चुनावी तैयारियां शुरू हो गई। कांग्रेस आतंकवाद पर हमलावर होने लगी। बीजेपी से आतंकवाद का मुद्दा छीनने की फिराक में। महंगाई पर तो काबू पा ही लेगी चुनाव तक। आडवाणी का आतंकवाद मुद्दा भले दिल्ली-राजस्थान में नहीं चला। पर कांग्रेस को भी असलियत की भनक। दोनों राज्यों में बीजेपी हिट विकिट हुई। आतंकवाद का मुद्दा नहीं चला। ऐसी बात नहीं थी। सो असलियत को समझ सोनिया एक्टिव हुई। अब आतंकवाद पर मनमोहन-प्रणव कुछ भी बोलें। लोग गंभीरता से नहीं लेते। अलबत्ता खिल्ली उड़ाने तक की नौबत। सो सोनिया खुद मैदान में उतर चुकी। खुद को इंदिरा का अवतार बताकर पाक को ललकारा। पर सोनिया के भाषण की स्याही सूखी नहीं थी। सोमवार को पाकिस्तान ने कह दिया- 'भारत के दिए सबूत नाकाफी।' यह होना ही था, इसी के आसार थे। अपन को लगता है चुनाव से पहले जंग का माहौल बनेगा। सो सोनिया की ललकार से कांग्रेसी बाग-ओ-बाग। सोमवार को अभिषेक मनु सिंघवी दो कदम आगे निकले। अब तक जो बातें बीजेपी कहती थी। वही सिंघवी ने कही।
कहा- 'आतंकवाद की फैक्ट्री है पाक।' उनने अमेरिकी रपट का हवाला दिया। पर दिल्ली की मुठभेड़ में जो बात सामने आई। अहमदाबाद-जयपुर की आतंकी वारदातों से जो बात सामने आई। उससे मुंह चुराती दिखी कांग्रेस। बात घरेलू आतंकवादियों की। इंडियन मुजाहिद्दीन अब ख्याली पुलाव नहीं। यूपीए राज में और कुछ हुआ, न हुआ। जगह-जगह इंडियन मुजाहिद्दीन जरूर बन गया। अपने नरेंद्र भाई मोदी ने नागपुर में यह बात कही। तो कांग्रेस जल-भुन गई। नरेंद्र भाई ने गलत तो नहीं कहा। क्या पाकिस्तानी आतंकवादियों के भारत में लिंक नहीं। क्या स्लीपिंग सेल के सबूत नहीं मिले। क्या मुंबई वारदात में स्लीपिंग सेल नहीं थे। अब मोदी की बात को पाक के अखबारों ने लीड बनाया। तो मोदी का क्या कसूर। पर अपने अभिषेक भाई बोले- 'भारतीय आतंकियों का जिक्र करके मोदी भारत के हित को कमजोर न करें। पाकिस्तानियों की भाषा न बोले मोदी।' वाह भई वाह, क्या कहने। दूसरों की कमीज में दाग ढूंढने वाले अपनी कमीज देखें ही नहीं। पर चुनावी तैयारियों में मुद्दा सिर्फ आतंकवाद नहीं। बीजेपी ने राजस्थान-दिल्ली से सबक लिया। मुद्दा एक नहीं, अनेक होंगे। अलबत्ता नकारात्मक-सकारात्मक की जुगलबंदी होगी। सिर्फ आतंकवाद, अमरनाथ, रामसेतु, राममंदिर नहीं। अलबत्ता सुरक्षा, सुशासन और विकास की बात भी। यही था बीजेपी काऊंसिल का मंत्र। बात बीजेपी काऊंसिल की चली। तो बता दें- एक उपलब्धि तो रही। इस बार कोई आपसी झमेला नहीं हुआ। मीडिया ने मोदी-राजनाथ का फर्जी झमेला बनाया जरूर, पर बना नहीं। राजनाथ-आडवाणी का जोर सत्ता पर कम। विचारधारा पर ज्यादा रहा। आडवाणी का मंत्र था- 'राष्ट्र सर्वोपरि।' राजनाथ का मंत्र था- 'बहुमत मिले, तो मंदिर बनेगा।' पर चुनाव सिर्फ नारों और मुद्दों से नहीं लड़ा जाता। ऐसा होता, तो बीजेपी 2004 में हारती ही नहीं। सो मैनेजमेंट का फार्मूला भी 2004 का सबक सीखकर। अबके कमान किसी एक के हाथ नहीं होगी। किसी को प्रमोद महाजन का दर्जा नहीं। बीजेपी के नए पांच पांडव अपना-अपना मोर्चा संभालेंगे। पांडवों में अब मोदी भी शामिल। यह बात अपन ने पहले ही लिख दी थी। मैनेजमेंट के पांच पांडव होंगे- वेंकैया, अनंत, अरुण, मोदी और सुषमा। वेंकैया संभालेंगे दक्षिण, कर्नाटक छोड़कर। अनंत के हाथ में होगी कर्नाटक-मध्यप्रदेश की बागडोर। अरुण संभालेंगे दिल्ली-यूपी-बिहार, पंजाब और जम्मू कश्मीर। मोदी के हाथ में होंगे गुजरात-महाराष्ट्र और गोवा। यह अपन ने लिखा ही था। सुषमा संभालेंगी छत्तीसगढ़-उत्तराखंड। वेंकैया-अनंत विकास का मोर्चा संभालेंगे। अरुण-मोदी आतंकवाद का। सुषमा महंगाई और सुशासन का। पर अपन को आखिर में आतंकवाद ही मुद्दा बनने की उम्मीद। सोनिया की ललकार और पाक के ताजा तेवरों से यही संकेत।
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