अब बेनजीर अमेरिकी एजेंट। बुश ने मुशर्रफ को दो टूक शब्दों में कहा- 'वर्दी उतारो, इमरजेंसी हटाओ, चुनाव करवाओ।' बुधवार को बेनजीर ने भी मुशर्रफ को यही बातें कही। बेनजीर ने तो रावलपिंडी से लाहौर कूच का ऐलान भी कर दिया। कूच तेरह नवम्बर से शुरू होगा। वैसे अपन की तरह नवाज शरीफ को भी बेनजीर की नियत पर शक। सो दुबई में बैठे शरीफ बोले- 'बेनजीर पहले मुशर्रफ से गुफ्तगू बंद करे। जो भी जमहूरियत के पक्ष में हो। वह मेरे साथ मिलकर इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन करे।' मुशर्रफ की इमरजेंसी से पीएमएल(क्यू) भी दहशत में। सुजात हुसैन बोले- 'तीन हफ्तों में इमरजेंसी हट जानी चाहिए। मुशर्रफ भी वाकिफ होंगे, इमरजेंसी लंबी चली। तो नतीजे गंभीर होंगे।' सुजात ने मुशर्रफ से मुलाकात के बाद यह बात कही। सो मुशर्रफ की दहशत का अंदाज लगा लो। मुशर्रफ की दहशत बेनजीर-बुश के एक जैसे बयानों से। वैसे इमरजेंसी हो, या डंडे का राज। ज्यादा देर नहीं चलता। दूर क्या जाना। नंदीग्राम को ही लो। सत्ता के नशे में चूर लेफ्टी नंदीग्राम में हार मानने को तैयार नहीं। बुधवार को सीपीएम वर्करों ने गांव वालों पर फिर गोली चलाई। यह बात किसी ममता बनर्जी ने नहीं अलबत्ता होम सेक्रेटरी पीआर रॉय ने कही। तो सीपीएम छुरा लेकर होम सेक्रेटरी के पीछे दौड़ी। लेफ्ट फ्रंट की मीटिंग में चर्चा हुई। चर्चा के बाद बिमान बोस होम सेक्रेटरी के खिलाफ बोले। गुजरात में एक डीआईजी ने मोदी के खिलाफ बयान दिया। तो उसे लेफ्टियों ने सिर-आंखों पर बिठाया। पर असली चेहरा बंगाल में देखो। नंदीग्राम में हालात पाकिस्तान से भी बदत्तर। पाक के राजनीतिक हालात तो अमेरिका ने बिगाड़े। अब एटमी करार पर भारतीय राजनीति में भी दखल की कोशिश। मनमोहन ने मदद मांगी होगी। तभी तो बुश प्रशासन एटमी करार पर बीजेपी से मदद लेने पहुंचा। अपन को पेंशन बिल वाली तकरार याद। लेफ्ट बिल पास करवाने को तैयार नहीं था। प्रणव मुखर्जी मदद के लिए आडवाणी के पास गए। आडवाणी ने हरी झंडी दे दी। पर अगले दिन संसद के एजेंडे में बिल नहीं था। बीजेपी ने पूछताछ की। तो बताया- 'लेफ्ट ने दो टूक कह दिया था- पेंशन बिल बीजेपी की मदद से पास करवाया। तो बाकी बिल भी बीजेपी की मदद से पास करवाना।' लेफ्ट की धमकी से सरकार पीछे हट गई। अब एटमी करार पर बीजेपी सरकार के साथ खड़ी हुई। तो क्या मनमोहन सरकार बच जाएगी। तब तो मनमोहन सरकार की मौत इसी महीने तय। पर अमेरिकी दबाव के बावजूद बीजेपी नहीं मानी। बुश ने किंसिजर और मेल्फोर्ड को आडवाणी, जसवंत, राजनाथ के पास भेजा। फिर बुश के इशारे पर मनमोहन ने एमके नारायनन और काकोड़कर को तीनों के पास भेजा। करार पर बीजेपी के नरम होने की खबरें छपवाई गई। पर बुधवार को आडवाणी, जसवंत, राजनाथ ने साझा बयान से ऐसी खबरों की हवा निकाली। साफ-साफ कह दिया- 'मौजूदा करार कतई मंजूर नहीं।' यही बात सीपीएम ने सांसदों को लिखी चिट्ठी में कही। तो मतलब साफ। मनमोहन को करार और सरकार में से एक चुनना होगा। अमेरिका का पाक में वक्त पर चुनाव का दबाव। भारत में अमेरिका चुनाव लाद देगा। चुनाव साथ-साथ नहीं, तो आस-पास ही होंगे।
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