बेनजीर भुट्टो की हत्या न होती। तो जरदारी को कोई पूछता भी नहीं। बेनजीर जब पीएम थीं। तो मिस्टर टेन परसैंट के तौर पर बदनाम थे जरदारी। बीवी मरी, तो बीवी की मौत को भुनाकर राष्ट्रपति बन बैठे। जरदारी और मुशर्रफ में कोई खास फर्क नहीं। दोनों पाकिस्तान के नेचुरल लीडर नहीं। दुश्मनी का आलम देखिए। मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को जेल में डाला था। तो शरीफ ने जरदारी को। सब एक दूसरे से खुन्नस निकाल रहे। पर बात हो रही थी नेचुरल लीडरशिप की। मनमोहन कहां यूपीए-कांग्रेस के नेचुरल लीडर। लगता है विदेशी मूल के मुद्दे पर बाहर निकले शरद पवार को अब पछतावा। बाहर न निकलते। तो शायद मनमोहन की जगह नंबर लग जाता। दिल में दबी बात जुबां पर आ ही गई।
एनडीटीवी पर इंटरव्यू में बोले- 'आंध्र, गुजरात, कर्नाटक की तरह एक बार महाराष्ट्रियन को भी मौका मिले।' पर पवार ने अपनी जड़ों में खुद मट्ठा डाला। भैरों बाबा का साथ दे देते। तो महाराष्ट्रियन राष्ट्रपति नहीं बनती। तब महाराष्ट्रियन पीएम का नारा चल निकलता। पवार की उलझन समझना आसान नहीं। कांग्रेस-एनसीपी सीटों के बंटवारे में आईपीएल का फच्चर फंस गया। होम मिनिस्ट्री ने मैचों की नई तारीखें भी खारिज कर दी। अब शिवसेना-बीजेपी गठबंधन भी हो चुका। सो पवार ब्लैकमेल भी नहीं कर पाएंगे। शिवसेना-बीजेपी में वही पुराना गठबंधन हुआ। छब्बीस और बाईस का। बस तीन सीटों की अदला-बदली हो गई। वही बिहार में भी हुआ। बीजेपी-जेडीयू का झगड़ा भी निपट गया। बीजेपी पंद्रह पर लड़ेगी। जेडीयू पच्चीस पर। नीतिश किशनगढ़ और मधुबनी मांग रहे थे। जेतली किशनगढ़ पर सरैंडर कर गए। बदले में अब यूपी की एक सीट कटेगी जेडीयू की। पिछली बार तीन लड़ी थी। अब के दो लड़ेगी। पर बात अरुण जेतली की। शुक्रवार को जेतली चर्चा में रहे। सुनते हैं सुधांशु मित्तल की तैनाती पर खफा। राजनाथ सिंह ने हाल ही में सुधांशु को पूर्वोत्तर का सह-प्रभारी बना दिया। सुधांशु एक जमाने में प्रमोद महाजन के खास हुआ करते थे। सो वसुंधरा राजे के भी खास हुए। पर आखिरी दिनों में बाजी पलट गई। महाजन के दरवाजे उतने खुले नहीं रहे थे। तो वसुंधरा ने भी दरवाजे बंद कर दिए थे। सुधांशु की तैनाती पर संगठन में भी हैरानी हुई। संगठन मंत्री रामलाल भी सन्न रह गए। आडवाणी जब अध्यक्ष थे। तो उनने सुधींद्र कुलकर्णी को पार्टी का सेक्रेटरी बना दिया था। बवाल हुआ, तो हटाना पड़ा। अब रही बात सुधांशु की। अपन को जेतली की नाराजगी का नहीं पता। पर दिन भर चर्चा रही उनके सीईसी मीटिंग बॉयकाट की। पर वह तो दिन भर यूपी-बिहार में लगे थे। आडवाणी के घर पर मीटिगों के कई दौर चले। जेतली सब मीटिंगों में थे। अफवाहें थीं- जिस मीटिंग में राजनाथ होंगे, वहां जेतली नहीं जाएंगे। पर रात को आडवाणी के घर दिल्ली की बैठक हुई। तो दोनों अगल-बगल बैठे थे। अफवाहबाजों का भी जवाब नहीं। वैसे झगड़े किस दल में नहीं। किस गठबंधन में नहीं। यों कई बार अल्टीमेटम से भी निकलता है हल। जैसे ममता के अल्टीमेटम से सोनिया झुकी। बात अल्टीमेटम की चली। तो आजकल मायावती के अल्टीमेटम की खासी चर्चा। मायावती ने अपने दूत सतीश मिश्र से तुमकर की रैली में कहलवा दिया- 'मायावती को पीएम इन वेटिंग मानो। तो बीएसपी थर्ड फ्रंट में, नहीं तो......।' पहला झटका नवीन पटनायक ने दिया। दूसरा मायावती ने। अभी तो चेन्नई वाली अम्मा का रूप देखना। शुक्रवार को भुवनेश्वर में जाकर एबी वर्धन बोले- 'थर्ड फ्रंट पीएम इन वेटिंग तय नहीं करेगा।' अपन को लेफ्टियों की भी समझ नहीं आती। सीपीएम के महासचिव करात तो कई महीने पहले ही मायावती को पीएम बना रहे थे। सीपीआई के महासचिव एबी वर्धन पीएम इन वेटिंग बनाने को तैयार नहीं। करात-वर्धन की बात चली। तो इन दोनों की पार्टियों का झगड़ा भी अब सामने आ चुका है। केरल में दोनों वामपंथी दलों में ठन गई। चले थे थर्ड फ्रंट का कुनबा जोड़ने। अपना ही कुनबा टूटने लगा।
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