जैसे बुश के आखिरी दिनों में रिपब्लिकन पार्टी को आर्थिक मंदी ले डूबी। लोकसभा चुनावों से पहले कुछ वैसा ही हाल बीजेपी का। कल्याण सिंह का बीजेपी छोड़ना क्या कम था। जो उनने मुलायम से हाथ मिला लिया। बीजेपी के रणनीतिकार कहते हैं- 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा।' पर कल्याण-मुलायम मिलकर एक और एक ग्यारह हो गए। वह कैसे हुए- अपन आगे बताएंगे। पर फिलहाल बात अकेले चने की। जो अरुण जेटली शनिवार को मनाने गए थे। वह बोले- 'कल्याण सिंह का एक ही वोट है। वह चाहें तो बीजेपी के खिलाफ दे दें।' अपन नहीं जानते कल्याण-शेखावत की क्या बात हुई थी। पर छूत की बीमारी फैल गई। अब कल्याण का बेटा राजबीर भी गया। मुलायम ने हाथों-हाथ लिया। अपनी पार्टी का महासचिव बना दिया। बीजेपी छोड़कर जैसे कल्याण सिंह ने गंगा नहा ली हो। मुलायम फूले नहीं समाए। कल्याण से मिलने उनके घर गए। साथ में अमर सिंह भी। कल्याण सिंह को गरीबों, पिछड़ों, मजदूरों का मसीहा कहकर कसीदे पढे। तो कल्याण सिंह ने अमर सिंह को चाणक्य कह डाला। जैसे कवि सम्मेलन में एक-दूसरों को दाद देने का समझौता हुआ हो- 'तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हें निराला।'
जैसे कल्याण सिंह ने पार्टी के साथ विचारधारा ही बदल डाली हो। कोई पूछे- मुलायम तो बाबरी ढांचे की जगह मस्जिद बनाने के हिमायती। क्या कल्याण भी अब मस्जिद के हक में। बीजेपी को तो कल्याण-मुलायम गठजोड़ से नुकसान होगा ही। पिछड़े वोटों के धु्रवीकरण का खतरा। मुलायम तो सिर्फ यादवों के लीडर थे। कल्याण लोध, कुर्मी, काच्ची, कोरी भी जुटा लाए। तो सब पिछड़े एक खेमे में होंगे। बीजेपी ऊपर से भले ही राहत की सांस का नाटक कर गुनगुना रही हो- 'जाना है तो जाओ, बुलाएंगे नहीं।' पर अंदर से तार-तार हुई पड़ी है। कांग्रेस की हालत उससे ज्यादा खस्ता। मुलायम पहले ही सत्रह सीटों से आगे नहीं खिसक रहे थे। अब न जाने क्या तेवर दिखाएं। ऊपर से बाबरी ढांचा टूटने का जिम्मेदार। दिग्विजय सिंह झटके का असर छुपा नहीं पाए। बोले- 'बाबरी ढांचा कल्याण के मुख्यमंत्री रहते ही टूटा। इसे कैसे भूल जाएं।' ताकि सनद रहे, सो याद दिला दें। कल्याण एक दिन की सजा भुगत चुके। अमर सिंह से पूछा- 'सपा के सेक्युलरिज्म का क्या होगा?' इस सवाल से तमतमा गए छोटे भैया। जैसे मीडिया को बताकर दिग्गी राजा को सुना रहे हों। बोले- 'शिवसेना के नारायण राणे, संजय निरूपम, छगन भुजबल से कांग्रेस की सेक्युलरिज्म बरकरार। तो सपा की सेक्युलरिज्म को क्या खतरा।' फिर खुन्नस निकालते बोले- 'सोनिया के मैनेजर चुप ही रहें तो अच्छा।' पर कांग्रेस में अब मुलायम से अलग होने का दबाव। रीता बहुगुणा ने अजित सिंह से बात भी शुरू कर दी। पर जिस अजित से गठजोड़ के लिए बीजेपी ने कल्याण गंवाया। वह भी कांग्रेस के साथ चले गए। तो बीजेपी का क्या होगा। न घर की रहेगी, न घाट की। मुलायम-कल्याण गठबंधन से मायावती भी सकते में। पिछड़ों का धु्रवीकरण बीएसपी को ले डूबेगा। सो मायावती का निशाना मुस्लिम वोट बैंक होगा। पर बात अजित सिंह की। अपन को अरुण जेटली बता रहे थे- 'वह मौके का फायदा तो उठाएंगे ही। पर वह लगातार मेरे संपर्क में।' यानी कांग्रेस-बीजेपी दोनों के डोरे। अजित सिंह की पांचों अंगुली घी में हो गई। पर सोमपाल मुश्किल में। बीजेपी दफ्तर में हर कोई एक-दूसरे से पूछ रहा है- 'अगला विकेट किसका गिरेगा।' तो लो, अपन बताते चलें। अजित सिंह तय करें। तो सोमपाल भी तय करेंगे। बीजेपी के जाट नेता हैं सोमपाल। वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके। अजित सिंह को 44000 वोटों से हराकर जीते थे। अब अजित-बीजेपी गठजोड़ हुआ। तो अगले कल्याण सिंह वह बनेंगे। सोमपाल अपन को बता रहे थे- '1991 में बीजेपी के 14 जाट एमएलए थे। बीजेपी ने पहले भी अजित सिंह से तालमेल कर अपनी लुटिया डुबोई।'
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