वैसे तो बुधवार का दिन अदालतों के नाम रहा। चार बड़े मशहूर केसों में साठ जनों को उम्रकैद हुई। चारों केसों में जानी-मानी हस्तियां। यों तो हफ्ते की शुरूआत फिल्मी हस्तियों पर चाबुक से हुई। सोमवार को संजय दत्त जेल में गए। मंगल को आमिर खान के गैर जमानती वारंट निकले। बुध को सलमान खान अदालत की चौखट पर पहुंचे। संजय दत्त का मामला मुंबई के दंगों से जुड़ा। आमिर खान का राष्ट्रीय ध्वज के अपमान से। सलमान का चिंकारा शिकार मामले से। तीनों संगीन मामले। पर तीनों के हिमायतियों की कमी नहीं। कानून तोड़ने वालों की बात छोड़िए। अपने यहां तो आतंकियों के भी हमदर्द। अफजल की फांसी वाला मामला लटकना इसका सबूत।
केरल का उदाहरण भी अपन बताएंगे। यों अपराधियों को सबक सिखाने के हिसाब से देखा जाए। तो यह साल रिकार्ड बनाकर जाएगा। पप्पू यादव, आनंद मोहन-लवली आनंद को सजा हुई। यों शिबू सोरेन और अब्दुल नसार मदनी छूटे भी। लालू-राबड़ी के बाद मायावती शिकंजे से बाहर निकली। बात अदालतों की चली। तो चलते-चलते आरटीआई का एक खुलासा बताते जाएं। राजनीतिक दलों की टिकट पर चुनाव लड़ने के बाद बने जजों पर पूछा गया। तो जवाब मिला- 'जजों की तैनाती में पालीटिकल बैकग्राउंड का ख्याल रखा जाता है।' यानी राजनीति जज बनने में सहायक। अजीब-ओ-गरीब जवाब देख मामला केंद्रीय सूचना आयुक्त तक पहुंचा। तो भी जवाब यही मिला। पर बात बुधवार की। जब अदालतों ने कानून के राज का झंडा गाड़ा। पहला फैसला कोयंबटूर बम धमाकों का। बात चोदह फरवरी 1998 की। करीब-करीब दस साल होने को। आडवाणी उस दिन कोयंबटूर गए थे। शहरभर में बम धमाके हुए। अट्ठावन लोग मारे गए। आरोपियों में केरल के कट्टरवादी नेता अब्दुल नसार मदनी प्रमुख थे। मदनी के बारे में अपन बताते जाएं। पहले आरएसएस के मुकाबले एमएसएस बनाया। फिर अल उम्मा बनाकर सांप्रदायिकता फैलाई। मदनी समेत 166 पर मुकदमा चला। केरल विधानसभा चुनाव से पहले सेक्युलर दलों में एकता हुई। कांग्रेस-लेफ्ट ने मिलकर एसेंबली में रिहाई के लिए प्रस्ताव पास किया। दस साल में 1479 गवाहियां हुई। पर मदनी समेत दस लोग छूट गए। बात बुधवार के फैसले की। अल उम्मा के बाशा-अंसारी समेत 31 कट्टरपंथियों को उम्रकैद सुनाई गई। ग्यारह को एक उम्र, दस को दो उम्र, एक को तीन उम्र, एक और को चार उम्र की सजा हुई। अब्दुल ओजिर को 124 साल की उम्र कैद सुनाई गई। अपन एक बात बताते जाएं- अब उम्रकैद बीस साल की नहीं होती। अलबत्ता उम्रकैद का मतलब उम्रकैद। सो 24 अक्टूबर 2007 आतंकियों को सजा के लिए याद रहेगा। यह दिन इसलिए भी याद रहेगा। क्योंकि समाजवादी पार्टी के एमएलए अमरमणि को उम्रकैद हुई। अपन याद करा दें। नौ मई 2003 में मधुमिता की हत्या हुई। वह तब के मंत्री अमरमणि की प्रेमिका थी। अमरमणि से ही गर्भवती थी। हत्या कराने में अमरमणि तो थे ही। अमरमणि की पत्नी मधुमणि भी शामिल थी। सो मधुमणि को भी उम्रकैद हुई। अमरमणि के भाई रोहित चतुर्वेदी के साथ भाड़े के हत्यारे संतोष राय को भी उम्रकैद हुई। यह फैसला चार साल में आया। पर दिल्ली के कनॉट प्लेस वाले मामले की सजा भी दस साल बाद हुई। एसीपी राठी समेत दस को उम्रकैद सुनाई गई। यह मामला 31 मार्च 1997 का। बात सांप्रदायिकता से शुरू हुई थी। तो आखिरी मामला सांप्रदायिकता का बता दें। बाबरी ढांचा टूटने के बाद कानपुर में जो दंगे हुए। उसका भी फैसला बुधवार को सुनाया गया। एक वकील समेत पंद्रह को उम्रकैद की सजा हुई। फांसी एक को भी नहीं हुई। शायद सजा-ए-मौत पर संयुक्त राष्ट्र में चल रही बहस का असर।
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