बीजेपी पांच दिन बाद नींद से जागी। तो सोमवार को अंतुले पर संसद ठप्प हुई। सत्रह दिसंबर को संसद ठप्प होती। तो सोनिया तुरुत-फुरुत फैसले को मजबूर होती। सोनिया चाहती तो अंतुले अब तक नप चुके होते। मनमोहन पर फैसला छोड़ सोनिया ने डबल क्रास किया। पता था- मनमोहन मन बनाकर भी कुछ नहीं करेंगे। इधर सिंघवी-मनीष से पल्ला झाड़ने वाला बयान दिलाया। उधर शकील- दिग्विजय से समर्थन करवाया। वोट देखो, वोट की धार देखो वाली नीति। सोनिया के रवैये से अंतुले खुश। अंतुले को साफ लगने लगा- अब उनका कुछ बिगाड़ना आसान नहीं। सो सोमवार को उनने बीजेपी सांसदों को ललकारा। तो प्रणव दा पहली बैंच पर हैरान-परेशान-लाचार बैठे रहे। आतंकवाद के खिलाफ बनी एकता हफ्तेभर में तार-तार हो गई। वृंदा कारत बोली- 'अंतुले का बयान अफसोसनाक। पाक को फायदा पहुंचाने वाला। हम तो सिर्फ यही चाहते हैं- मालेगांव की जांच ठप्प न हो।' बात मालेगांव की चली। तो बता दें- सोमवार को जांच आगे बढ़ी। एटीएस ने लेफ्टिनेंट जनरल पुरोहित के फौजी साथियों से पूछताछ की। पर बात मालेगांव की नहीं। बात मुंबई पर हुए आतंकी हमले की। जिस पर भारत-पाक तनाव शिखर पर।
यों तो अपने राजदूतों की मीटिंग महीनों पहले से तय थी। राजदूतों की आठ रिजनल मीटिंगें पहले हो चुकी। नेशनल मीटिंग एटमी करार के कारण लेट हुई। मुद्दा पाक नहीं था। न ही मुंबई की आतंकी वारदात। मुद्दा था- 'कूटनीति पर सही तरीके से अमल।' यों मीटिंग कोई पहली बार भी नहीं हुई। अर्से बाद हुई, यह बात ठीक। इंदिरा ने 1969 में की थी ऐसी मीटिंग। तब अपने 52 राजदूत-हाईकमिशनर थे। पर अब मीटिंग भारत-पाक तनाव के मौके पर हुई। सो प्रणव दा का भाषण इसी के इर्द-गिर्द रहा। उनने कहा- 'पाक का आतंकी ढांचा पूरी दुनिया के लिए खतरा। राजदूतों को पूरी दुनिया में यह समझाना होगा। पाक अभी भी गैर जिम्मेदार देश।' उनने सिर्फ तेवर नहीं। तैयारियां भी दिखाई। फौजों की छुट्टियां रद्द की। वार रूम में तैयारियों की खबर ली। तीनों सेनाओं के चीफ और खुफिया चीफ भी बुलाए। वार रूम की मीटिंग का असर अपन ने पाक में देखा। सोमवार को एयरफोर्स अलर्ट कर दी गई। लड़ाकू हवाई जहाजों ने रावलपिंडी से लाहौर तक उड़ान भरी। पीएम यूसुफ रजा गिलानी बोले- 'पाक पर युध्द लादा गया। तो हम अपनी सुरक्षा के लिए तैयार।' यानी तेवर तैयारियां दोनों तरफ। प्रणव दा के तेवरों-तैयारियों से कांग्रेसियों के चेहरे चमक गए। अंतुले के बयान पर मलाल नहीं। सेंट्रल हाल में पैंसठ-इकहत्तर का उदाहरण देते दिखे। कारगिल का उदाहरण देना भी नहीं भूले। तीनों जंगों से सरकारों को चुनाव में फायदा हुआ। सो अब जंग हो गई। तो आडवाणी मुंह देखते रह जाएंगे। मंदी के दौर में जंग के नाम से कांग्रेसियों के मुंह में पानी। पर क्या जंग होगी? क्या सिर्फ क्रिकेट टीम न भेजने का फैसला ही इरादों की झलक? क्या फौजियों की छुट्टियां रद्द ही झलक? क्या वार रूम की मीटिंग जंग का इशारा? क्या सभी विकल्प खुले कहना जंग की धमकी? पर नहीं, तेवरों-तैयारियों में तब दम दिखता। जब अपन थार-समझौता एक्सप्रेस रोकते। लाहौर-मुजफ्फराबाद बसें रोकते। हाईकमिशनर को बुला लेते। पर अपन ने ऐसा कुछ नहीं किया। राजदूतों की मीटिंग हुई। तो शिवशंकर मेनन अखबारनवीसों से मुखातिब हुए। न तेवर दिखे, न तैयारियां। पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा जरूर झलका। कहा- 'पहले कितने आतंकियों के खिलाफ सबूत दे चुके। पाक का रवैया हमेशा नानुक्कर वाला।' मसूद अजहर को ही लो। वह तो पाकिस्तान में। बाकी 39 वांछित न सही। मसूद अजहर तो इंटरनेशनल क्रिमीनल। नेपाल-भारत-अफगानिस्तान में हुआ था विमान अपहरण का क्राइम। लब्बोलुबाब यह- अपना इरादा पाक को दुनिया के सामने पूरी तरह नंगा करने का। ताकि पाक गैर जिम्मेदार देश घोषित हो। पाक आतंकवादियों की पनाहगाह घोषित हो। पाक पर लगें आर्थिक प्रतिबंध। पर फैसला राजनीतिक हुआ। तो चुनावी फायदा देखकर होगा।
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