अपन सीएनबीसी टीवी-18 देख रहे थे। मुद्दा था- राजनीति में असभ्य भाषा। बात कांग्रेस महासचिव बीके हरिप्रसाद की। जिनने गुजरात में जाकर कहा- 'नरेंद्र मोदी को तो अपने बाप का भी पता नहीं।' इसे अपन मां की गाली कहेंगे। कोई राजनेता पब्लिक मीटिंग में मां की गाली देगा। वह भी उस गुजरात की भूमि पर जाकर। जहां गांधी और पटेल हुए। भारत में तो कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता। पर यह सब हुआ। तो चैनल पर बहस में करन थापर ने जयंती नटराजन से पूछा। वह झेंपती हुई बोली- 'मैं होती, तो ऐसा नहीं कहती।' करन ने पलटकर कहा- 'आपने भी तो आडवाणी को लौह पुरुष की जगह लो (घटिया)पुरुष कहा।' जयंती शर्मसार नहीं हुई।
मुस्कुराते हुए बोली- 'मैंने जब यह कहा। तो कुछ अखबारों में लीड बनी।' करन ने माथा पीट लिया। बोले- 'तो आप सुर्खियों के लिए अभद्रता पर उतर आते हैं?' करन ने बगल में बैठे प्रकाश जावड़ेकर से कहा- 'आप लोग मनमोहन सिंह के खिलाफ इतना क्यों बोल रहे हैं। पीएम के खिलाफ कोई ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करता। जैसा होने लगा।' जावड़ेकर ने माना- 'प्रधानमंत्री जिम्मेदार हो। तो ऐसा सचमुच नहीं होता। पर जो पीएम कहे- बीजेपी मुझे मरवाने के लिए यज्ञ करवा रही है। उस पीएम की क्या साख।' पीएम के यज्ञ खुलासे का जयंती के पास कोई जवाब नहीं था। पर सवाल दूसरा। राजनेताओं की जुबान पर दुश्मनी की भाषा क्यों? सवाल सिर्फ बीके हरिप्रसाद या जयंती नटराजन का नहीं। गठबंधन की राजनीति में नेताओं का ब्लड प्रेशर कंट्रोल में नहीं। जब करन का इंटरव्यू चल रहा था। तभी 'आजतक' पर तहलका का नया एपीसोड 'कलंक' चला। चुनाव जब-जब नजदीक आए। गुजरात के दंगे चुनावी हथियार बने। चुनाव लोकसभा के हों। बिहार के हों, या अब गुजरात के। तहलका ने कोई न कोई तहलका जरूर मचाया। पर बरसा हमेशा बीजेपी-एनडीए पर। बात बंगारू लक्ष्मण की हो या जया जेटली की। बात बीजेपी के सांसदों की हो या फिर अब नरेंद्र मोदी की। ताजा तहलका पांच साल पहले हुए गुजरात के दंगों पर। जिसके ज्यादातर मामले अदालतों में। नानावती आयोग की जांच भी जारी। जब बिहार के चुनाव थे। तो लालू ने गोधरा कांड की जांच के लिए बनर्जी आयोग बनाया। अंतरिम रिपोर्ट मुस्लिम वोटों को लुभाने को इस्तेमाल हुई। रपट में कहा गया- 'गोधरा टे्रन में आग अंदर से लगी।' पर इस रिपोर्ट से लालू को फायदे की बजाए नुकसान हुआ। अंतिम रिपोर्ट तो सुप्रीम कोर्ट ने रोक दी। पर अब 'तहलका' बना 'बनर्जी आयोग।' तहलका ने संघ परिवारियों से कहलवाया- 'मोदी ने तीन दिन कत्लेआम की छूट दी।' अपन नहीं जानते- चुनाव के समय सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिश किसकी। बीजेपी कटघरे में जरूर दिखाई दी। पर कांग्रेसियों के चेहरों की हवाईयां उड़ गई। देशभर में मोदी का मीडिया ट्रायल जरूर होगा। पर चुनाव में ध्रुवीकरण से फायदा मोदी को ही। धु्रवीकरण से घाटे में कांग्रेस ही रहेगी। सो नरेंद्र मोदी के माथे पर कोई शिकन नहीं। अपन ने पता कराया। तो जवाब मिला- 'जो होगा, देख लेंगे। अब मैंने तो कुछ नहीं किया।' मतलब साफ- धु्रवीकरण का ठीकरा अब मोदी के सिर नहीं फूटेगा। रविशंकर प्रसाद ने स्टिंग ऑप्रेशन के वक्त पर सवाल उठाया। साथ ही सवाल तहलका पर भी- 'किसी कांग्रेसी सरकार के खिलाफ कोई स्टिंग क्यों नहीं? किसी कांग्रेसी सीएम के खिलाफ कोई स्टिंग क्यों नहीं?' उनने जवाब भी दिया। बोले- 'यूपीए सरकार ने तहलका की शेयर होल्डर ग्लोबल कंपनी को अच्छा खासा फायदा पहुंचाया।' अपन ने खोज खबर ली। तो पता चला- 'गुजरात के कांग्रेसी नेताओं ने अखबारों में फोन कर गुहार लगाई- 'तहलका की रपट को ज्यादा महत्व न दो।' शुक्रवार को जयंती के चेहरे की हवाईयां उड़ी हुई थी।
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