अपन ने कल संगमा-आडवाणी की बात बताई ही थी। फोन के बाद शुक्रवार को मुलाकात भी हुई। संगमा खुद आडवाणी के घर गए। यों आडवाणी-संगमा की पहले भी खूब छनती थी। अपन संगमा-आडवाणी गुफ्तगू का राज भी बताएंगे। पर पहले आडवाणी के घेराव की बात। साहिब सिंह वर्मा के समर्थक औरंगजेब रोड जा पहुंचे। वर्मा के बेटे प्रवेश को टिकट न देना बीजेपी को महंगा पड़ेगा। दिल्ली में जाटों की तादाद कोई थोड़ी-बहुत नहीं। यों दिल्ली में बिहारियों की तादाद भी बीस फीसदी। पर बिहारी को टिकट नहीं दिया। उत्तराखंडियों का भी दिल्ली में दबदबा। उत्तराखंडी भी नजरअंदाज हुए। यूपी वाले चेतन चौहान को जरूर मिला। पर किसी दिल्ली के पूरविए को देते। तो फायदा होता। बात यूपी की चली। तो बताते जाएं- वरुण गांधी यूपी में बीजेपी को अच्छा चेहरा मिला। भले वरुण चुनाव आयोग में फंस गए। पर वरुण का टिकट कटने के आसार नहीं।
प्रकाश जावड़ेकर बोले- 'जब तक सीडी की जांच न हो। तब तक वरुण दोषी नहीं।' यों बीजेपी ने सीडी के भाषण से पल्ला झाड़ा। पर इसे आप वरुण से पल्ला झाड़ना मत समझिए। सीडी से पल्ला तो वरुण खुद भी झाड़ चुके। पर बात हो रही थी पीए संगमा की। जो यूएफ के वक्त आलिशान स्पीकर रहे। पर संगमा कौन सी राह पकड़ेंगे। अपन अभी नहीं बता सकते। संगमा ने शुक्रवार को भी पत्ते नहीं खोले। वह आडवाणी के अलावा प्रकाश करात से भी मिले। यानी एनडीए या तीसरे मोर्चे में से एक चुनेंगे। पर कांग्रेस के साथ नहीं रहेंगे। शरद पवार भले कांग्रेस के साथ रहें। यों भी नार्थ-ईस्ट में एनसीपी का मतलब संगमा। संगमा की बदौलत ही एनसीपी राष्ट्रीय पार्टी। फिलहाल संगमा का मकसद मेघालय पर मोर्चेबंदी। मेघालय में राष्ट्रपति राज गवर्नर के बेजा इस्तेमाल का ताजा उदाहरण। मेघालय का स्पीकर दलबदलुओं को वोट डालने से रोके। तो संविधान के खिलाफ। गोवा का कांग्रेसी स्पीकर रोके। तो संविधान के मुताबिक। जैसे मेघालय में राष्ट्रपति राज लगा। वैसे तो गोवा में भी लगना चाहिए था। मेघालय के साथ-साथ अपन उड़ीसा की बात भी करते जाएं। मेघालय में तो वोट पड़े। पर उड़ीसा में वोट भी नहीं पड़े। राष्ट्रपति राज तो अब तक उड़ीसा में भी लग जाता। पर कांग्रेस नवीन पटनायक से मोल-भाव कर रही थी। यह मोल-भाव नहीं चला। तो अब वहां के गवर्नर की भी रपट मंगवा ली। पर बात संगमा की। तो संगमा राष्ट्रपति से भी मिलेंगे। पर होना जाना कुछ नहीं। राष्ट्रपति तो घुग्गी मार चुकी। सुप्रीम कोर्ट ही कुछ करे, तो करे। कांग्रेस ने अरुणाचल से सबक नहीं सीखा। अरुणाचल में भी कांग्रेस ने चुनावों से पहले राष्ट्रपति राज लगवाया था। चुनावों में मुंह की खानी पड़ी। हू-ब-हू मेघालय जैसा ही हुआ था अरुणाचल में। कंग्रेस जब-जब केंद्र में आई। गवर्नरों का बेजा इस्तेमाल किया। संगमा की विदेशी मुद्दे पर सोनिया से तकरार न होती। तो कंग्रेस में ही होते। शरद पवार ने तो बाद में घुटने टेक दिए। पर संगमा अपनी धुन के पक्के। सो आडवाणी ने संगमा को संविधान समीक्षा कमेटी का मेंबर बनवाया। संगमा चाहते थे- विदेशी मूल पर संविधान कुछ कहे। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष, चीफ जस्टिस जैसे पदों पर रोक लगे। पर वाजपेयी नरम पड़ गए। संविधान समीक्षा कमेटी भी लुंज-पुंज निकली। तो संगमा ने इस्तीफा दे दिया था। पर बात आडवाणी-संगमा गुफ्तगू की। तो आडवाणी ने संगमा को पूरे समर्थन का भरोसा तो दिया। पर अपनी ईमानदार सलाह दे डाली। कहा- 'आप मेघालय छोड़कर दिल्ली आओ। छोड़ो एसेंबली, लोकसभा का चुनाव लड़ो।' याद करा दें- संगमा इस्तीफा देकर बेटी आगाथा को लोकसभा भेज चुके। खुद एसेंबली के मेंबर। यों तो संगमा धुन के पक्के। पर आडवाणी की सलाह मान ली। तो अगली सरकार बनवाने में अहम होंगे संगमा। अपन ने पूछा- 'क्या आपका भी आडवाणी को समर्थन।' वह बोले- 'आडवाणी पीएम पद पर अच्छे उम्मीदवार।' सुन रहे हैं- शरद पवार।
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