पच्चीस साल बाद प्रणव दा को मौका भी मिला। तो तब जब बीस दिन बाकी पड़े थे। प्रणव दा इसे बजट कहें, या अंतरिम बजट। दोनों ही गैर कानूनी। बीस दिन की सरकार को 365 दिन का बजट बनाने का क्या हक। आने वाली सरकार पर अपनी योजनाएं लादने का हक नहीं। आप पूछेंगे- अपन ने बीस दिन बाकी कैसे बताए। तो बता दें- अपना अंदाज दस मार्च को चुनाव के ऐलान का। सो अनुदान मांगों की जगह बजट पेश करना गैरकानूनी भी। अनैतिक भी। अंतरिम बजट चुनावी फायदे के लिए कहा गया। पर अपन याद दिला दें- 1991, 2004 में चुनाव से पहले ऐसा मौका आया। तो अंतरिम बजट नहीं, अलबत्ता अनुदान मांगें ही पेश हुई। यह भी याद दिला दें- दोनों ही बार सरकार चुनाव में चारों खाने चित हुई। पर बात प्रणव दा की। जिनने यूपीए के प्रोग्रामों पर धन तो खूब लुटाया। पर मिडिल क्लास को टैक्स में कटौती की बारी आई। तो नैतिकता की दुहाई देते बोले- 'अंतरिम बजट में टैक्सों पर बात नहीं कर सकते।' रोजगार गारंटी, भारत निर्माण, नेहरू मिशन को 110000 करोड़ लुटाते समय नैतिकता नहीं दिखी। ये तीनों ही प्रोग्राम कांग्रेसी वर्करों की गरीबी दूर करने का साधन।
उनने इसे केंद्र सरकार की योजनाएं बताने का धर्म भी नहीं निभाया। यूपीए की योजनाएं बताई। बार-बार यूपीए का ढिंढोरा पीटा। 'हाथ' का प्रचार भी प्रणव दा को अनैतिक नहीं लगा। प्रणव दा जरा बता दें- जब लालू ने ट्रेन किराया दो फीसदी घटाया। तो क्या वह अनैतिक था। फिर सात-सात दागी मंत्रियों वाली सरकार नैतिकता की दुहाई दे। तो यह सौ चूहे खाने के बाद हज जाने जैसी बात हुई। प्रणव दा अपन को मजबूर फाइनेंस मिनिस्टर दिखे। जिनने न्यूज चैनल के एंकर की तरह मानिटर देख बजट पढ़ दिया। प्रणव दा का बनाया बजट तो कतई नहीं दिखा। अलबत्ता सोनिया के भाषण लेखकों का लिखा बजट ही लगा। गुरुदास दासगुप्त ने सही ही कहा- 'प्रणव दा ने बजट में 'हाथ' की बात कर संसद का दुरुपयोग किया।' प्रणव दा ने चिदंबरम का पहला बजट भाषण याद दिलाकर कहा- 'यूपीए सरकार के सातों लक्ष्य पूरे हुए।' वैसे इन सातों लक्ष्यों की चीरफाड़ जसवंत-यशवंत-शौरी ने की। तो बताया- सातों मोर्चों पर कैसे फेल हुई सरकार। पहले बात ग्रोथ की। वाजपेयी सरकार नौ फीसदी तक ले गई थी। यूपीए सरकार नौ फीसदी से शुरू होकर सात फीसदी पर आ गई। एजुकेशन पर छह फीसदी खर्च का वादा था। इनकम टेक्स पर दो फीसदी सेस भी लगाया। पर साढ़े तीन फीसदी खर्च पर अटकी रही सरकार। यही हाल हेल्थ सेक्टर का भी रहा। जहां तक बात एजुकेशन की। तो बताते जाएं- सर्व शिक्षा अभियान यूपीए का नहीं। एनडीए का प्रोग्राम था। यही हाल रोजगार का रहा। आखिरी एक साल में ही बारह लाख बेरोजगार हो गए। जहां तक बात ग्रामीण रोजगार की। तो कैग रिपोर्ट ने बताया है- 'सौ दिनों के रोजगार की सफलता सिर्फ चौदह फीसदी रही। भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा।' बजट पर टिप्पणीं को कहा। तो आडवाणी ने याद दिलाया- 'आम आदमी के नाम पर सरकार में आई थी कांग्रेस। कांग्रेस राज में अमीर और अमीर हुए। आम आदमी का तो बाजा ही बज गया। यूपीए राज के विदाई बजट के साथ ही जनता को उसे बाय-बाय भी कह देना चाहिए।' एनडीए राज में किसानों की आत्महत्याओं पर भी बहुत रोई थी कांग्रेस। पर इस साल के सैंतालीस दिनों में ही 112 किसान आत्महत्या कर चुके। नेशनल हाइवे, स्वर्णिम चतुर्भुज का जो बंटाधार यूपीए ने किया। वह तो पूछो ही मत। मनमोहन सरकार बनते ही इनफ्रास्टक्चर पर तो ग्रहण लग गया था। जाते-जाते अपन बजट पर जेटली की प्रतिक्रिया बताते जाएं। उनने कहा- 'सरकार का हिसाब-किताब सत्यम् की बैंलेंसशीट जैसा।'
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