संसद का सत्रावसान हो गया। राज्यसभा तो अजर-अमर। पर लोकसभा का टर्म खत्म होने को। वैसे लोकसभा भंग नहीं हुई। सरकार चाहे तो तीन महीनों में जब चाहे सेशन बुला ले। भले लोकसभा चुनावों का ऐलान भी हो जाए। पर स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने ऐसे 'द एंड' कहा। जैसे लोकसभा का आखिरी दिन हो। दादा ने संसदीय जीवन से संन्यास का ऐलान भी कर दिया। दादा की टर्म विवादों से घिरी रही। दादा ने अपना हिसाब-किताब बताया। तो उन कड़वी-मीठी यादों को ताजा भी किया। एक गम था, जो सीने में छुपा रखा था। कह ही दिया- 'महिला आरक्षण बिल पास नहीं हुआ।' सरकार पर फब्ती कसी- 'बिल लोकसभा के बजाए राज्यसभा में पेश किया। ताकि लोकसभा का टर्म खत्म होने के बाद भी बिल जिंदा रहे।' लोकसभा में पेश होता। तो पास कराने की मांग उठती। कांग्रेस की रणनीति रही- 'न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी।' पर बात दादा की। उनने सदन से विदाई कुछ ऐसे ली। जैसे इस्तीफा दे रहे हों।
कहा- 'आज मेरा इस पद पर आखिरी दिन।' अपने कान खड़े हुए। स्पीकर का टर्म तो अगली लोकसभा का प्रो-टर्म स्पीकर बनने तक। पर दादा ने रात तक इस्तीफा नहीं दिया। दादा इस्तीफा दें, तो चरणजीतसिंह अटवाल की लॉटरी खुलेगी। पर बात चौदहवीं लोकसभा की। जो हंगामों में ही निकल गई। चार सौ से ज्यादा घंटे यानि चौबीस फीसदी वक्त बरबाद हुआ। आखिरी सेशन के आखिरी दिन पीएम की कमी खली। आना तो चाहते थे। पर न सेहत ने इजाजत दी, न डॉक्टरों ने। पीएम होते, तो कुछ बोलते। बात आडवाणी की। आडवाणी ने अपनी शादी की सालगिरह क्या मनाई। विजुअल मीडिया रूठ गया। बुधवार को शादी की 44वीं सालगिरह थी। सत्रावसान की पूर्वसंध्या थी। सो डिनर और राजा-राधा रेड्डी के कुच्चीपुडी डांस का इरादा बना। अपन ने राजा रेड्डी का कुच्चीपुडी पहले टीवी पर ही देखा था। पहली बार सामने बैठकर देखने का मौका मिला। पर बात शादी की सालगिरह की। आडवाणी ने एनडीए सांसदों को बुलाया। तो जिनकी पत्नियां दिल्ली में थी, उन्हें भी न्यौता गया। रिश्तेदार और फेमिली फ्रेंड भी बुलाए। अब पांच-चार फेमिली फ्रेंड पत्रकार भी थे। तो विजुअल मीडिया वाले उन्हें देख रूठ गए। डिनर में घुसने की जिद पकड़ ली। आडवाणी विरोधियों को तो इससे बढ़िया मौका क्या मिलता। सो गुरुवार को भी आडवाणी के खिलाफ एक्टिव रहे। सत्रावसान पर आडवाणी की प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई। तो विजुअल मीडिया नदारद। आडवाणी की विनम्रता अपन जानते ही थे। सो उनने बुधवार की घटना पर माफी मांगी। तो अखबारों के खबरनवीसों ने कहा- 'हम इस बायकाट के खिलाफ। यह आपका विशेषाधिकार है, आप अपने घर पर जिसे चाहे बुलाएं। जिसे चाहे, नहीं।' आडवाणी की विनम्रता फिर भी बरकरार रही। उनने कहा- 'इसे दुरुस्त किया जाएगा।' अब आडवाणी का इरादा आजकल में मीडिया डिनर का। खैर बात चौदहवीं लोकसभा पर आडवाणी की राय की। तो आडवाणी ने कहा- 'इन पांच सालों में संसद ही नहीं। पीएम पद का भी अवमूल्यन हुआ।' आखिर इससे पहले पांच साल तक कोई राज्यसभा मेंबर पीएम नहीं रहा। देवगौड़ा- गुजराल लोकसभा मेंबर नहीं थे। इंदिरा पहली बार पीएम बनीं। तो राज्यसभा मेंबर थी। पर कुछ महीनों में ही लोकसभा मेंबर बन गई थी। आडवाणी बोले- 'पीएम लोकसभा का मेंबर हो। ऐसा संविधान में संशोधन होना चाहिए।' एनडीए की सरकार बनी तो क्या संशोधन होगा? सवाल पर आडवाणी बिदके। बोले- 'आम सहमति की कोशिश करेंगे।' अपन जानते हैं- आम सहमति के चक्कर में तो महिला आरक्षण नहीं हुआ। इसी चक्कर में तो राजनीति का अपराधीकरण लाइलाज। अपन ने ये दोनों सवाल दागे। तो आडवाणी बोले- 'मनमोहन सरकार ने अपराधीकरण का रिकार्ड बनाया। उनने दागी मंत्री तक बना डाले। हमारा इरादा अपराधियों को टिकट नहीं देने का। ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को टिकट की कोशिश करेंगे।' बात बाल ठाकरे-शरद पवार के बनते रिश्तों की भी उठी। तो उनने मनोहर जोशी का कहा दोहराया- 'पवार एनडीए में आएं, तो स्वागत'।
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