मनमोहन सिंह एम्स से लौटे। तो वाजपेयी जा पहुंचे। पर बात दोनों के बीमार होने की नहीं। बात दोनों की राजनीतिक सोच में फर्क की। यों तो सूचना के अधिकार का कानून मनमोहन राज में बना। पर अब इस कानून को ठेंगा दिखाने की कोशिश भी उन्हीं की। मंत्रियों की संपत्ति दिन दुगनी, रात चौगुनी होने लगी। तो लोग सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने लगे। इससे मंत्रियों की नींद उड़े, तो समझ आता। पर मनमोहन सिंह की भी नींद उड़ गई। सो पीएमओ की राय है- 'मंत्रियों की संपत्ति आरटीआई से नहीं पूछ सकते।' दूसरी तरफ वाजपेयी को देखिए। उनने एनडीए राज में रूल बनाया था। मंत्री हर साल अपनी संपति का ब्योरा पीएम को सौंपेंगे। पीएम उस ब्योरे को पार्लियामेंट की लाइब्रेरी में रखवा देते थे। मंत्रियों पर तो सूचना का हक वाजपेयी ने एक दशक पहले लागू कर दिया था। पर मनमोहन की मुसीबत कांग्रेसी मंत्री न भी हों। तो आरजेडी के छह बागी मंत्रियों का दबाव तो होगा ही।
वैसे कांग्रेसी मंत्री भी कम नहीं। वैसे कांग्रेसियों की इस समय सबसे बड़ी मुसीबत मुलायम सिंह। वही मुलायम सिंह जिसने आड़े वक्त में मनमोहन सरकार बचाई। मुलायम का गणित कांग्रेस को समझ नहीं आया। कांग्रेस की मुश्किल मुलायम को समझ नहीं आ रही। नतीजतन मुलायम-सोनिया गठबंधन पर खतरे के बादल। बादलों की वजह बने हैं कल्याण सिंह। दिग्गी राजा ने दो टूक कह दिया है- 'कांग्रेस का कोई नेता मुलायम के साथ उस मंच पर नहीं जाएगा। जिस पर मुलायम के साथ कल्याण होंगे।' मुलायम सिंह ने शायद अधूरा सुना। उनने बुधवार को कहा- 'मुझे कोई एतराज नहीं। जिस मंच पर मेरे साथ कल्याण हों। उस मंच पर सोनिया न आएं।' पर दिग्गी राजा के तेवरों में कोई कमी नहीं। सत्यव्रत चतुर्वेदी और रीता बहुगुणा भी हिसाब चुकता करने की फिराक में। उनने कल्याण से दोस्ती पर मुलायम की सेक्युलरिज्म पर सवाल उठा दिए। सेक्युलरिज्म का जिक्र आते ही मुलायम के नथुने फूल गए। भड़कते हुए बोले- 'मुझे किसी से सेक्युलरिज्म का सर्टीफिकेट नहीं चाहिए।' इतना कहते तो काफी था। दोस्ती भूल बोले- 'सब जानते हैं, जब बाबरी ढांचा टूटा, तो केंद्र में किसकी सरकार थी।' यानी बाबरी ढांचा टूटने पर कल्याण जिम्मेदार, तो कांग्रेस भी दूध की धुली नहीं। मुलायम का जवाब सुन कांग्रेसियों के चेहरे फक पड़ गए। रीता बहुगुणा ने ही शुरूआत की थी। जवाब भी उन्हें ही देना पड़ा। पर अबके हमलावर नहीं। सफाई देने वाला जवाब। बोली- 'उसके लिए कांग्रेस महासचिव माफी मांग चुके हैं।' याद होगा- दिग्गी राजा ने मुसलमानों से माफी मांगी थी। पर बात मुसलमानों की चली। तो बता दें- मुलायम से कांग्रेस उतनी खफा नहीं। जितने मुसलमान। एक-एक कर सपा छोड़ बसपा में जाने लगे। यूपीए को यूपी में खतरा बीजेपी से ज्यादा बसपा से। सोचो, मुसलमान मुलायम से खफा होंगे, तो कांग्रेस से क्यों न होंगे। सो कल्याण से दोस्ती पर अब कांग्रेस मुलायम को कह रही है- 'तुम अगर मुझे न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगे तो मुश्किल होगी।' बेचारे कल्याण सिंह। कल्याण सिंह की हालत वैसे अछूत जैसी। जो छुआछूत के कारण धर्म परिवर्तन तो कर ले। पर ईसाई बनकर भी दलित का लेबल पीछा न छोड़े। अपन ने दलित ईसाई का जुमला कोई यों ही नहीं लिखा। बताते जाएं- ईसाई बनने वाले दलित हिंदुओं को आरक्षण पर विचार कर रही है सोनिया-मनमोहन सरकार। पर बात कल्याण सिंह की। जिन्हें सेक्युलरिज्म के ठेकेदार अपनाने को तैयार नहीं। मुलायम भी लाचारी दिखाने लगे। सो मुलायम का संकट दूर करने बुधवार को खुद कल्याण सामने आए। जैसे कांग्रेस ने बाबरी ढांचा टूटने पर माफी मांगी। वैसी ही माफी कल्याण सिंह ने भी मांग ली। मुसलमानों से माफी मांगते बोले- 'मुझे खेद है।' अब तो माफी-माफी भाई-भाई हो गए। पर नृत्य गोपालदास ने कहा है- 'भाजपा के सिवा कल्याण सिंह के लिए कहीं कोई जगह नहीं।'
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