चौथे फेज का चुनाव भी निपट गया। अब देश की सिर्फ 86 सीटें बाकी। चौथे फेज में वोटिंग बेहतर हुई। पिचहत्तर फीसदी वोटिंग से बंगाल अव्वल रहा। तो इसे ममता बनर्जी का फायदा मानिए। दूसरे नंबर पर पंजाब रहा। जहां सिर्फ चार सीटों पर वोट पड़े। अपन बंगाल और पंजाब की बात आगे करेंगे। फिलहाल हरियाणा और राजस्थान की बात। राजस्थान में तो दो सीटों पर गुर्जर-मीणा खूनी संघर्ष भी हुआ। दोनों राज्यों में सभी सीटें निपट गई। हरियाणा में कांग्रेस को नुकसान होगा। तो राजस्थान में फायदा। पर राजस्थान में सिर्फ 51 फीसदी वोटिंग। सिर्फ चार महीने पहले एसेंबली चुनाव हुए। तो 68 फीसदी हुई थी वोटिंग। जिसने कांग्रेस की सरकार बनवा दी। शायद वसुंधरा को इसका अंदाज था।
तभी उनने कहा- 'हमारी सरकार थी। तो हमने बीजेपी को 21 सीटें दिलवाई। गहलोत कांग्रेस को इतनी दिलाकर दिखाएं।' वैसे वोटिंग घटने को अपन कोई पैमाना नहीं मानते। आखिर 1991, 1996, 2004 में भी जब अप्रेल-मई में चुनाव हुए। तो वोटिंग 43 से 50 फीसदी रही। अबके तो 51 फीसदी। वसुंधरा ने जब बीजेपी को 21 सीटें दिलाई। तब भी वोटिंग 49.97 फीसदी थी। अपन ने राजस्थान का इतना जिक्र क्यों किया। चुनाव तो हरियाणा, पंजाब, बंगाल, बिहार, यूपी में भी हुआ। जम्मू कश्मीर में भी हुआ। राजस्थान का खास जिक्र करने की वजह साफ। सोनिया-मनमोहन का सारा दारोमदार राजस्थान पर। पिछली बार आंध्र, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात ने यूपीए सरकार बनवाई। तो इस बार कांग्रेस की उम्मीद तमिलनाडु, गुजरात से नहीं। इन दोनों राज्यों की जगह केरल और राजस्थान लेंगे। तमिलनाडु में तो सूपड़ा साफ होने का डर। आंध्र, गुजरात में नुकसान होगा। पिछली बार केरल में सूपड़ा साफ था। इस बार आधी से ज्यादा सीटें आएंगी। कांग्रेस को राजस्थान में ज्यादा नहीं। तो चार से चौदह होने की उम्मीद। पर अपन बात करते जाएं हरियाणा और दिल्ली की। जहां कांग्रेस की सीटें घटेंगी जरूर। कितनी, यह तो सोलह को पता चलेगा। पर अपन को बात करनी थी पंजाब और बंगाल की। पंजाब-बंगाल में अभी पांचवें दौर का चुनाव भी बाकी। सो राहुल के बयान से हुए डैमेज का कंट्रोल शुरू हुआ। राहुल ने दांव चला था- लेफ्ट और नीतिश पर। नीतिश अब पंजाब के लुधियाना में एनडीए रैली में दिखेंगे। ताकि शीला दीक्षित-राहुल गांधी की फैलाई अफवाह रोकें। ममता की समझाइश गुरुवार को रंग लाई। बुधवार को तो उनने अल्टीमेटम थमा दिया था- 'मुझ में और लेफ्ट में से एक चुन लो।' केशवराव की समझाइश का असर हुआ। जो ममता ने पल्टी मारकर कहा- 'राहुल के बयान से तृणमूल-कांग्रेस गठजोड़ में दरार नहीं।' पर अपन को लगता है यह टेम्परेरी सीज फायर। अपन ने कल तीन बातें लिखी थी- 'जयललिता उसे समर्थन देगी। जो करुणानिधि को बर्खास्त करे। ममता की शर्त होगी बुध्ददेव को बर्खास्त करने की। मायावती मांगेगी सीबीआई से निजात।' अपन ने यह भी बताया था- 'बुधवार को कांग्रेस ने मायावती को सेक्युलरिज्म का सर्टिफिकेट थमाया।' तो गुरुवार को उसका असर भी दिखा। अपन अब तक मुलायम को खांटी बीजेपी विरोधी मानते थे। पर अब मुलायम सिंह ने भी कह दिया- 'केंद्र में समर्थन उसे दूंगा। जो मायावती को बर्खास्त करे।' यह है कांग्रेस के मायावती को सेक्युलरिज्म का सर्टिफिकेट देने का नतीजा। यानी एनडीए के लिए भी दरवाजा खुला। अपन याद दिला दें- मुलायम पहली बार सीएम भाजपाईयों की मदद से ही बने थे। भले ही तब भाजपाई जनता पार्टी में थे। मुलायम को 2003 में सीएम भी वाजपेयी ने बनवाया था। मुलायम राज में स्पीकर भाजपाई ही था।
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