अरुणाचल जाकर चीन से खतरों पर बोले राजनाथ। यों प्रणव दा को चीन के खतरों की कम भनक नहीं। पर प्रणव दा की निगाह पीएम की कुर्सी से हटे। तो चीन से खतरों पर टिके। प्रणव दा तो मुंबई पर आतंकी हमले का जख्म भी झेल गए। जख्म सूखने लगे। पर यूपीए सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। अब तो पाकिस्तान नए-नए शिगूफे भी छोड़ने लगा। कसाब के मरने वाली चंडूखाने की खबर अपन हंसी में उड़ा भी दें। तो पाक के ब्रिटिश हाईकमिश्नर ने जांच से पहले ही कह दिया- 'मुंबई हमले की साजिश पाक में नहीं रची गई।' जबसे अपने पीएम ने हमले में पाकिस्तानी एजेंसी का नाम लिया। तब से पाक के होश फाख्ता। यों अपन को दुनिया का समर्थन नहीं मिला। याद है तेरह जनवरी को ब्रिटिश विदेशमंत्री डेविड मिलिबेंड दिल्ली में थे। तो उनने कहा था- 'हमला पाक के इशारे पर हुआ होगा, हम नहीं मानते।' अमेरिका ने भी अपने पीएम मनमोहन का यह दावा नहीं माना। इसीलिए अपन ने 14 जनवरी को लिखा था- 'कूटनीतिक जंग में भी फिसड्डी दिखी सरकार।' ब्रिटिश शह मिली।
तो अब पाकिस्तानी हाईकमिश्नर एक कदम आगे निकल गया। पर अपने विदेश सचिव शिवशंकर ज्यादा भाव नहीं देते। बोले- 'यह आईएसआई और पाक सेना को बचाने की कोशिश भर।' यानी बात वही। जो अपने पीएम ने कही थी। साजिश सिर्फ पाक में ही नहीं रची गई। अलबत्ता आईएसआई-सेना भी शामिल थी। बात अपनी कूटनीतिक विफलता की चली। तो चीन की बात करें। जिस पर अपने राजनाथ सिंह अरुणाचल जाकर बोले। पर पहले बात खुद राजनाथ सिंह की। बीजेपी हलकों में लाख टके का सवाल- 'आडवाणी पीएम बने। तो राजनाथ क्या बनेंगे। क्या आडवाणी की केबिनेट में मंत्री बनेंगे। शायद नहीं। लाख टके का दूसरा सवाल- आडवाणी पीएम नहीं बन पाए। तो क्या फिर से विपक्ष के नेता बनेंगे। दोनों सवालों का जवाब किसी के पास नहीं।' पर पता नहीं क्यों। इस बार सभी बड़े नेताओं की निगाह लोकसभा पर। राजनाथ, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली सभी की। यहां तक कि भैरोंसिंह शेखावत भी। पर बात राजनाथ सिंह की। जो छब्बीस दिसंबर 2005 को मुंबई में बीजेपी अध्यक्ष बने थे। फिर छब्बीस नवंबर 2006 को तीन साल के लिए चुने गए। यानी इस साल 26 नवंबर को टर्म खत्म। बीजेपी संविधान में तीन साल की एक ही टर्म का रूल। सो नई उधेड़बुन शुरू हो चुकी। बीजेपी में चर्चा एक साल चुनाव टालने की। यानी राजनाथ को एक साल और मिले। यों अपन ने संघ को टटोला। तो संघ को दूसरी टर्म पर भी एतराज नहीं। बीजेपी में सहमति बनी। तो संविधान में फिर फेरबदल होगा। यों भी राजनाथ लगातार चार साल से ज्यादा अध्यक्ष रहे। तो रिकार्ड बनाएंगे। वाजपेयी-आडवाणी भी चार-चार साल बाद बदलते रहे। मुरली मनोहर जोशी ने तो दो साल की एक ही टर्म पूरी की। पर अपन बात कर रहे थे चीन के खतरों की। जिनका जिक्र राजनाथ ने अरुणाचल में किया। बोले- 'चार साल में यूपीए ने कूटनीति का कुंडा किया। हर मोर्चे पर विफल रही मनमोहन सरकार। चीन को ही लो। जिससे भारत को दोहरा खतरा। युनान से बर्मा तक इरावड़ी कारिडोर बना लिया। जिसमें सड़कों, रेल-जलमार्गों का जाल बिछा चुका। चीन की फौज अपने पूर्वी रणनीतिक ठिकाने पर आ पहुंची। बंगाल की खाड़ी के कोको द्वीप में जासूसी उपकरण लगा चुकी। उधर उत्तरी बार्डर पर भी चीन की निगाह। गोरमू से ल्हासा तक रेल लाईन बना ही ही चुका चीन। जुलाई 2006 में उद्धाटन भी हो चुका। कराकोरम में भी कारिडोर बनाने की तैयारी। पाक से दोस्ती के बाद चीन अब बांग्लादेश से भी प्यार की पीगें बढ़ाने लगा।' राजनाथ सिंह कोई यों ही चीन का हौवा खड़ा नहीं कर रहे। बीते साल ही चीनी फौज ने 213 बार सीमा लांघी। पर मनमोहन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
आपकी प्रतिक्रिया