अपने चंद्रबाबू नायडू पहले 'थर्ड फ्रंट' के कनवीनर थे। अब नए 'थर्ड फ्रंट' का अभी तो कोई कनवीनर नहीं। लगता है- चुनाव से पहले बनेगा भी नहीं। अभी तो 'थर्ड फ्रंट' का कोई नाम भी नहीं। लोग थर्ड फ्रंट को 'थर्ड क्लास' बताने लगे। तो अब 'थर्ड फ्रंट' कहलाने पर शर्मसार। देवगौड़ा बता रहे थे- 'प्रकाश करात ने मुझे बुलाकर कहा- लोगों को थर्ड फ्रंट नाम पर एतराज।' करात ने कहा ही होगा। तभी तो घोषणा पत्र की प्रेस कांफ्रेंस में कह रहे थे- 'मीडिया कह रहा है थर्ड फ्रंट। हम तो नहीं कह रहे।' सीपीएम ने घोषणा पत्र का खाता सबसे पहले खोला। उम्मीद के मुताबिक ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों पर बरसे। सो सोमवार को कांग्रेस-बीजेपी भी लेफ्ट पर जमकर बरसे। पर बात हो रही थी 'थर्ड फ्रंट' की। ना नाम पर सहमति। ना पीएम पद के उम्मीदवार पर। मायावती ने अपने सिर पर खुद रखी टोपी अपने आप उतार ली।
जरूर सतीश शर्मा ने सलाह दी होगी। जयललिता का बिफरना तो सबको समझ आ ही रहा होगा। ब्राह्मण सतीश शर्मा ने ब्राह्मण जयललिता की नब्ज पहचानी। अपने वाजपेयी ने मायावती को अच्छा सलाहकार थमाया। बीएसपी-बीजेपी सरकार बनी। तो सतीश शर्मा बीजेपी कोटे के अटार्नी जनरल थे। ताज कॉरीडोर में मायावती के तारणहार बने। तो मायावती के हो गए। बीजेपी हाथ मलती रह गई। यूपी के ब्राह्मण वोट भी ले उड़े। मायावती ने तो टोपी उतार ली। पर जयललिता फिर भी डिनर में नहीं आई। जयललिता आती। तो अपन को अचंभा ही होता। यों जयललिता ने सोमवार को कहा- 'संवादहीनता हो गई थी।' संवादहीनता वही पीएम पद की ही तो थी। यों जयललिता को मायावती की महत्वाकांक्षा पर एतराज नहीं। पर इसका मतलब जयललिता का समर्थन नहीं। आप देख लेना। हालात बन भी गए, तो जयललिता ही अड़चन बनेंगी। सो फिलहाल तो युध्द विराम ही मानिए। अपने वेंकैया नायडू ने सही कहा- 'थर्ड फ्रंट में असहमति पर सहमति हो गई।' थर्ड फं्रटियों में नेता, एजेंडे की असहमति पर सहमति हुई। वेंकैया तो चुटकी लेते दिखे। पर अभिषेक मनु सिंघवी अंदर से हिले हुए दिखे। बोले- 'चंद्रबाबू, मायावती, जयललिता, नवीन, सब बीजेपी के साथ थे। फिर बीजेपी के साथ चले जाएंगे।' कांग्रेस का डर सोलह आने वाजिब। पर बात बीजेपी से ताजा-ताजा अलग हुए नवीन पटनायक की। सोमवार को अपनी सुषमा स्वराज भुवनेश्वर में थीं। जहां उनने चेतावनी दी- 'भरी थाली में लात मारने का नतीजा भुगतेंगे नवीन।' वह कांग्रेस पर कम बरसी। नवीन पर ज्यादा। पर आखिर में कहा- 'विधानसभा में पहला दुश्मन बीजू दल। लोकसभा में पहली दुश्मन कांग्रेस।' यों कांग्रेस को चुनाव बाद बीजेपी-बीजेडी के फिर से गठबंधन का डर। जब लेफ्ट का बंगाल-केरल में बंटाधार होगा। तो थर्ड फ्रंटिए मेढकों की तरह फुदक-फुदक कर भागेंगे। भागेंगे भी कहां? सिर्फ एनडीए ही तो दिखेगा। सो लेफ्ट को कमजोर कर अबके थर्ड फ्रंट पर निगाह कांग्रेस की भी। अपन को उड़ीसा का एक्सपर्ट बता रहा था-भले ही बड़ा समझौता करना पड़े। जैसे तमिलनाडु करुणानिधि के लिए छोड़ा। यूपी मुलायम के लिए छोड़ा। बंगाल ममता के लिए छोड़ा। बिहार लालू यादव के लिए छोड़ा। झारखंड शिबू सोरेन के लिए छोड़ा। वैसे ही जरूरत पड़ी तो कांग्रेस अबके उड़ीसा नवीन के लिए छोड़ देगी। तभी तो दुबारा बहुमत साबित करने का इशारा नहीं हो रहा दिल्ली से। देख लेना, नतीजों के बाद थर्ड फं्रट दलों का बाजार लगेगा। जमकर होगा तोल-मोल। यों भी थर्ड फ्रंट की थर्ड क्लास सरकारें रहने का रिकार्ड। अब तक चार थर्ड फ्रंट सरकारें बनीं। कोई सात महीने, तो कोई सत्रह महीने। अस्थिरता का डर लेफ्ट को भी सताने लगा। सो करात बोले- 'इस बार पहले जैसी डांवाडोल थर्ड फ्रंट सरकार नहीं होगी। पोलित ब्यूरो में फैसला करेंगे।' इशारा समझिए। इस बार सीपीएम खुद थर्ड फ्रंट सरकार में शामिल होगी। पर राधा तो तब नाचेगी, जब नौ मन तेल होगा।
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