अपन ने यहीं पर बारह अक्टूबर को वह ब्रेकिंग न्यूज दी। जिसमें अपन ने लिखा- 'आईएईए-एनएसजी समझौते तीन महीने ठंडे बस्ते में पड़ेंगे।' जब आप लोग यह पढ़ चुके। तो उसी दिन मनमोहन-सोनिया के एचटी सम्मेलन में भाषण का लब्बोलुआब था- 'सरकार वक्त से पहले गिराने का इरादा नहीं। एटमी करार भले ही ठंडे बस्ते में पड़े।' यही अपन ने तेरह अक्टूबर को लिखा।
अब कपिल सिब्बल बोले- 'करार का स्टॉप बटन नहीं दबाया, सिर्फ पॉज बटन दबाया।' सिब्बल ने यह कहकर अपने ही अनुमान को सही साबित किया। अपना अनुमान तो अप्रेल तक फिर बवाल का। तो अमेरिका से एटमी करार सिर्फ ठंडे बस्ते में, रद्द नहीं। लेफ्ट तो चाहता भी सिर्फ यही था। मनमोहन-सोनिया ने यह मान लिया। पर इसके लिए लालू-करुणानिधि-पवार को भी आंखें दिखानी पड़ीं। सिर्फ लेफ्टियों की लाल आखें काम नहीं आई। करुणानिधि ने तो बाकायदा चिट्ठी लिख सलाह मानने पर शुक्रिया कहा। शनिवार को चेन्नई में बोले- 'मैंने लेफ्ट का साथ दिया। तब जाकर कांग्रेस करार पर ठंडी पड़ी।' पर अपन अंदर की बात बता दें। लालू-पवार-करुणानिधि की खिचड़ी में छोंक अर्जुन-प्रणव-पाटिल ने लगाया। वरना सोनिया-मनमोहन धुन के पक्के थे। चौबीस घंटे में फैसला यों ही नहीं बदला। सात अक्टूबर को सोनिया ने हरियाणा में खम ठोका। आठ की रात कोर कमेटी में तस्वीर बदल गई। पर जिस तरह सोनिया-मनमोहन ने गुब्बारा फुलाकर पंक्चर किया। उससे कांग्रेसियों के चेहरे मुरझा गए। वरना राहुल गांधी कांग्रेस दफ्तर में आते। तो ऐसे लटके हुए चेहरे न दिखते। जरूरी मीटिंगों की बात छोड़ दें। तो सोमवार को राहुल दफ्तर का दौरा करने पहली बार पहुंचे। और कुछ न सही। नारेबाजी तो जरूर होती। पर आम कांग्रेसी की बात छोड़िए। खुद मनमोहन भी नर्वस। इतवार को नाईजीरिया गए। तो नौ घंटे के सफर में एक बार भी खबरचियों से नहीं बतियाए। झटका तो बुश को भी लगा होगा। जरूर कोई संदेश आया होगा। तभी तो नाईजीरिया में बुश-मनमोहन फुनियाए। पर अपन ने तो हाईड एक्ट की चीरफाड़ सबसे पहले की। तीन अगस्त को ड्रॉफ्ट जारी हुआ। तो अपन ने लिखा- 'अपनी सुरक्षा और ऊर्जा अमेरिका की मोहताज।' बीजेपी-लेफ्ट ने तो बाद में स्टेंड लिया। अब जब करार का गुब्बारा पंक्चर हुआ। तो कई वैज्ञानिक भी खुलकर सामने आने लगे। सोमवार को डॉ. राजेंद्र पचौरी ने भी अपनी बात कही। मौका था- एसोचम की गोष्ठी। नोबल शांति पुरस्कार से नवाजे गए पचौरी बोले- 'विकसित और विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतों में बहुत फर्क। हमें अपनी तकनीक विकसित करनी चाहिए।' अपन को याद आया अब्दुल कलाम का स्टेंड। उनने अब तक अमेरिका से करार पर टिप्पणी तो नहीं की। पर उनने थोरियम से ऊर्जा की बात पर जोर दिया। फास्ट बीडर रिएक्टर पर थोरियम से बिजली बने। तो अपन को हजारों करोड़ खर्च ही नहीं करने पड़ेंगे। अपना एक प्लांट पहले से काम पर। पचौरी ने जब अपनी सरकार को अपनी तकनीकी की सलाह दी। तब चीन-फ्रांस-फिनलैंड-नीदरलैंड के राजदूत तो थे। पर अपनी सरकार का कोई नुमाइंदा नहीं था। जब अपन ने स्टॉप नहीं, पॉज बटन की बात की। तो अपन याद दिला दें। अपन ने बारह अक्टूबर को लिखा था- 'तो रूस से एटमी करार तोड़ेगा लेफ्ट से गतिरोध।' उसी दिन प्रणव दा ने रूस की तारीफ में पुल बांधे। अगले दिन प्रणव दा रूस गए। अब जब आप पढ़ रहे होंगे। तो ए.के. एंटनी रूस की तरफ जा रहे होंगे। सब पीएम के दिसंबर दौरे की तैयारियां। अनिल काकोड़कर की रिटायरमेंट दो साल लटक ही गई। जो पीएम के साथ रूस जाएंगे। पर उससे पहले इसी महीने सोनिया चीन हो आएंगी।
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