ऐसा नहीं, जो लोग इमरजेंसी के समर्थक नहीं थे। इमरजेंसी के समर्थक भी बहुतेरे थे। इसी तरह अब नवीन चावला के समर्थक भी कम नहीं। सरकार भले ही अपनी जिद में चावला को सीईसी बना दे। पर गोपालस्वामी की सिफारिश का मजमून कब तक छुपाएगी। बीजेपी की पटीशन तो सत्रह पेज की थी। पर गोपालस्वामी की सिफारिश नब्बे पेज की। सिफारिश में सिर्फ बीजेपी की दलीलें नहीं। जिनसे नवीन चावला निष्पक्ष चुनाव आयुक्त कम, कांग्रेसी चुनाव आयुक्त ज्यादा दिखाए गए। गोपालस्वामी ने साढ़े तीन साल के अपने अनुभव भी लिखे। गोपालस्वामी ने लिखा- 'आयोग में जब कांग्रेस के खिलाफ शिकायत पर चर्चा होती। तो चावला बार-बार बाथरूम चले जाते। फिर कांग्रेस के नेताओं के फोन आने लगते।' सोनिया ने जब मोदी को मौत का सौदागर कहा। तो चुनाव आयोग की सारी मीटिंग लीक हुई। गोपालस्वामी ने जब इस पर चावला से बात की। तो चावला ने उस आदमी का नाम पूछा। जिसने गोपालस्वामी को बताया था। इस घटना का जिक्र भी गोपालस्वामी की सिफारिश में।
कर्नाटक का चुनाव टालने की कोशिशों में नवीन चावला की पैरवी। करुणाकरण की पार्टी के नाम में राजीव जोड़ने का केस। पंजाब के चुनावों की तारीखें लीक करने का मामला। बिहार में कुछ जगह दुबारा चुनाव करवाने वाली लालू की लाईन अपनाने। ये सब किस्से तो अपन ने पहली फरवरी को बताए ही थे। अपन भरोसेमंदों की बात पर भरोसा बरकरार रखें। तो मीटिंगों में कांग्रेस लाईन अपनाने के कई किस्से लिखे गोपालस्वामी ने। सोचो, वह नवीन चावला सीईसी बने। तो कांग्रेस के हाथ की कठपुतली होगा, या नहीं। पर पीएम, केबिनेट को ठेंगा दिखाकर विधिमंत्री ने कह दिया- 'सीनियर आयुक्त ही सीईसी बनेगा।' वैसे सनद रहे, सो बताएं। संविधान या कानून में सीनियर को सीईसी बनाने का जिक्र भी नहीं। सीनियरिटी की सिर्फ परंपरा। जो अपने हक में बदलने में कांग्रेस माहिर। इमरजेंसी वाला किस्सा अपन बताएंगे। पर पहले भारद्वाज की बात। जिनने सारी मर्यादाएं तोड़कर सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे सीईसी के लिए कहा- 'गोपालस्वामी ने अपना बुढ़ापा खराब कर लिया।' कांग्रेस अपने लोगों को रेवड़ियां बांटने में माहिर। एमएस गिल इसका उदाहरण। भारद्वाज के बयान से साफ। यूपीए सरकार ने चावला को बचाने पर रेवड़ी देने की पेशकश की होगी। यानी बुढ़ापा सुधारने का लालच दिया होगा। भारद्वाज का बयान हेंकड़ीभरा था। जिसका लब्बोलुबाब था- 'सरकार ने तैनात किया है। सरकार को ही हटाने की सिफारिश करने का हक।' इस पर जेटली बोले- 'जज, सीएजी, सीईसी की तैनाती भी सरकार के हाथ। पर इनकी बर्खास्तगी सरकार के हाथ नहीं। जरा संविधान पढ़ लेते भारद्वाज।' चावला की कांग्रेस से सांठगांठ- पक्षपात के ढेरों सबूत। बीजेपी का इरादा चुनाव बायकाट का नहीं। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का। गोपालस्वामी की सिफारिश यूपीए के गले का फंदा बनेगी। पर अपन को हैरानी चावला का समर्थन करने वालों पर। तो इसका कारण भी अपन बता दें। सरकार ने पूरी तैयारी करके उन्नीस दिन बाद खबर लीक की। गोपालस्वामी ने सिफारिश भेजी थी बारह जनवरी को। पर खबर लीक हुई राष्ट्रपति भवन से पीएमओ पहुंचने पर। गोपालस्वामी पर हमला करते हुए खबर लीक कराई। सवाल तो था चुनाव आयोग की निष्पक्षता का। पर बना दिया गया गोपालस्वामी और चावला में घमासान का। लोकतंत्र से ऐसा खिलवाड़ पहले इमरजेंसी में ही हुआ था। हंसराज भारद्वाज की दलीलें सत्ता की हेंकड़ी जैसी। यूपीए ने अब फिर इमरजेंसी के दिन याद कराने शुरू कर दिए। ताकि सनद रहे। सो याद दिला दें। इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र पर पहला प्रहार 1973 में तब किया था। जब उनने जेएम शैलर, केएस हेगड़े, एएन ग्रोवर की सिनियोरिटी को दरकिनार किया। अलबत्ता जूनियर एएन रे को सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया। वह सत्ता की हेंकड़ी का पहला कदम था। जिसका नतीजा पच्चीस जून 1975 में इमरजेंसी निकला। तब के विधि मंत्री की दलीलें भी हंसराज भारद्वाज जैसी थी।
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