अपने रामेश्वर ठाकुर बेहद मुश्किल में। एसेंबली भंग करने का कांग्रेसी दबाव मानें। या डेमोक्रेसी का ख्याल रखें। डेमोक्रेसी के लिहाज से सोचें। तो येदुरप्पा के पास बहुमत से सोलह एमएलए ज्यादा। एसेंबली भंग हो गई होती। तो यह टंटा ही खड़ा नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही हालात के लिए फैसला दिया- 'सरकार बनाने की गुंजाइश रहे। सो पहले सस्पेंड की जाए।' इसी नजरिए से गवर्नर ने दिल्ली में कहा था- 'कोई गठबंधन सामने आए। तो सरकार बनने की गुंजाइश बरकरार।'
गवर्नर ने जब यह कहा। तो उनके पास बीजेपी-कांग्रेस-जेडीएस की चिट्ठियां थीं। जिनमें लिखा था- 'विधानसभा भंग की जाए।' यों जेडीएस के एमएलए गठबंधन को छटपटा रहे थे। पर बीजेपी 33 एमएलए नहीं जुटा पाई। कांग्रेसी प्रभारी पृथ्वीराज चव्हाण गठबंधन के खिलाफ थे। पर कर्नाटक के कांग्रेसी एमपी प्रकाश से चोंच भिड़ाने लगे। तो देवगौड़ा के कान खड़े हुए। छटपटाने वाले 45 एमएलए एमपी प्रकाश के साथ हो लिए। देवगौड़ा के पास पांच-सात ही बचे थे। तब जाकर देवगौड़ा ने येदुरप्पा को समर्थन की चिट्ठी भिजवाई। गवर्नर ने जब दिल्ली में बयान दिया। तो उनने सोचा नहीं था- ऐसा करिश्मा भी हो जाएगा। अपने यहां कहावत है ना- 'मरता क्या न करता।' तो देवगौड़ा और क्या करते? कांग्रेस तो मार ही देती। अपन यह तो नहीं कहते कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन होता। तो गवर्नर न्यौता देने में इतनी देर लगाते। पर सवाल तो खड़ा होगा ही। क्या इतनी देर लगाते? अगर ऐसा होता। तो येदुरप्पा अपवित्र गठबंधन कहकर एसेंबली भंग करने की मांग करते। जैसी मंगलवार को वीरप्पा माईली ने की। बोले- 'गवर्नर मजबूर नहीं। बोम्मई और बूटा सिंह के फैसले कर्नाटक में लागू नहीं होते।' पर राजभवन घेराव के एलान से गवर्नर की तो वाट लग गई। चौबीस घंटे की मोहलत मंगलवार शाम खत्म हो गई। पर दिल्ली से हरी झंडी मिलती। तभी गवर्नर कुछ कर पाते। भले ही सोनिया चीन से लौट आई। पर दस जनपथ को समझ नहीं आ रहा- कहे तो क्या कहे। होम सेक्रेट्री मधुकर गुप्ता बोले- 'अभी कुछ नहीं कह सकते।' अपन बताते जाएं। केबिनेट ने एसेंबली सस्पेंड की। राष्ट्रपति ने मोहर लगाई। अब गवर्नर नई सिफारिश भेजें। उस पर केबिनेट बहाली की मोहर लगाए। तब राष्ट्रपति बहाल करेंगी। अपन नहीं जानते। गवर्नर को कानून राय क्या मिली। पर घेराव के एलान से राजभवन में हलचल जरूर हुई। उनने येदुरप्पा-सदानंद गौड़ा को बुलाकर गुहार लगाई- 'आप सीएम बनने वाले हैं। राजभवन पर धरने जैसी बात क्यों? मुझे दो दिन की मोहलत दो।' अपन नहीं जानते- गवर्नर ने दो दिन क्यों मांगे। क्या बहाली की रिपोर्ट भेजेंगे। क्या गुरुवार को केबिनेट फैसला लेगी। पर यह तो तब पता चलेगा। जब बुधवार को बीजेपी के नेता पीएम से मिलेंगे। अपन बताते जाएं। गवर्नर को सौंपे हल्फिया बयानों का बंडल दिल्ली पहुंच चुका। बंडल को सामने रख आडवाणी के घर पर गुफ्तगू हुई। गुफ्तगू में आडवाणी के साथ राजनाथ, वेंकैया, सुषमा, रामलाल, जेटली सिर जोड़कर बैठे। जेटली कानूनी राय देने के लिए। सुषमा कर्नाटक जाने की तैयारी कर ही रही थी। येदुरप्पा का फोन आ गया। बोले- 'बुधवार को घेराव नहीं। गांधी की मूर्ति के सामने दो घंटे का धरना। धरने के बाद मैं दिल्ली आ रहा हूं।' पर सुषमा के लिए कर्नाटक कर्मभूमि। याद न हो, तो याद दिला दें। बेल्लारी कर्नाटक में ही। जहां सुषमा-सोनिया का चुनावी दंगल हुआ। सो सुषमा आज बेंगलूर का मोर्चा संभालेंगी ही। भले ही गवर्नर से सीधा टकराव फिलहाल टल गया।
आपकी प्रतिक्रिया